हम पूरे भारत को शाकाहारी नहीं बना सकते ! – उच्च न्यायालय
कोलकाता (बंगाल) – कोलकाता उच्च न्यायालय की एक अवकाश पीठ ने काली पूजा के अवसर पर दक्षिण दिनाजपुर के बोल्ला काली मंदिर में पशु बलि पर प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया । न्यायालय ने कहा कि पूर्वी भारत की धार्मिक प्रथाएं उत्तर भारत से भिन्न हैं । इसलिए उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा । कई समुदायों के लिए ये ‘आवश्यक धार्मिक प्रथाएं’ हो सकती हैं । हम पूरे भारत को शाकाहारी नहीं बना सकते ।
१. अखिल भारतीय कृषि गो सेवक संघ द्वारा प्रविष्ट की गई याचिका में १ नवंबर को होने वाली पशु बलि को रोकने के लिए तत्काल राहत की मांग की गई; हालांकि, न्यायालय ने यह कहते हुए स्थगन पर असहमति जताई कि प्रकरण को पूरा सुने बिना अंतरिम आदेश जारी करना उचित नहीं होगा ।’
२. उच्च न्यायालय ने माना कि पशु बलि एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है तथा उत्तर भारत एवं पूर्वी भारत के मध्य एक आवश्यक प्रथा में बड़ा अंतर है । पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे अथवा मांसाहारी, यह तर्क का विषय है ।
३. संगठन ने न्यायालय से मांग की कि वह राज्य के विभिन्न मंदिरों में सबसे वीभत्स तथा बर्बर ढंग से की जा रही अवैध पशु बलि को रोकने के लिए भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को तत्काल निर्देश दे । जब न्यायालय ने उनसे पूछा कि क्या वह सभी मंदिरों में प्रतिबंध चाहते हैं, तो उन्होंने कहा कि अभी तो दक्षिण दिनाजपुर के एक विशेष मंदिर (बोल्ला काली मंदिर) में प्रतिबंध चाहते हैं ।
४. इस पर न्यायालय ने कहा कि एक बात तो स्पष्ट है कि अगर भारत के पूर्वी क्षेत्र को शाकाहारी बनाना है तो ऐसा नहीं हो सकता । आपको धारा २८ (पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, १९६०) की (देशव्यापी) वैधता को चुनौती देने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि बलि की प्रथा काली पूजा अथवा किसी अन्य प्रकार की पूजा की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। भारत के पूर्वी भाग के नागरिक इसका पालन करते हैं । खान-पान की आदतें भिन्न भिन्न हैं ।
५. पिछले वर्ष संगठन ने न्यायालय से ‘बोल्ला काली पूजा’ के अवसर पर १० हजार बकरियों तथा भैंसों के वध पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था । तब भी न्यायालय ने पशु बलि रोकने के लिए अंतरिम राहत देने से मना कर दिया था । हालांकि, पीठ इस बड़े प्रश्न पर विचार करने के लिए सहमत हुई कि क्या बंगाल में पशु बलि वैध थी ।
संपादकीय भूमिकाध्यान दें कि बकरीद के दिन पशुओं की कुर्बानी को लेकर कभी कोई न्यायालय नहीं जाता ! |