स्त्रियों के व्यायाम करने के संदर्भ में समाज के लोगों के मन में बसी अवधारणाएं तथा स्त्रियों को व्यायाम से मिलनेवाले लाभ !

‘आधुनिक जीवनशैली के कारण उत्पन्न होनेवाली शारीरिक समस्याओं का ‘व्यायाम’ एक प्रभावी उपाय है । प्राचीन ग्रंथों में दिया गया व्यायाम का तत्त्वज्ञान आज भी उतना ही उपयुक्त है तथा हम उससे प्रेरणा ले सकते हैं । इस लेखमाला से हम ‘व्यायाम का महत्त्व, व्यायाम के विषय में शंकाओं का समाधान, ‘एर्गोनॉमिक्स’ का (ergonomics) सिद्धांत तथा बीमारी के अनुसार उचित व्यायाम’ की जानकारी लेंगे । पाठकों एवं जिज्ञासुओं के लिए व्यायाम के माध्यम से स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की यह यात्रा प्रेरणादायक सिद्ध होगी । इस लेख में हम ‘स्त्रियों के व्यायाम करने का महत्त्व तथा स्त्री एवं पुरुष का शारीरिक सामर्थ्य !’ के विषय में समझ लेंगे ।

१. कुछ व्यक्तियों के मन में बसी व्यायाम के संबंध में अवधारणाएं तथा स्त्रियों को व्यायाम से मिलनेवाले लाभ

‘स्त्रियों को पुरुषों की भांति ही व्यायाम की आवश्यकता है’, इसके विषय में अब कोई दो राय नहीं है । ‘व्यायाम के कारण स्त्रियों का शरीर पुरुषों के ढांचे का बनकर उससे उनके सौंदर्य का नाश होता है’, यह जो आरोप लगता है; उस पर विचार करना आवश्यक है । इस झूठी अवधारणा के कारण प्राचीन काल से अनेक स्त्रियां व्यायाम की उपेक्षा कर रही हैं । ‘स्त्रियों के व्यायाम करने के कारण उनके शरीर का ढांचा पुरुषों की भांति नहीं होता’, यह हमारे देश का अनुभव है ।

१ अ. कोई भी व्यायाम न करनेवाली उच्च वर्ग की स्त्रियों की अपेक्षा शारीरिक परिश्रम करनेवाली महिलाएं अधिक सुडौल एवं स्वस्थ होती हैं ।

१ आ. पुरुषों के माने जानेवाले खेल तथा व्यायाम करने पर भी स्त्रियों के शरीर पुरुषों की भांति न बनना : ‘स्त्रियां यदि दंड-बैठक लगाएं, खो-खो, टेनिस जैसे मैदानी खेल खेलें, ऊंची छलांगें लगाएं तथा विभिन्न प्रकार की दौड जैसे पुरुषी खेल खेलें; तो उससे उनकी मांसपेशियां सशक्त बनने से उनका कोमल तथा सुंदर शरीर पुरुषी ढांचे का बन जाएगा’, यह भय अनेक महिलाओं के मन में होता है । दूसरे विश्वयुद्ध के उपरांत यूरोप उपमहाद्वीप के सभी देशों में महिलाएं कुश्ती, बॉक्सिंग, रग्बी जैसे पुरुषी तथा मैदानी खेलोंसहित अन्य खेल जैसे हॉकी, टेनिस, बैडमिंटन, क्रिकेट इत्यादि खेल, जो पहले पुरुषों के माने जाते थे खेलने लगीं तथा बडे स्तर पर व्यायाम करने लगी; परंतु इससे उनका शरीर पुरुषी ढांचे का बन गया, ऐसा दिखाई नहीं देता ।

१ इ. स्त्रियों के शरीर की प्राकृतिक रचना : प्रकृति ने स्त्री के शरीर की रचना ही इस प्रकार से की है कि ‘वह चाहे कितना भी व्यायाम करें, तब भी उनकी मांसपेशियां पुरुषों की मांसपेशियों की भांति कदापि गठीली नहीं दिखाई देतीं । उनका चेहरा पुरुषी ढांचे का दिखाई नहीं देता ।’ इसके विपरीत ‘स्त्रियों के व्यायाम करने से उनके शरीर को उचित मोड मिलता है तथा उससे वे और सुडौल तथा सुंदर दिखने लगती हैं’, यह अनुभव है ।

