चीनी सैनिक प्रत्येक वर्ष सीमा में घुसपैठ करने का प्रयास करते हैं और मार खाकर जाते हैं ! – मनोज नरवणे, पूर्व सेना प्रमुख

पूर्व सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे

नई देहली – चीनी सेना, यह स्वयं को २१ वीं शताब्दी की सबसे होशियार और व्यवसायिक सेना मानती है; परंतु उनके काम गुंडागर्दी और सडक पर मारपीट करने की अपेक्षा अधिक नहीं दिखता । यह केवल अभी का नहीं, तो चीनी सैनिक प्रतिवर्ष घुसपैठ करने का प्रयास करते हैं और प्रत्येक समय उन्हें शर्मिंदा होकर मार खाना पडता है, ऐसी जानकारी पूर्व सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे ने ‘ए.एन.आई.’ इस वृत्तसंस्था को दिए साक्षात्कार में दी ।

सौजन्य: ANI News

नरवणे द्वारा रखे सूत्र

१. एक ओर वे तकनीकी शक्ति दिखाने का प्रयास करते हैं और दूसरी ओर वे नुकीले डंडे लेकर आते हैं, यह हास्यास्पद है ।

२. भारत ,यह ऐसा देश है जिसने विश्व को दिखा दिया है कि, पडोसियों की दादागिरी को हम प्रतिउत्तर दे सकते हैं । मैं संपूर्ण विश्व को आत्मविश्वास से बताना चाहता हूं कि, हम सदैव तैयार हैं । हमारे ऊपर जो कुछ फेंका जाएगा, उसे प्रतिउत्तर देने के लिए हम तैयार हैं ।

३. चीन अनेक वर्षों से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर की परिस्थिति धीरे-धीरे बदलने का प्रयास कर रहा है ।

४. हम सदैव ही ‘पेट्रोलिंग पाईंट १५’ तक गश्त लगाते रहते हैं; परंतु चीनी सैनिक हमे ‘पेट्रोलिंग पाईंट’ पर जाने से रोकने का प्रयास करते थे । जो हमें स्वीकार नहीं था । हम गश्त लगाने से रोकने के लिए उन्होंने एक छोटी चौकी बनाई थी, जिस पर हमने जोरदार आपत्ति दिखाई । ऐसा होने पर भी ‘हम पीछे नहीं हटेंगे’, इस पर वे कायम रहे । इसपर हमारी सेना ने अधिक जोरदार विरोध किया । इसके उपरांत चीनी सैनिक अधिक संख्या में आए । इस प्रकरण पर वहां मारपीट हुई । तो भी अपनी सेना उन्हें वापस भेजने के लिए पर्याप्त थी ।

५. पूर्व जनरल नरवणे द्वारा पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का ‘वर्ष १९७१ के बांगलादेश युद्ध में पराजय ,यह राजकीय पराजय थी, पाकिस्तानी सेना की पराजय नहीं थी । पाक के केवल ३४ सहस्र सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसर्पण किया था, ९३ सहस्र ने नहीं’, इस विधान को नकार दिया । उन्होंने कहा कि, आप वास्तविकता और इतिहास बदल नहीं सकते । वर्ष १९७१ में पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी द्वारा आत्मसमर्पण करते समय का छायाचित्र ‘हम (भारत) कुछ भी न बोलते हुए क्या कर सकते हैं ?’, यह दिखाता है । कारगिल के समय भी पाक ने सत्य स्वीकार नहीं किया था ।