#Diwali : विनाशकारी पटाखोंपर प्रतिबंध लगाएं !

अमावास्याका अंधेरा कान फाडनेवाले पटाखोंके कारण दूर नहीं होता; अपितु आंखोंके समक्ष जुगनूके समान चमककर सर्वत्र गहराता हुआ अंधकार होनेका ही भ्रम होता है । कानके पर्दे फाडनेवाले, हृदयरोगियोंको मृत्युके निकट ले जानेवाले, अबोध बालकोंको भयसे कांपनेके लिए बाध्य करनेवाले और कर्णभेदी स्वरके साथ अत्यधिक प्रदूषण बढानेवाले पटाखे केवल दीपावलीकी ही नहीं, अपितु विवाहकी शोभायात्रा, क्रिकेट खेलमें मिली सफलता और धार्मिक अथवा राजकीय शोभायात्राका अभिन्न अंग बन गए हैं । पटाखोंसे होनेवाले विध्वंसके लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं ।

विनाशकारी पटाखोंपर प्रतिबंध लगाएं !

१. हिंदुओंके त्यौहारमें आई विकृतियां !

१ अ. हिंदुओंके त्यौहारसे बढ रहे उपद्रवमूल्य : एक समयपर सार्वजनिक गणेशोत्सव मराठी समाजकी अभिमानास्पद सांस्कृतिक परंपरा मानी जाती थी । इसका लज्जाजनक अवमूल्यन हुआ है । न्यायालयके निर्णय एवं दंडविधान (कानून) की चिंता न कर देर रात्रितक डांडिया खेलनेवालोंने दशहरेके पूर्वकी नवरात्रिमें नाकमें दम कर रखा है । कर्णकर्कश स्वरके पटाखोंकी गली-गलीमें आतिषबाजी करनेवाले लोगोंने दीपावलीकी कालावधिमें भय निर्माण किया है ।

१ आ. दीपावलीके त्यौहारको उपद्रवका स्वरूप प्राप्त होना, यह अत्यधिक धनवानोंके काले धनसे निर्मित विकृति

‘हम ही समाज हैं’, ऐसे माननेवाले धन्नासेठके काले धनकी संस्कृतिके सामने मध्यमवर्गीय शरणागत होनेसे वर्तमानमें ‘अधिकाधिक लोगोंको कष्ट देकर त्यौहार मनाना एक प्रथा ही बन गई है । अवैध मार्गसे प्राप्त विपुल संपत्तिवाले लोगोंमें मानो दीपावली अधिकाधिक लोगोंके ध्यानमें आने हेतु इस प्रकारसे दीपावली मनानेकी प्रतियोगिता ही आरंभ हुई है । इसके फलस्वरूप दीपावलीके आनंदका यह आविष्कार अधिक उपद्रवकारी सिद्ध हुआ ।

२. दीपावलीमें जलाए जानेवाले पटाखोंके दुष्परिणाम !

 २ अ. पटाखोंसे होनेवाली दुर्घटनाएं !

१. वर्ष १९९७ में दिल्लीमें किए गए निरीक्षणसे ज्ञात हुआ है कि पटाखोंसे केवल उस नगरमें ३८३ लोगोंकी मृत्यु और ४४२ लोगोंको कष्ट हुआ ।

२. वर्ष १९९९ में हरियाणामें स्थित सोनपतमें पटाखोंके कारण लगी आगमें ४४ लोगोंकी मृत्यु हुई ।

३. वर्ष १९९९ में महाराष्ट्रके जलगांव जनपदमें पटाखोंसे आग लगकर पूरा हाट (बाजार) ही जलकर भस्मसात हो गया और इससे लक्षावधि रुपयोंकी हानि हुई ।

४. पटाखोंके कारण दूसरोंके घरमें जलता हुआ बाण जाकर दुर्घटनाएं होती हैं ।

२ आ. भौतिक दृष्टिसे

पटाखोंसे आग लगकर दुर्घटना होनेके अतिरिक्त कानोंको क्षति पहुंचाते हैं । कानोंको बधीर करनेवाले पटाखोंसे पुराने भवनमें दरारें पडनेकी संभावना रहती है । घरका ‘प्लास्टरिंग’ ढीला होता है । बिजलीके बल्ब जलते अथवा गिर जाते हैं ।

२ इ. आरोग्यकी दृष्टिसे !

