श्री गणेशोपासना एवं उससे संबंधित महत्वपूर्ण सूत्र

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१. श्री गणेशोपासना

श्री गणेशजी की उपासना में नित्यपूजा, अभिषेक, संबंधित व्रत एवं उपवास, अथर्वशीर्ष पाठ, संबंधित विविध श्लोक एवं मंत्रोंका विशिष्ट संख्या में पाठ, नामजप जैसे विविध कृत्यों का अंतर्भाव होता है । कुछ लोग विशेषरूपसे श्री गणेश सहस्रनाम का पाठ करते हुए, अर्थात श्री गणेशजी के १ सहस्र नामों में एक-एक का उच्चारण कर श्री गणेशजी को दूर्वा अर्थात दूब अर्पण करते हैं । इसे ‘दूर्वार्चन’ कहते हैं । सर्वसाधारणतः नित्य उपासना में श्री गणेशजी की मूर्ति का पूजन किया जाता है । इस में पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पू्जन किया जाता है । श्रीगणेशजी की उपासना से संबंधित चतुर्थी की विशेष तिथिपर गणेशभक्त अथर्वशीर्षका पाठ करते हुए मूर्तिपर अभिषेक करते हैं । अथर्वशीर्ष में श्री गणेशजी के रूपका वर्णन किया गया है । श्रीगणेशजीकी मूर्तिके दो प्रकार होते हैं, दक्षिणाभिमुखी मूर्ति एवं वाममुखी मूर्ति ।

२. दक्षिणाभिमुखी एवं वाममुखी मूर्ति की विशेषताएं

दक्षिण अर्थात दार्इं बाजू । दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाती है । दार्इं बाजू सूर्यनाडी की है । जो दक्षिण दिशा का सामना कर सकता है, वह शक्तिशाली होता है । जिस की सूर्यनाडी कार्यरत है, वह तेजस्वी होता है । इन दोनों अर्थों से दक्षिणाभिमुखी गणपति को ‘जागृत’ माना जाता है । दक्षिणाभिमुखी अर्थात ऐसी मूर्ति जिसकी सूंड दार्इं ओर मुडी हुई है । दक्षिण दिशा से रज तरंगें आती हैं, जिनके प्रभाव से व्यक्ति को कष्ट हो सकते हैं । इसीलिए कर्मकांड के सर्व नियमों का यथार्थ पालन कर दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा की जाती है । कर्मकांड के अंतर्गत शूचिर्भूतता, पावित्र्य, शौच-अशौच इत्यादि सभी नियमों का पालन करने से व्यक्ति की सात्त्विकता बढती है एवं दक्षिण दिशा से प्रक्षेपित रज तरंगों से उसे कष्ट नहीं होते । वाम अर्थात बार्इं बाजू । पूर्वकी ओर मुख कर खडे रहनेसे अपनी बार्इं ओर उत्तर दिशा होती है । उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक एवं आनंददायक है । बार्इं बाजू चंद्रनाडी की है । यह शीतलता प्रदान करती है । इसलिए पूजन में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है । वाममुखी मूर्ति की सुंड बार्इं ओर मुडी हुई होती है । इसका पूजन नित्य की पद्धति से किया जाता है ।

३. श्री गणेशजी का पूजन

नित्यपूजा में सभी देवताओं का पूजन किया जाता है । यहां हम सुविधा हेतु मात्र श्रीगणेशजी का पूजन दिखा रहे हैं । प्रतिदिन करने के नित्यपूजन में इस प्रतिमा का पूजन किया जाता है । आइए देखते हैं श्री गणेशजी का प्रत्यक्ष पूजन ..

