स्वीडन के मूल नागरिकों की संख्या में हो रहा ह्रास तथा शरणार्थी मुसलमानों की संख्या में हो रही वृद्धि !
स्टॉकहोम (स्वीडन) – स्वीडन के मूल निवासी अमेरिका जैसे देश में घर ढूंढ रहे हैं । इस समय स्वीडन शरणार्थियों की पसंद का स्थान बना है । स्वीडन में शरणार्थियों की संख्या २० लाख से अधिक हुई है जो स्वीडन की कुल जनसंख्या का १/५ अंश अर्थात २०% है । दूसरी ओर स्वीडन सरकार उनका देश छोडकर जानेवालों को पैसा दे रही है । इस कारण स्वीडन के मूल नागरिक अमेरिका जैसे देशों में जा रहे हैं , तो भी स्वीडन की जनसंख्या बढ रही है । इसके पीछे का कारण मुसलमान शरणार्थी ही हैं । इसी कारण आने वाले कुछ वर्षों में स्वीडन के इस्लामी देश होने पर कोई आश्चर्य नहीं होगा, ऐसा कहा जा रहा है । शरणार्थियों की बढती हुई जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए स्वीडन सरकार ने अनेक प्रतिबंध लगाए हैं । स्वीडन में सीरिया, सोमालिया, ईरान और इराक इन इस्लामी देशों से आने वाले मुसलमानों की संख्या अधिक है । हाल ही के कुछ वर्षों में स्वीडन में हिंसा की अनेक घटनाएं हुई हैं । यहां पिछले वर्ष लगभग ३४८ गोलीबारी की घटनाएं हुई थीं , जिसमें ५२ लोगों की मृत्यु हो गई थी । इसके लिए शरणार्थियों को उत्तरदायी बताया जा रहा है ।
स्वीडन १९९० के दशक से बडी संख्या में शरणार्थियों का स्वागत करता था; लेकिन अक्टूबर २०२२ में उल्फ क्रिस्टरसन के प्रधानमंत्री बनने के उपरांत उन्होंने देश की नीतियां बदलीं । उन्हें राष्ट्रवादी विचारधारा की स्वीडन डेमोक्रेट पार्टी का भी समर्थन है । यह पार्टी शरणार्थी विरोधी है । ‘शरणार्थियों के कारण देश की संस्कृति ही नहीं, तो अर्थव्यवस्था को भी हानि पहुंचती है’, ऐसा इसका मत है ।
स्वीडन सरकार देश छोडनेवाले को देती है ८० सहस्र रुपए !
जिन्हें स्वीडन की संस्कृति पसंद नहीं अथवा जो आत्मसात नहीं कर सकते, वे स्वीडन छोडकर जा सकते हैं, ऐसा नया प्रस्ताव स्वीडन की मंत्री मारिया स्टेनगार्ड ने दिया है । स्वीडन के नागरिकों के देश छोडने पर उन्हें सरकार की ओर से ८० सहस्र रुपए मिलते हैं । इसके अतिरिक्त उन्हें किराए का पैसा भी दिया जाता है । देश छोडने से पहले उन्हें यह पैसा एक ही समय मिलता है । देश छोडकर जानेवालों को अधिक पैसे देने का तथा इस राशि को बढाकर लगभग १२ लाख रुपए करने का विचार था; लेकिन इसका बहुत विरोध हुआ । सरकार का कहना है कि देश छोडकर जाने के लिए पैसा बढाया, तो ‘स्वीडन लोगों को पसंद नहीं’, ऐसा संदेश जाएगा ।
संपादकीय भूमिकामुसलमानों की संख्या बढने पर इससे अलग कुछ भी नहीं होता, यह भारत सहित विश्व के अनेक देशों ने अनुभव किया है और कुछ लोग यह अनुभव करने के समीप पहुंचे हैं । भारत में तो पुन: यह अनुभव आने की स्थिति निर्माण हुई है ! |