पटाखोंसे होनेवाले रोगोंमें ६० प्रतिशत १२ वर्र्षसे अल्पआयुके बालक होते हैं ।

२ इ १. ध्वनिप्रदूषणसे होनेवाली आरोग्यकी हानि !

२ इ १ अ. रुग्णालयमें जन्में नवजात शिशु तथा रुग्णोंको पटाखोंकी आवाजसे अनोखा उपसर्ग होता है ।

२ इ १ आ. कर्णकर्कश पटाखोंके कारण सदाके लिए बहरे होनेकी संभावना है । पटाखोंसे कान सुन्न हो जाते हैं । श्रवणयंत्रणामें विद्यमान कोशिकाएं यदि मृत हो जाएं, तो उनका पुनः निर्माण नहीं होता ।

२ इ १ इ. पटाखोंके ध्वनिप्रदूषणसे शिरोवेदना (सिरदर्द), रक्तदाब तथा हृदयविकार समान विकार बढते हैं ।

२ इ १ ई. पटाखोंकी आवाजसे श्वसनमार्ग एवं फेफडोंके रोग बढते हैं ।

२ इ १ उ. गर्भवती महिलाओंको पटाखोंके ध्वनिप्रदूषणसे हानि होती है ।

२ इ २. वायुप्रदूषणसे होनेवाली आरोग्यकी हानि !

२ इ २ अ. पटाखे जलाते समय भारी मात्रामें विषैला धुआं निकलता है जिससे दीपावलीकी कालावधिमें अस्थमाके रोगियोंमें वृद्धि होती है ।

२ इ २ आ. पटाखोंसे वातावरणमें फैलानेवाली विषैली वायु सभी नागरिकोंके आरोग्यके लिए हानिकारक होती है ।

२ ई. पर्यावरणकी दृष्टिसे

पटाखोंसे केवल पैसोंका ही अपव्यय नहीं होता, अपितु भारी मात्रामें कूडा-कचरा, धूल, धुआं आदि अनिष्ट वस्तुओंकी निर्मिति अकारण ही होती है ।

२ उ. आर्थिक दृष्टिसे

१. करोडों रुपयोंके पटाखोंका धुआं हवामें छोडना अयोग्य ! : केवल महाराष्ट्रमें दिवालीमें १२ करोड रुपयोंके पटाखे जलाए जाते हैं । यह संख्या वर्ष १९९९ की है । आज लगभग १०० करोडो रुपयोंसे अधिक पटाखे चलाए जाते हैं । संपूर्ण भारतमें सहस्रों करोड रुपयोंके जलाए जाते होंगे ! दीपावलीके त्यौहारका आनंद मनानेके लिए करोडों रुपयोंका धुंआ हवामें छोडना क्या उचित है ?

२. पटाखे जलाना अर्थात् दीपावालीमें अपना दीवालियापन निकालना ही है : वास्तवमें दीपावली पटाखे बेचनेवालोंकी होती है; इसलिए कि विक्रेता पांच रुपयोंका पटाखा बीस रुपयोंको बेचते है । ऐसा होनेपर भी पांच-पांच, दस-दस सहस्र रुपयोंके पटाखे जलानेवाले लोग अल्प नहीं हैं । वास्तवमें तो दीपावली पटाखे-विक्रेताओंकी ही होती है । इसलिए कि शेष लोगोंकी दीपावली, इसके दिवाली दुष्परिणाम सहन करनेमें ही जाती है । दीपावलीसे वास्तवमें उनका दिवाला ही निकलता है ।

२ ऊ. मानसिक दृष्टिसे !

पटाखोंसे छोटे बच्चामें निर्माण होनेवाली विकृति ! : घर आए भिखारीको एकाध खानेकी वस्तु देनेके ऐवज उसके पांवके समीप ‘अटमबम’ फोडकर उसे भगानेमें वर्तमानके छोटे बच्चे अपने आपको धन्य समझते हैं । यह विकृति पटाखोंके कारण निर्मित हुई है । यह सभी दुष्परिणाम देखनेपर पटाखे न जलानाही श्रेयस्कर है !

३. पटाखोंके विषयमें विदेशियोंकी प्रशंसनीय नीति !

