पुनः मंदी की आहट ?

‘सिलिकॉन वैली बैंक’ दिवालिया

अमेरिका की ‘सिलिकॉन वैली बैंक’ के दिवालिया होने के कारण पुनः एक बार अंतरराष्ट्रीय हाट (बाजार) में उथल-पुथल (खलबली) मच गई है । इसके कारण भारतीय शेयर बजार बडे स्तर पर नीचे (गिर) आ गया है । सिलिकॉन वैली बैंक अमेरिका की १६ बडी बैंकों में से एक है । यह बैंक सूचना-प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य से संबंधित तथा अन्य उदयोन्मुख नए प्रतिष्ठानों को ऋण देता है, जिसके कारण इस बैंक से बहुत बडे स्तर पर पैसे का लेन-देन होता था । इस बैंक के मूल प्रतिष्ठान ‘एस.वी.बी. फाइनेंशियल ग्रुप’ के शेयर्स ८५ प्रतिशत से नीचे आ गए । उसके उपरांत इस बैंक को बंद कर दिया गया । इस बैंक को बंद किए जाने की घोषणा के कारण पूरे विश्व की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं तथा इससे पुनः आर्थिक मंदी आने की स्थिति उत्पन्न हो गई है ।

‘सिलिकॉन वैली बैंक’ की संपत्ति २०९ अरब डॉलर्स (१७ सहस्र १३० करोड रुपए से अधिक) है । इस बैंक की शाखाएं अमेरिका के अनेक शहरों में फैली हैं । इस बैंक ने अपने पैसों से मुद्रा (बौंड) खरीदे; परंतु उस पर ब्याज अल्प होने के कारण उसे इस निवेश से अच्छी आय नहीं हुई । अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के ब्याज दरों में निरंतर वृद्धि की है । इसके फलस्वरूप इन प्रतिष्ठानों को पैसे की आवश्यकता पडने से उन्होंने इस बैंक से अपने पैसे निकाल लिए । बढते ब्याज दरों के कारण सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश अल्प हो गया । बार-बार पैसे निकालने से बैंक को संपत्ति बेचनी पडी है । बैंक के बडे कर्जदारों को ऋण चुकाना कठिन हो गया है । निवेशकों पर भी बैंक की इस स्थिति का परिणाम हुआ । अब बैंक ने अपने शेयर्स बेचने का निर्णय लिया है तथा विश्व के सबसे धनवान व्यक्ति इलॉन मस्क ने ट्वीट कर इस बैंक को खरीदने की तैयारी दर्शाई है ।

अमेरिका के प्रतिष्ठानों की विश्वसनीयता ?

जनवरी माह में अमेरिका के शोध प्रतिष्ठान ‘हिंडनबर्ग’ ने भारत के अग्रणी उद्योगपति तथा उस समय के विश्व के दूसरे क्रम के अरबपति गौतम अदानी ने प्रतिष्ठानों के संबंध में नकारात्मक ब्योरा तैयार किया । किसी भी प्रतिष्ठान में हुई आर्थिक गडबडी ढूंढकर उसका विस्तृत ब्योरा तैयार कर प्रकाशित करने का काम ‘हिंडनबर्ग’ करता है । हिंडनबर्ग का यह ब्योरा प्रकाशित होने के उपरांत गौतम अदानी के प्रतिष्ठानों के शेयर बडी मात्रा में नीचे आ गए । उसके कारण विश्व में अदानी की बदनामी हुई तथा उससे उन्हें कुछ करोड रुपए का घाटा सहन करना पडा । जो प्रतिष्ठान विश्व पटल पर कुछ समय पूर्व चमकनेवाले अदानी के पीछे पड जाता है, वह प्रतिष्ठान अपने देश के इतने बडे बैंक की अनियमितताओं की अनदेखी क्यों करता है ? उनके पास भारत के अग्रणी प्रतिष्ठानों पर ध्यान रखने के लिए समय है; परंतु उन्हें अपने ही देश में डूब रही बैंकों की अनियमितताएं दिखाई क्यों नहीं देतीं ? या वे जानबूझकर उसकी अनदेखी करते हैं ?, यह देखना महत्त्वपूर्ण है । इससे यह स्पष्ट होता है कि ये अमेरिकी शोध (?) प्रतिष्ठान एवं संगठन कितने विश्वसनीय हैं ।