१ ई. व्यायाम करने से पाश्चात्य देशों की स्त्रियों का स्वास्थ्य, शारीरिक सामर्थ्य तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति उन्नत होना : ‘वर्तमान में व्यायाम के प्रसार के कारण पाश्चात्य देशों की स्त्रियों का स्वास्थ्य, शारीरिक सामर्थ्य तथा उनकी रोगप्रतिरोधक शक्ति बहुत विकसित हुई है ।’, ऐसा दिखाई दिया है । ‘ऐसी स्वस्थ सुदृढ स्त्रियों के बच्चे भी स्वाभाविक ही और स्वस्थ तथा सुदृढ होते हैं’, यह भी शास्त्र प्रमाणित है ।

१ उ. समाज की सर्वांगीण उन्नति हेतु स्त्रियों को व्यायाम की आवश्यकता ! : समाज की यदि सर्वांगीण उन्नति करानी हो, तो देश का पुरुषवर्ग और अधिक मजबूत, सामर्थ्यवान, शूर, सशक्त तथा सभी दृष्टि से परिपूर्ण होना चाहिए । तथा ऐसा होने से ही देश की उन्नति की आशा की जा सकती है तथा वह रखी जाए, इसके लिए स्त्रियों को भी व्यायाम की आवश्यकता ध्यान में लेनी होती है ।

२. स्त्री एवं पुरुष की प्राकृतिक शरीररचना

२ अ. स्त्रियों तथा पुरुषों के प्राकृतिक कार्य मूलतः ही भिन्न प्रकार के होने के कारण उस कार्य के लिए आवश्यकता के अनुसार उन्हें उचित शरीरसामर्थ्य प्राप्त होने की आवश्यकता : प्रकृति ने स्त्री एवं पुरुष की शरीररचना में जो अंतर उत्पन्न किए हैं, उनका दूर होना कदापि संभव नहीं है । अतः उस दृष्टि से विचार कर तथा प्राप्त अनुभव को ध्यान में रखकर स्त्री-पुरुष के नित्य जीवन के शारीरिक परिश्रमों के प्रकार पहले से ही भिन्न हैं । स्त्रियों ने चाहे कितने भी तथा किसी भी प्रकार के व्यायाम किए, तब भी वे शारीरिक सामर्थ्य के विषय में सामान्यरूप से पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकतीं, यह भले ही सत्य हो; तब भी उसके लिए स्त्रियों को स्वयं के प्रति हीनता का भाव रखने की आवश्यकता नहीं है । इन दोनों के प्राकृतिक कार्य मूलतः ही भिन्न प्रकार के होते हैं, इसलिए प्रकृति उन्हें उस कार्य की आवश्यकता के अनुसार तथा उचित शारीरिक सामर्थ्य दिलाने के लिए तैयार रहती है ।

२ आ. लडकियों की अपेक्षा लडकों की लंबाई, वजन तथा शक्ति अधिक होती है । लडकों का संपूर्ण शारीरिक विकास होने में २२ से २५ वर्ष लगते हैं; परंतु लडकियों का शारीरिक विकास उनकी आयु के २० से २२ वर्षाें में पूरा होता है ।

२ इ. स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा सहनशीलता अधिक होती है तथा वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक भावनाशील होती हैं ।

२ ई. स्त्रियों तथा पुरुषों के कार्य : पुरुषवर्ग का सामर्थ्य अधिक होने से पुरुषों का अधिक शक्ति के तथा विशेष परिश्रम के कार्य करना स्वाभाविक होता है । पुरुषों में युद्धजन्य स्थिति के लिए अनुकूल विशेषताएं अधिक मात्रा में होती हैं । अत: लडाई जैसा कठिन कार्य केवल पुरुषों को दिया जाना उचित है । कुछ महिलाएं इस नियम की अपवाद हो सकती हैं, इतना ही है । दूसरी ओर महिलाओं में गर्भ धारण करना, बच्चों की शिक्षा, बच्चों का पालन-पोषण तथा घर का ध्यान रखने हेतु आवश्यक भागदौड की तथा सहिष्णुता की अनुकूलता होती है, इसलिए वह उस प्रकार के कार्य करती हैं, जो स्वाभाविक है । ’

– श्री. एवं श्रीमती लक्ष्मीबाई मुजुमदार, वडोदरा, गुजरात.

(साभार : मासिक ‘व्यायाम’)