३ अ. अमेरिका : अमेरिकाके समान सुधारित विकसित देशमें आवाज करनेवाले धोखादायी पटाखोंपर प्रतिबंध लगाया गया है । वहां केवल सौंदर्यके, उदा. आवाज न होनेवाले केवल प्रकाश देनेवाले पटाखे जलानेकी अनुमति दी गई है । उसके लिए भी अनुज्ञापत्र लेना आवश्यक है । प्रसंगवश आवाज करनेवाले पटाखे जलानेके लिए विशेष अनुमति लेनी होती है । इस प्रकारकी अनुमति देते समय किसीके लिए भी धोखादायक न हो, ऐसी बस्तीसे दूरके स्थानपर पटाखे जलानेकी अनुमति दी जाती है । यह अनुमति देते समय वहां अग्निशमक दलका प्रबंध किया है अथवा नहीं, यह भी देखा जाता है । क्या हमारे यहां ऐसी दक्षता ली जाती है ?

३ आ. न्यूजीलैंड, इटली, फ्रांस और बेल्जियम : यहां केवल वृद्ध, प्रौढ व्यक्ति ही पटाखे क्रय कर सकते हैं । इस आधारपर भारतमें भी ऐसा दंडविधान होना आवश्यक है ।

४. पटाखोंके दुष्परिणाम रोकनेके लिए उपाय !

पटाखोंसे होनेवाली उपरोक्त हानि रोकना, क्या हमारे लिए संभव नहीं है ? पटाखे जलानेका मोह टालनेसे यह सहज संभव है । इसके लिए यह करें !

४ अ. बच्चों, पटाखे नहीं जलओगे, ऐसी शपथ प्रत्येक विद्यालयमें लें ! : मुंबईकी कुछ पाठशालाओंमें दीपावलीकी छुट्टियां आरंभ होनेसे पूर्व बच्चोंने दीपावलीमें पटाखें नहीं जलाएंगे, ऐसी शपथ ली थी ।

४ आ. अभिभावको, पटाखे बनानेके लिए बालश्रमिक प्रयुक्त किए जाते हैं; इसलिए पटाखे न जलानेके संदर्भमें बच्चोंका प्रबोधन करें ! : भारतमें पटाखोंकी नगरीमें अर्थात् तमिलनाडूमें शिवकाशीमें इन पटाखोंकी निर्मितिके लिए विशेषरूपसे बालश्रमिकोंका उपयोग किया जाता है । इन पटाखोंके कारखानेमें निरंतर कष्टसे तथा वहांकी विषैली वायुके प्रदूषणसे बालकोंका जीवन दूभर हो जाता है । यह स्थिति ध्यानमें रख अभिभावक अपने बच्चोंका दीपावलीमें पटाखोंका बहिष्कार करनेके लिए प्रबोधन करें ।

४ इ. लोगो, पटाखे जलाते समय इसका ध्यान रखें : वर्ष २००५ में सर्वोच्च न्यायालयद्वारा शोरबंदीके संदर्भमें दिए निकालके संदर्भमें रात्रिमें १० से सवेरे ६ बजेतक पटाखे जलाना अपराध माना गया है । उसी प्रकार शासकीय, निमशासकीय, निजी, धर्मदाय विश्वस्त संस्थाओंके रुग्णालय एवं नागरिकोंको कष्ट होगा, ऐसे स्थानोंपर पटाखे जलानेके लिए प्रतिबंध लगाया गया है ।

४ ई. पटाखोंमें व्यय होनेवाला धन राष्ट्रकार्यमें लगाएं ! : तोफो और बमोंकी देशकी सीमारेखाओंपर अत्यधिक आवश्यकता है । अतः पटाखोंपर निरर्थक ही पैसोंका दुरुपयोग करनेके स्थानपर वही धन राष्ट्रकार्यमें सुरक्षा विभागमें लगानेसे सत्कार्यमें उनका विनियोग होगा ।

४ उ. राजनेताओ, पटाखोंके दुष्परिणाम रोकनेके लिए ठोस कदम उठाएं !

१. भवनके समीप अथवा बस्तीमें कर्णकर्कश पटाखे जलानेपर कानूनन कडी कार्यवाही होनी चाहिए ।

२. ध्वनिप्रदूषण एवं वायुप्रदूषणको रोकनेके लिए पटाखोंपर पूर्णतः प्रतिबंध लगाना चाहिए ।

३. ‘पटाखोंका उत्पाद अपराध घोषित करनेके लिए तत्काल ठोस कदम उठाने चाहिए । यह काम राजनेता एवं लोकप्रतिनिधियोंका है ।

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