‘मंदिरों और उनकी संपत्ति का समाज की प्रगति के लिए अपेक्षा के अनुरूप उपयोग नहीं होता !’

साईबाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुरेश हावरे का वक्तव्य !

डॉ. सुरेश हावरे

नागपुर – संपूर्ण देश में ३० लाख मंदिर हैं । उनमें छोटे-बडे अन्य मंदिरों को मिलाया जाए, तो यह संख्या लगभग १ करोडतक पहुंच जाएगी । उन्हें प्रतिदिन मिलनेवाला चंदा करोडों में हैं; परंतु समन्वय एवं उचित प्रबंधन के अभाव के चलते मंदिरों तथा उनकी संपत्ति का उपयोग समाज के विकास के लिए अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता । इसके लिए विश्वविद्यालय ‘टेंपल मैनेजमेंट’ का पाठ्यक्रम आरंभ करें । उससे तैयार होनेवाली नई पीढी इस कार्य में उतर गई, तो यही ३० लाख मंदिर देश में क्रांतिकारी परिवर्तन ला देंगे । श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी के पूर्व अध्यक्ष तथा परमाणु वैज्ञानिक डॉ. सुरेश हावरे ने एक भेंटवार्ता में ऐसा प्रतिपादित किया । उन्होंने ‘टेंपल मैनेजमेंट’ विषय पर एक पुस्तक भी लिखी है ।

उन्होंने आगे कहा…

१. देश के विश्वविद्यालय यह पाठ्यक्रम अपनाएं; इसके लिए मैने नागपुर, अमरावती, पुणे एवं विद्यालंकार विश्वविद्यालय, मुंबई के कुलगुरुओं से बातचीत की है ।

२. ‘एम्.बी.ए. इन टेंपल मैनेजमेंट’ पाठ्यक्रम आरंभ हुआ, तो इस क्षेत्र में प्रबुद्ध पीढी तैयार होगी । उसके कारण बडी संख्या में रोजगार उपलब्ध होने के साथ ही मंदिरों की संपत्ति का उपयोग समाज के हित के लिए होगा तथा देश में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा ।

३. मंदिरों का चेहरा सेवाभिमुख एवं समाजाभिमुख होना चाहिए । (मंदिरों का चेहरा केवल धर्माभिमुख ही हो, यह हिन्दुओं की भावना है । – संपादक) सभी मंदिरों से सामाजिक उपक्रम चलाने के लिए उत्तम व्यवस्थापन की आवश्यकता है, जो इस पाठ्यक्रम से पूर्ण हो सकती है । (सामाजिक उपक्रम चलाने के लिए सामाजिक अथवा सेवाभावी संगठन होते हैं; परंतु धर्म की रक्षा कोई नहीं करता । इसलिए मंदिरों से संबंधित पाठ्यक्रम धर्माधिष्ठित होना चाहिए ! – संपादक)

४. मंदिरों का उचित उपयोग हुआ, तो ‘मंदिर में दानपेटी की क्या आवश्यकता है ?’, यह प्रश्न पूछनेवालों को उत्तर मिलेगा । (मंदिरों की दानपेटियों का उपयोग धार्मिक कार्याें, साथ ही धर्मरक्षा एवं धर्मजागृति के कार्य के लिए ही होना चाहिए ! – संपादक)

संपादकीय भूमिका

  • मंदिर हिन्दू धर्म से संबंधित हैं; इसलिए उनका उपयोग समाज की भौतिक प्रगति की अपेक्षा धर्मकार्य के लिए होना उचित रहेगा !
  • आज धर्म का पतन हो रहा है । धर्म नष्ट करने का प्रयास हो रहा है, तो ऐसे में मंदिरों तथा उनकी संपत्ति का विनियोग धर्मरक्षा के कार्य के लिए करना प्रत्येक हिन्दू का धर्मकर्तव्य है । इसलिए सुरेश हावरे को मंदिरों की संपत्ति का उपयोग समाज के भौतिक विकास के लिए करने की अपेक्षा धर्म को पुनर्वैभव दिलाने के लिए कैसे हो सकेगा, इस दृष्टि से पाठ्यक्रम तैयार किए जाने चाहिएं, यह धर्मप्रेमी हिन्दुओं की भावना है !
  • ‘करोडों रुपए का भ्रष्टाचार कर जनता को लूटनेवाले अधिकांश राजनेताओं से वह पैसा वसूल कर उसका उपयोग समाज के विकास के लिए किया जाए’, ऐसा विचार हावरे क्यों नहीं रखते ?