तिथि : पौष शुक्ल ५ (१५ जनवरी २०२४)
१. साधना की दृष्टि से महत्त्व
इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होता है । साधना करनेवाले को इस चैतन्य का लाभ होता है ।
२. त्योहार मनाने की पद्धति
अ. मकर संक्रांति के काल में तीर्थस्नान करने पर महापुण्य मिलना : ‘मकर संक्रांति पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्यकाल रहता है । इस काल में तीर्थस्नान का विशेष महत्त्व है । गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के किनारे स्थित क्षेत्र में स्नान करनेवाले को महापुण्य का लाभ मिलता है ।’
आ. ‘पर्वकाल में दान का महत्त्व : मकर संक्रांति से रथसप्तमी तक का काल पर्वकाल होता है । इस पर्वकाल में किया दान, पुण्यकर्म विशेष फलदायी होता है ।
३. दान करने योग्य वस्तुएं
‘नए बर्तन, वस्त्र, अन्न, तिल, तिलपात्र, गुड, गाय, घोडा, स्वर्ण अथवा भूमि का यथाशक्ति दान करें । इस दिन सुहागिनें दान करती हैं । सुहागिनें जो हलदी-कुमकुम का दान देती हैं, उसे ‘उपायन देना’ कहते हैं ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’)