१. सौभाग्यालंकार अर्थात स्त्रियों को उनके पतिव्रत-धर्म का भान कराने का माध्यम
अ. ‘कुमकुम, मंगलसूत्र, कंगन, बिछिया आदि घटकों की सहायतासे, रजोगुण के सामर्थ्यपर विवाहित स्त्री अल्पावधि में पुरुषप्रधान शिवस्वरूप कर्तृस्वरूप से एकरूप हो सकती है; इसलिए स्त्री का क्रियाशीलत्व जागृत करके पति के कर्तृभाव में उसे परिपूर्ण सहायता कर, रजोगुण की सहायता से कृत्य और कर्म का उचित संबंध स्थापित करने हेतु विवाहित स्त्रियों पर विशिष्ट अलंकारों का कर्मबंधन रखा गया ।
आ. सौभाग्यालंकारों के माध्यम से स्त्री को तेजदायी तरंगों का स्पर्श होता है । उन्हें पतिव्रत-धर्म का निरंतर भान रहे, इसके लिए यह व्यवस्था की गई ।
२. स्त्रियों द्वारा अलंकार धारण करना, अर्थात स्वयं में विद्यमान देवत्व जागृत करना
अलंकारों के कारण स्त्री के शरीर में विद्यमान तेजतत्त्वरूपी आदिमाया का, आदिशक्ति का प्रकटीकरण होता है ।
३. अलंकारों से सुसज्जित स्त्री शक्तिजागृति का पूजनीय पीठ होना
‘अलंकारों से सुसज्जित स्त्री की ओर देखने पर पूज्यभाव उत्पन्न होने में सहायता मिलती है । इससे उसकी एवं अन्यों की भी शक्ति जागृत होती है । यह एक छोटासा शक्तिजागृति का पूजनीय पीठ है तथा देवता का निरंतर स्मरण करवानेवाली प्रतिमा है । स्थूल रूप में पूर्णत्व की दिशा में की गई यह यात्रा सगुण उपासना से निर्गुण की ओर ले जाती है और निर्गुण की अनुभूति प्रदान करती है ।’ – एक अज्ञात शक्ति (श्रीमती रंजना गडेकर के माध्यम से, २२.२.२००७) (संदर्भ – सनातन का ग्रंथ ‘आचारधर्म : अलंकार’)