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१. देवीमांको विशिष्ट फूल चढानेका शास्त्रीय आधार ।
विशिष्ट फूलोंमें विशिष्ट देवताके पवित्रक, अर्थात् उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकर्षित करनेकी क्षमता अन्य फूलोंकी तुलनामें अधिक होती है । स्वाभाविक है कि, ऐसे फूल देवताकी मूर्तिको चढाना मूर्तिको जागृत करनेमें सहायक हैं । इससे मूर्तिके चैतन्यका लाभ हमें शीघ्र मिलता है । इसलिए विशिष्ट देवताको विशिष्ट फूल चढाना महत्त्वपूर्ण है ।
१अ. देवीमां के विविध रूपोंको चढाए जानेवाले उपयुक्त फूल ।
१. श्री दुर्गादेवी को मोगरा अर्थात बेलाके फूल चढाना उपयुक्त होता है।
२. श्री लक्ष्मीदेवी को गेंदा
३. श्री शारदादेवी को रातरानी
४. श्री महाकाली को कनेर
५. श्री रेणुकादेवी को बकुल
६. श्री वैष्णोदेवी को रजनीगंधा
७. श्री विंध्यवासिनी देवी को कमल
८. श्री भवानीदेवी को स्थलकमल
९. श्री अंबामाता को पारिजात
१०. श्री महालक्ष्मीदेवी को गुलदाउदी
११. श्री सरस्वतीदेवी को स्वस्तिका के फूल चढाना उपयुक्त है ।
विशिष्ट फूलोंकी सुगंधकी ओर, विशिष्ट देवीका तत्त्व आकृष्ट होता है । इसलिए उस सुगंधकी उदबत्ती अर्थात अगरबत्ती के उपयोगसे भी उस विशिष्ट देवीके तत्त्वका लाभ अधिक मिलता है ।
१आ. देवीपूजन में निषिद्ध फूल ।
१. अपवित्र स्थलपर उत्पन्न हुए, पृथ्वीपर गिरे हुए तथा निर्गंध अथवा तीखी गंधवाले फूल
२. अनखिले फूल अर्थात कलियां अथवा बिखरी हुई पंखुडियोंवाले फूल
३. बाएं हाथसे लाए गए, पहने हुए अधोवस्त्रमें अर्थात निचले वस्त्रमें लाए गए अथवा सूंघे हुए फूल
४. दूसरोंको अप्रसन्न कर लाए हुए फूल
५. जलमें डुबोकर धोए हुए फूल
ऐसे फूल देवीमां को मत चढाइए । ऐसे फूल देवीमां को अर्पण करने से पूजक को कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता; अपितु देवीमांकी अवकृपा होनेसे ये पूजकके लिए हानिकारक हो सकता है । इसलिए उचित फूलोंका ही चयन करना चाहिए ।
२. उदबत्ती दिखाना
देवीमांको उदबत्ती दिखाते समय दाएं हाथकी तर्जनी एवं अंगूठेमें दो जलती उदबत्तियां पकड़कर दक्षिणावर्त्त दिशामें अर्थात घडीकी दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे देवीमांकी प्रतिमाके चारों ओर धीमी गतिसे तीन बार घुमाइए ।
देवीके तारक रूपकी उपासनाके लिए चंदन, गुलाब, मोगरा, केवडा, चंपा, चमेली, जाही, खस, रातरानी एवं अंबर, इन सुगंधोंवाली उदबत्तियोंका उपयोग कीजिए । इससे पूजकको देवीमांके चैतन्यका लाभ होता है । तथा देवीके मारक रूपकी उपासनाके लिए हिना एवं दरबारकी सुगंधोंवाली उदबत्तियोंका उपयोग कीजिए । इससे अनिष्ट शक्तियोंकी पीडा घटती है । अगरबत्ती दिखाते समय दो अगरबत्तियां घडीकी सूइयोंकी दिशामें अर्थात clockwise दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे देवीमांकी प्रतिमाके सर्व ओर धीमी गतिसे तीन बार घुमाइए ।
पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे देवीमांको दीपक दिखाइए ।
३. देवीमां के लिए नैवेद्य बनाना
नवरात्रिमें प्रत्येक दिन उपासक विविध व्यंजन बनाकर देवीमांको नैवेद्य अर्पित करते हैं । बंगाल प्रांतमें प्रसादके रूपमें चावल एवं मूंगकी दालकी खिचडीका विशेष महत्त्व है । मीठे व्यंजन भी बनाए जाते हैं । इनमें विभिन्न प्रकारका सीरा, खीर-पूरी, काले चने इत्यादिका समावेश होता है । महाराष्ट्रमें चनेकी दाल उबालकर उसमें गुड मिलाया जाता है । इसे ‘पूरण’ कहते हैं । इस पूरणको भरकर ‘पुरणपोळी’ अर्थात पूरणकी मीठी रोटी विशेष रूपसे बनाई जाती है । चावलके साथ खानेके लिए अरहर अर्थात तुवरकी दाल भी बनाते हैं ।
ये सभी कृतियां मंत्रपाठ, प्रार्थना अथवा नामजपसहित करनेसे उनका लाभ अपेक्षासे अधिक होता है । अब तक हमने व्यष्टी स्तरपर अर्थात व्यक्तिगत स्तरपर देवीमां की उपासनाके करनेसंबंधी कुछ विषयबिंदुओंको समझ लिया ।
४. नवरात्रि में देवीमां को अर्पित नैवेद्य में ‘पुरणपोळी’ अर्थात पूरणकी मीठी रोटी एवं अरहरकी दालके समावेशका कारण
चनेकी दाल एवं गुडका मिश्रण भरकर बनाई मीठी रोटी अर्थात ‘पुरणपोळी’ एवं अरहरकी दाल, इन दो व्यंजनोंमें विद्यमान रजोगुणमें ब्रह्मांडमें विद्यमान शक्तिरूपी तेज-तरंगें अल्पावधिमें आकृष्ट करनेकी क्षमता होती है । इससे ये व्यंजन देवीतत्त्वसे संचारित होते हैं । इस नैवेद्यको प्रसादके रूपमें ग्रहण करनेसे व्यक्तिको शक्तिरूपी तेज-तरंगोंका लाभ मिलता है एवं उसकी स्थूल एवं सूक्ष्म देहों की शुद्धि होती है।
५. देवीमां की आरती
देवताकी आरती करना देवतापूजन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । आरती का अर्थ है, देवताके प्रति शरणागत होना और उनका कृपाप्रसाद प्राप्त करनेके लिए आर्तभावसे उनका स्तुतिगान करना ! मनुष्यके लिए कलियुगमें देवताके दर्शन हेतु आरती एक सरल माध्यम है । आरतीके माध्यमसे अंत:करणसे देवताका आवाहन करनेपर देवता पूजकको अपने रूप अथवा प्रकाशके माध्यमसे दर्शन देते हैं । इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों एवं संतोंने विभिन्न देवताओंकी आरतीकी रचना की ।
देवीमां की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी आरती करते समय कुछ सूत्रोंका ध्यान रखना लाभदायक है । ये सूत्र हैं देवीकी आरती मध्यम वेगसे, आर्त्त स्वर में तथा भावसे गाइए । संभव हो, तो आरती करते समय शक्तियुक्त तरंगें निर्माण करनेवाले चर्मवाद्य हलके हाथसे बजाइए । देवीकी आरती दक्षिणावर्त्त अर्थात दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे उतारिए ।
आरती के उपरांत देवीमांकी एक अथवा नौ की संख्यामें परिक्रमा करनी चाहिए । इन सभी कृतियोंको भावसहित करनेसे पूजक को देवीतत्त्वका अधिक लाभ मिलता है ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार धार्मिक उत्सव एवं व्रत’