#Diwali : नरक चतुर्दशी के दिन सवेरे अभ्यंगस्नान क्यों करते है ?

शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नाम से जानते हैं । इस तिथि के नाम का इतिहास इस प्रकार है –

‘पूर्वकाल में प्राग्ज्योतिषपुर में भौमासुर नामक एक बलशाली असुर राज्य करता था । उसका एक अन्य नाम भी था – नरकासुर । यह दुष्ट दैत्य देवताओं और पुरुषों के साथ-साथ स्त्रीयों को भी अत्यंत कष्ट देने लगा । जीतकर लाई हुई सोलह सहस्र राज्यकन्याओं को उसने बंदी बनाकर उनसे विवाह करने का निश्चय किया । सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । यह समाचार मिलते ही भगवान श्रीकृष्णने सत्यभामासहित उस असुरपर आक्रमण किया । नरकासुर का अंत कर सर्व राजकन्याओं को मुक्त किया । वह दिन था शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का । तबसे यह दिन नरकचतुर्दशी के नाम से मनाते हैं ।’

मरते समय नरकासुर ने भगवान श्रीकृष्ण से वर मांगा, कि ‘आज के दिन मंगलस्नान करनेवाला नरक की यातनाओं से बच जाए ।’ तदनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उसे वर दिया । इसलिए इस दिन सूर्योदय से पूर्व अभ्यंगस्नान करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को दिए गए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंगस्नान करता है, उसे नरकयातना नहीं भुगतनी पडती ।

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