काशी एवं मथुरा के मंदिरों से संबंधित विवाद

‘प्लेसेस ऑफ वरशिप’ कानून को पुजारियों के संगठन की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती

हिन्दुओं को ऐसा लगता है कि यदि तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने यह कानून बनाया था, तो वर्तमान केंद्र सरकार को यह कानून रद्द कर देना चाहिए । ‘उसके लिए पुजारियों को न्यायालय जाने की क्या आवश्यकता है ?’ 

नई देहली – पुजारियों के संगठन ‘विश्‍व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ’ ने काशी का विश्‍वनाथ मंदिर एवं मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर से संबंधित विवाद के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने महासंघ की ओर से यह याचिका प्रविष्ट की है । इसमें वर्ष १९९१ में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए ‘प्लेसेस ऑफ वरशिप’ (विशेष प्रावधान) कानून को चुनौती दी है । इस याचिका के द्वारा काशी एवं मथुरा विवादपर पुनः सुनवाई करने की मांग की है । शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने इससे पहले इस कानून को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि न्यायालय के अधिकार में एक विशेष समिति का गठन कर विवादित मस्जिदों, दर्गा आदि की जानकारी लेकर ये स्थल यदि हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों को तोडकर बनाए गए हों, तो उन्हें पुनः हिन्दुओं को सौंप देने चाहिए ।

मुसलमान और हिन्दुओं में भेदभाव करनेवाले कानून ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि वर्ष १९९५ के ‘वक्फ कानून’ के अनुसार मुसलमान किसी वास्तु को अपनी वास्तु घोषित कर सकते हैं, उदा. इस कानून के अनुसार उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड ने आगरा के ताजमहाल को अपनी संपत्ति घोषित की है; इसलिए उसे चुनौती नहीं दी जा सकती । दूसरी ओर ‘प्लेसेस ऑफ वरशिप’ कानून के कारण हिन्दू किसी भी कानून के अनुसार अपनी पहले की धार्मिक वास्तु को वह उनकी होने की घोषणा नहीं कर सकते और उसे न्यायालय में चुनौती भी नहीं दे सकते । अतः धर्मनिरपेक्ष भारत में २ कानून हैं और वे हिन्दुओं के साथ भेदभाव कर रहे हैं ।

क्या है ‘प्लेसेस ऑफ वरशिप ?’

११ जुलाई १९९१ में बनाए गए ‘प्लेसेस ऑफ वरशिप’ कानून में १५ अगस्त १९४७ के दिन देश के सभी धार्मियों के प्रार्थनास्थल जिस स्थिति में थे, उन्हें आज और भविष्य में यथास्थिति में वैसे ही रखा जाएगा, ऐसा कहा गया है । केवल रामजन्मभूमि का अभियोग ही उसके लिए अपवाद था; क्योंकि वह विवाद स्वतंत्रतापूर्व काल से न्यायालय में चल रहा था । इस कानून के कारण काशी, मथुरा और अन्य धार्मिक स्थलोंपर मुसलमान आक्रांताओं ने आक्रमण कर उनका रूपांतरण दर्गा, मस्जिदों आदि में किया हो, तो उनमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकेगा । इस कानून के विरुद्ध कोई आचरण करने का प्रयास करेगा, तो उसे इस कानून के अनुसार ३ वर्ष का कारागार और आर्थिक दंड मिल सकता है । धर्मांधों ने आक्रमण कर मंदिरों का रूपांतरण मस्जिदों एवं दर्गाओं में किया हो और हिन्दुओं को ये धार्मिक स्थल पुनः चाहिए हों, तो उसके लिए इस कानून को रद्द करना आवश्यक है । उसके लिए ही यह याचिका प्रविष्ट की गई है । इस कानून को अभीतक एक भी बार न्यायालय में चुनौती नहीं दी गई है ।

काशी एवं मथुरा का विवाद

औरंगजेब ने वर्ष १६६९ में काशी के विश्‍वनाथ मंदिर को तोडकर वहां ज्ञानव्यापी मस्जिद का निर्माण किया था, उसका आज भी अस्तित्व है, साथ ही मथुरा स्थित कृष्ण भूमिपर शाही ईदगाह है ।