१. श्री गणेशजी को अनामिकासे चंदन लगाइए ।

. श्री गणेशजीको लाल रंगके आठ फूल डंठल उनकी ओर कर चढाइए ।

३. श्री गणेशजीको दूर्वा चढाइए ।

४. यथासंभव श्रीगणेशजीको लाल फूल एवं दुर्वासे बनी माला भी चढाइए ।

५. अब दो अगरबत्तियां जलाकर श्रीगणेशजीको दिखाइए ।

६. घडीकी सूइयोंकी दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे, तीन बार आरती घुमाकर श्री गणेशजीको दीप दिखाइए ।

७. श्री गणेशजीको गुडखोपरेका नैवेद्य अर्पण कीजिए ।

पूजाके उपरांत श्रीगणेशजीकी आठ परिक्रमाएं कीजिए । यह संभव न हो, तो अपने सर्व ओर गोल घूमकर तीन परिक्रमाएं कीजिए । श्रीगणेश चतुर्थीके उपलक्ष्यमें श्रीगणेशपूजन करते समय अभी बताई गई बातोंको अवश्य ध्यान रखिए ।

४. श्री गणेशपूजनमें उपयोगमें लाई जानेवाली विशेष सामग्री

श्री गणेशपूजनमें दूर्वा, शमी एवं मदार की पत्तियां, लाल एवं सिंदूरी रंगकी वस्तुएं; जैसे रक्तचंदन, लाल एवं सिंदूरी वस्त्र एवं फूल विशेष रूपसे उपयोगमें लाए जाते हैं । श्री गणेशतत्त्वका अधिक लाभ होनेके लिए चंदन, केवडा, चमेली एवं खस, इन सुगंधोंकी अगरबत्तीका उपयोग लाभदायक है । अनिष्ट शक्तिके निवारण हेतु श्री गणेशजीकी उपासनामें हीना एवं दरबार इन सुगंधोंकी अगरबत्तीका उपयोग लाभदायक है । पूजाके उपरांत श्री गणेशजीके लिए मोदक एवं उनके वाहन मूषकके लिए खीरका नैवेद्य निवेदित करते हैं । लाल एवं सिंदूरी रंगके कारण प्रतिमामें गणेशतत्त्व अधिक मात्रामें आकृष्ट होता है । यह प्रतिमाको जागृत करनेमें सहायक होता है । जिस प्रकार लाल एवं सिंदूरी रंगका उपयोग देवतापू्जनमें गणेशतत्त्व आकृष्ट करनेके लिए लाभदायक है, उसी प्रकार व्यक्तिके लिए भी गणेशतत्त्व प्राप्त करनेके लिए लाल एवं सिंदूरी रंगके वस्त्र परिधान करना उपयुक्त होता है । इसी विषयसे संबंधित एक साधिकाको हुई बोधप्रद अनुभूति, महाराष्ट्रसे श्रीमती स्मिता जोशीकी है ।

५. साधनामंत्र

१. श्री गणेशाय नमः । : इसमें श्री अर्थात श्रीं तथा वह बीजमंत्र है । गणेशाय मूल बीज की संकल्पना है, जबकि नमः पल्लव है ।

२. ॐ गँ गणपतये नमः । : इसका अर्थ है – ॐ अर्थात प्रणव, गँ अर्थात मूल बीजमंत्र, गणपतये अर्थात आकृतिबंध को एवं नमः अर्थात नमस्कार करता हूं ।

६. लाल रंगकी साडीके कारण गणेशतत्त्व अधिक मात्रामें ग्रहण होना

२ अक्तूबर २००६ को मैंने लाल रंगकी जरीकी किनारवाली साडी परिधान की थी । साडी परिधान करनेके कुछ समय पश्चात मेरे सर्व ओर गणेशतत्त्वका वलय घूम रहा है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । उस समय उस वलयमें विद्यमान गणेशतत्त्व अत्यंत तेजस्वी दिखाई दे रहा था । लाल रंगकी साडी परिधान करनेके कारण मुझसे अधिक मात्रामें गणेशतत्त्व ग्रहण हो रहा है, इसका मुझे तीव्रतासे भान हुआ । उस समय मेरा भक्तिभाव एवं आनंद बढ गया । श्रीगणेशजीके चरणोंमें मैंने कृतज्ञता व्यक्त की । मेरी यह स्थिति चार घंटे बनी रही । श्रीमती स्मिता जोशीजीको हुई इस अनुभूतिद्वारा लाल रंगके वस्त्र पहननेसे श्री गणेशजीके तत्त्वतरंगोंका किस प्रकार लाभ होता है, यह ध्यानमें आता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)