अमेरिका के विश्वविख्यात नियतकालिक ‘फोर्ब्ज’ ने कुछ ही दिन पूर्व सिलिकॉन वैली बैंक को ‘अमेरिका की सर्वाेत्तम बैंक के रूप में गौरवान्वित किया था । अब इस बैंक का दिवाला निकल जाने से अब इस गौरव के बारह बज चुके हैं । अमेरिका के प्रतिष्ठान किस प्रकार आंखें बंद कर एक-दूसरे की प्रशंसा करते हैं तथा वे अपने ही पैरों पर कैसे कुल्हाडी मार लेते हैं ?, इससे यह ध्यान में आता है । यही प्रतिष्ठान भारत में नाम कमा रहे प्रतिष्ठानों को फटकार लगाते हैं, झूठे ब्योरे बनाते हैं तथा भारत में अल्पसंख्यकों पर अन्याय एवं अत्याचार किए जाने के झूठे समाचार प्रसारित करते हैं, जिससे भारत जैसा विकासशील देश अमेरिका के आगे न निकल पाए ।

वर्ष २००८ की पुनरावृत्ति !

वर्ष २००८ में अमेरिका के ‘लेहमन ब्रदर्स’ नामक बैंकिंग उद्योग ने दिवालियापन घोषित किया था । उस समय केवल अमेरिका ही नहीं, संपूर्ण विश्व ही मंदी के संकट में फंस गया था । वर्ष २००१ से २००६ की अवधि में अमेरिका की बैंकों ने ‘रियल इस्टेट’ से संबंधित प्रतिष्ठानों को बडी मात्रा में ऋण दिए थे; परंतु ऋण देते समय इन बैंकों ने विचार नहीं किया कि इस ऋण के पैसे वापस कैसे आएंगे ? तब अमेरिकी ‘रियल इस्टेट’ का बाजार शीर्ष पर था । जब इस क्षेत्र में मंदी की स्थिति आई, उस समय बैंकों की समस्याएं बढीं तथा ऋण डूब जाने से उसमें ‘लेहमन ब्रदर्स’ बैंक डूब गई । उस समय भी अमेरिका सहित संपूर्ण विश्व को बडा झटका लगा था ।

आत्मनिर्भर बनना ही आवश्यक !

अमेरिका को विश्व का सबसे धनवान एवं समृद्ध देश माना जाता है । अमेरिका तथा वहां के उद्योगों की प्रशंसा होती है । वहां के उद्योगों एवं बैंकों पर विश्व अभी भी बहुत निर्भर है । इसके फलस्वरूप वहां की व्यवस्था एवं पद्धतियों का अनुकरण करने का प्रयास किया जाता है । जब यही व्यवस्था तहस-नहस हो जाती है, उन पर जब संकट आता है; उस समय भारत सहित संपूर्ण विश्व में कोहराम मच जाता है । विश्व को कैसे व्यवहार करना है ?, अमेरिका इसे सुनिश्चित करने का प्रयास करता है । दूसरी भाषा में कहा जाए, तो अमेरिका विश्व को नियंत्रित करने का प्रयास करता है । उसके फलस्वरूप भारत को अमेरिका के ताल पर नाचना पडा है । अमेरिका का अंधानुकरण करने की कांग्रेस की परंपरा रही है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से तथा उनके द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा देने के कारण देश कुछ मात्रा में सतर्क हुआ है । भारत को अमेरिका पर कितना निर्भर रहना है ?, यह सुनिश्चित करने का समय अब आ चुका है । भारत के पास प्रचुर साधन संपत्ति एवं प्राकृतिक संसाधन हैं । भारत को स्वतंत्र नीति बनाकर तथा धर्म पर आधारित विकास का नियोजन कर उस पर आगे बढना जारी रखना चाहिए । उससे एक न एक दिन भारत पुनः अपना ‘विश्व का क्रमांक १’ का स्थान प्राप्त करके ही रहेगा, यह निश्चित है !