दुर्घटनाग्रस्त की सहायता के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बताईं उपाययोजनाएं !

१. पुलिस की माथा-पच्ची से बचने के लिए लोगों का दुर्घटनाग्रस्तों की सहायता करना टालना

हम कई बार सुनते हैं अथवा चलचित्र (फिल्म) में देखते हैं कि कोई मार्ग पर दुर्घटनाग्रस्त अवस्था में पडा है और उसे तत्काल वैद्यकीय सहायता की आवश्यकता है । ऐसे में बिना कारण पुलिस से कष्ट न हो; इसलिए उस दुर्घटनाग्रस्त को सहायता नहीं मिलती । समय रहते रुग्णालय में न पहुंचने से दुर्घटनाग्रस्त के प्राण चले जाते हैं । अधिकांशत: लोग प्रेक्षक (मूक दर्शक) की भूमिका में रहते हैं । कुछ लोग तो सहायता न कर दुर्घटना का भ्रमणभाष (मोबाइल) पर चित्रीकरण कर उसे सामाजिक माध्यमों पर अपलोड’ करते हैं । ऐसा अनेक बार होता है कि दुर्घटनाग्रस्त की सहायता करनेवाला व्यक्ति न्यायालय और पुलिस के चक्कर में फंस जाता है । कभी-कभी उसे साक्ष्य भी देनी पड जाती है । तब  पुलिस की कार्यवाही के झंझट-झमेलों से वह झुंझला जाता है । इसके परिणामस्वरूप वह सहायता करने में झिझकता है । इसके दूरगामी परिणाम मानवता पर होते हैं । सुप्रसिद्ध ‘मशाल’ चलचित्र (फिल्म) में दिलीप कुमार रात के समय मार्ग में विवश होकर सहायता मांगता है, किंतु कोई उसकी सहायता नहीं करता । इसका कारण जो कुछ भी हो,व्यक्ति अकारण झंझट-झमेलों के भय से सद्भावना से दूर रहता है । इससे कई बार दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की वहीं पर मृत्यु हो जाती है ।

दुर्घटनाग्रस्त की सहायता करने से डरती है पुलिस ? अब नहीं..

२. दुर्घटनाग्रस्त की त्वरित सहायता करनेवाले की सुरक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय दरा केंद्रीय मार्ग और यातायात मंत्रालय को नियमावली बनाने का आदेश

अधिवक्ता शैलेश कुलकर्णी

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ‘परमानंद कटरा विरुद्ध भारत शासन’, इस अभियोग में लिखा है कि दुर्घटनाग्रस्तों को त्वरित सहायता मिलना, यह उनका मूलभूत अधिकार है । पुलिस प्रकरण आदि औपचारिकता तत्पश्चात भी देखी जा सकती है । दुर्घटना के समय सहायता के लिए दौडे आना तथा अपघातग्रस्त को तुरंत पास के रुग्णालय में ले जानेवाला वास्तव में भगवान का दूत ही होता है । अंग्रेजी में उन्हें ‘गुड समारीटन्स्’, कहते हैं । एैसे ‘गुड समारीटन्स्’ के लिए और उन्हें विधि का (कानूनी) संरक्षण देने के लिए ‘सेव लाईफ फाउंडेशन विरुद्ध भारत सरकार’ अभियोग चर्चा में आया था । वर्ष २०१२ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित समिति के प्रतिवेदन के अनुसार केंद्रीय मार्ग और यातायात मंत्रालय को त्वरित नियमावली बनाने का आदेश दिया । १२.५.२०१५ को संबंधित मंत्रालय ने ‘गुड समारीटन्स् गाईड लाईन्स’ प्रकाशित की । आगे इन नियमावलियों का रूपांतरण विधिनियम (कानून) में हुआ । इस ‘गुड समारीटन्स्’ को प्रोत्साहन देने, तथा देश को इसकी पूरी जानकारी देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस थानों और रुग्णालयों को ये नियमावलियां दी हैं ।

GOOD SAMARITAN GUIDELINES

३. दुर्घटनाग्रस्त सहायकों के प्रोत्साहन के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुलिस और रुग्णालयों के लिए निर्धारित नियमावली !

अ. यदि सहायक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को निकट के रुग्णालय में ले जाए, तो उसे किसी भी कारणवश वहां न रोकना ।

आ. सरकार ऐसे व्यक्ति को उचित पारितोषिक दे ।

इ. आधुनिक वैद्य (डॉक्टर) घायल लोगों पर उपचार करने में टालमटोल करे, तो ऐसे आधुनिक वैद्यों को अनुशासनभंग की कार्यवाही का सामना करना पडेगा ।

ई. सभी रुग्णालयाें में हिन्दी, अंग्रेजी और प्रादेशिक भाषा में ऐसा फलक (बैनर) लगाएं कि ‘हम सहायक व्यक्ति को रोकेंगे नहीं और न ही उससे पैसे लेंगे ।’ यह फलक रुग्णालय के दर्शनीय भाग में लगाया जाए, जिससे सभी का इसपर ध्यान जाए ।

उ. सभी शासकीय और निजी रुग्णालय इसका कडा अनुपालन करें, अन्यथा कार्यवाही का सामना करना पडेगा ।

ऊ. जो पुलिस अधिकारी सहायक को किसी भी प्रकार से सताने का प्रयास करेंगे, उन पर उनके वरिष्ठों को कठोर कार्यवाही करनी ही होगी ।

ए. जो सहायक व्यक्ति पुलिस थाना अथवा रुग्णालय को दूरभाष कर दुर्घटना की जानकारी देगा और वह प्रत्यक्ष साक्षी न हो, तो ऐसे व्यक्ति को अपना नाम, पता, दूरभाष क्रमांक बताना कदापि बंधनकारक न होगा ।

ऐ. ऐसी जानकारी देनी है अथवा नहीं, यह निश्चित करने का अधिकार सहायक को है । उस व्यक्ति को साक्ष के लिए बुलाना बंधनकारक नहीं है । यदि वह व्यक्ति स्वेच्छा से आए, तो उससे पुलिस थाने में सम्मानजनक आचरण हो । साक्ष लिखानी हो, तो पुलिस उसके घर वर्दी में न जाकर सम्मानपूर्वक उसकी साक्ष लिखेंगे । ऐसा होने पर उसे पुलिस थाना और न्यायालयीन कामकाज से कष्ट नहीं होगा । साथ ही जहां आवश्यक हो, वहां पुलिस दुभाषी की व्यवस्था करे ।

ओ. सहायक को पुलिस धन्यवाद दे; इसलिए कि उनकी सहायता के कारण पुलिस का बहुतसा काम कम हो जाता है । सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दुर्घटनाग्रस्त के प्राण बच जाते हैं ।

औ. दंडित अपराधी हो अथवा कोई अन्य, उसके प्राण बचाना महत्त्वपर्ण  है ।’ (५.११.२०२२)

—अधिवक्ता शैलेश कुलकर्णी, कुर्टी, फोंडा, गोवा.