सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी को जमानत दी !
नई दिल्ली – कानपुर के मौलवी (इस्लामी धार्मिक नेता) सैयद शाह काजमी उर्फ मोहम्मद शाद को एक नाबालिग लड़के के अवैध धर्मांतरण के प्रकरण में बंदी बनाया गया । निचली और उच्च दोनों न्यायालयों ने उन्हें जमानत देने से मना कर दिया; हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहते हुए ज़मानत दे दी कि “अवैध धर्म परिवर्तन हत्या, बलात्कार अथवा डकैती जितना गंभीर अपराध नहीं है ।” न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय दिया ।
१. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दलील देते हुए अपर महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा था कि यह प्रकरण एक गतिमंद नाबालिग के बलपूर्वक धर्म परिवर्तन का है । इसलिए यह बहुत गंभीर बात है । इसके परिणामस्वरूप १० वर्ष तक का दंड मिल सकता है ।
२. जमानत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक वर्ष न्यायालय कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाती है, जिसमें निचले न्यायालय के न्यायधीशों को बताया जाता है कि जमानत के प्रकरणों में उन्हें अपने विवेक का उपयोग कैसे करना है । फिर भी, न्यायाधीशों को अपनी इच्छानुसार जमानत देने अथवा अस्वीकार करने का अधिकार है । पीठ ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि निचले न्यायालय के बाद उच्च न्यायालय ने भी याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी और कहा कि यदि निचले न्यायालय के न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी तो कम से कम उच्च न्यायालय से तो आशा की ही जाती है कि वह जमानत दे ।
३. न्यायालय ने आगे कहा कि अवैध धर्मांतरण के प्रकरण में यदि मोहम्मद शाद के विरुद्ध ठोस प्रमाण मिलते हैं तो निचली अदालत उस पर विचार कर दंड निश्चित करेगी । फिलहाल यह प्रकरण जमानत के लिए सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है । ऐसा प्रतीत नहीं होता कि इस प्रकरण में याचिकाकर्ता को हिरासत में रखने की आवश्यकता है ।