श्री गणेश की अवमानना करनेवाली मूर्तियां !
यह छायाचित्र प्रकाशित करने का उद्देश धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है बल्कि अनादर कैसे किया गया है है, हम इसे समझने के लिए प्रकाशित कर रहे हैं ।
मुंबई – दक्षिण भारतीय चित्रपट ‘पुष्पा : द राइज’ में अभिनेता अल्लू अर्जुन के विशिष्ट पद्धति से दाढी को हाथ लगाने की कृति लोगों को पसंद आई थी । उस कृति के अनुसार अभी गणेशोत्सव में एक गणेश मूर्ति बनाई गई है और उसका छायाचित्र सामाजिक जालस्थल पर प्रसारित हो रहा है । उसमें श्री गणेशजी स्वयं की दाढी को उसी प्रकार हाथ लगा रहे हैं, ऐसा दिखाया गया है । इसकी सामाजिक माध्यमों में बडी मात्रा में प्रशंसा हो रही है, वहीं दूसरी ओर विरोध होकर संतप्त प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त की जा रही हैं ।
साम्यवादियों द्वारा जानबूझकर ऐसे मूर्तियों का प्रसारण किया जा रहा है क्या ? इसकी जांच करें ! – डॉ. सच्चिदानंद शेवडे, राष्ट्रीय व्याख्याता एवं इतिहासकार
अभी विनोद अथवा इको फ्रेंडली के नाम पर कागद, गोमय, फिटकरी, लुगदी आदि से श्री गणेश मूर्तियां बनाई जा रही हैं । पार्थिव मूर्ति का अर्थ काली मिट्टी, लाल मिट्टी एवं शाडू मिट्टी ऐसा होता है। इसी मिट्टी से बनाई गई मूर्तियां होनी चाहिएं । गणपति का रूप गणपति जैसा ही होना चाहिए। वह अभिनेता, अंतरालवीर, शिवराय, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, नरेंद्र मोदी व राजकीय नेताओं के रूप में न हो । नाचनेवाला, तबला बजानेवाला, ‘सैराट’ चलचित्र के आर्ची-परश्या की भूमिका के रूप में, या ‘बाहुबलि’, ‘छोटा भीम’ चलचित्र के भूमिकाओं जैसी श्री गणेश मूर्ति नहीं बनाई जानी चाहिए । अब अभिनेता के रूप में गणेश मूर्ति बनाई जा रही है । ‘पुष्पा’ चलचित्र का अभिनेता अल्लू अर्जुन के रूप में श्री गणेश को दिखाकर ‘झुकेगा नहीं साला’ यही वाक्य ध्यान में आएगा और उसका स्मरण करवाएगा । कहीं साम्यवादियों द्वारा जानबूझकर ऐसे मूर्तियों का प्रसारण तो नहीं किया जा रहा ? इसका जांच होना अति आवश्यक है । देवताओं को देवता के रूप में ही दिखाएं ।
संपादकीय भूमिका
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