हिन्दुओं के न्यायालयीन संघर्ष को सफलता
- मंदिरों का पैसा लूटने के सरकार के प्रयासों के विरुद्ध वैधानिक पद्धति से विरोध करनेवाले धर्मप्रेमियों का अभिनंदन ! प्रत्येक हिन्दू को ऐसे प्रयास करने चाहिए !
- कोई भी पुनः ऐसा आदेश देने का साहस न दिखाएं; इसके लिए संबंधित लोगों को दंडित किया जाना चाहिए, ऐसा हिन्दुओं को लगता है !
चेन्नई – तमिलनाडू राज्य के हिन्दू धार्मिक विभाग द्वारा २२ अप्रैल को राज्य के ३ सहस्र मंदिरों में से ४७ बडे सरकारीकृत हिन्दू मंदिरों को कोरोना के विरुद्ध सहायता हेतु मुख्यमंत्री सहायता कोष में प्रत्येक मंदिरके द्वारा १० करोड रुपए जमा करने का आदेश जारी किया था । मद्रास उच्च न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर दिया है । न्यायाधीश विनित कोठारी तथा न्यायाधीश पुष्पा सत्यनारायण की खंडपीठ ने इस आदेश के विरुद्ध प्रविष्ट ३ याचिकाओंपर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया ।
Congratulations to devout Hindu advocate @trramesh ji and others for compelling Tamil Nadu Govt to withdraw discriminatory order asking Hindu temples to donate for CM Relief Fund for #Corona, while Hindu poojaris are facing hardships due to ongoing lockdown ! https://t.co/SPF3Frb885
— HinduJagrutiOrg (@HinduJagrutiOrg) May 4, 2020
१. हिन्दू धार्मिक विभाग के इस आदेशपर रोक लगाने हेतु हिन्दू मंदिर पूजक समिति के अध्यक्ष श्री. टी.आर्. रमेश ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रविष्ट की थी । इसके साथ ही तमिल तमिळ दैनिक दिनमालाके संपादक आर्.आर्. गोपालजी और और एक धर्मप्रेमी ने भी हिन्दू धार्मिक विभा के इस आदेश के विरुद्ध याचिका प्रविष्ट की थी ।
२. श्री. रमेश ने बताया कि तमिलनाडू हिन्दू धार्मिक विभाग की विधि १९५९ में विद्यमान धारा ३६-ब के अनुसार तमिळनाडू हिन्दू धार्मिक विभाग के आयुक्त स्वयं मंदिरों से दिए जानेवाले पैसे पारित करनेवाले अधिकारी हैं । अतः वहीं मंदिरों से पैसे लेने का आदेश नहीं दे सकते । न्यायाधीशों ने इस तर्क को उचित प्रमाणित किया ।
३. तमिलनाडू हिन्दू धार्मिक विभाग के इस आदेश के कारण सत्ताधारी अखिल भारतीय अण्णा द्रविड मुन्नेत्र कझगम सरकार के विरुद्ध हिन्दुओं में क्षोभ था । मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी सरकार की ओर से मस्जिदों को ५ सहस्र ४५० टन निःशुल्क चावल वितरण करने का प्रस्ताव रखने से यह हिन्दुओं के मंदिरों की संपत्ति को लूटकर उसे धर्मांधोंपर उडाने का कृत्य है, ऐसा कहते हुए क्षोभ व्यक्त किया गया ।