नई देहली – भाजपा नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्री. अश्विनी उपाध्याय ने ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में, उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका प्रविष्ट की है । उन्होंने कहा कि किसी भी देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने के उपरांत, मंदिर सदा मंदिर बना रहता है । जब तक मंदिर को स्थानांतरित नहीं किया जाता अथवा मूर्ति को विधिवत विसर्जित नहीं किया जाता, तब तक मंदिर वहीं रहता है ।
अधिवक्ता श्री. अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि,
१. मंदिरों तथा मस्जिदों की धार्मिक प्रकृति पूर्ण रूप से भिन्न है । इस कारण, दोनों पर एक ही कानून लागू नहीं किया जा सकता । यदि किसी मंदिर की भूमि पर मस्जिद बनाई जाती है, तो उसे इस्लाम के अनुसार ‘मस्जिद’ नहीं माना जा सकता ।
२. मंदिर पर प्राण प्रतिष्ठित देवता का आधिपत्य होता है । इस प्रकार का अवैध नियंत्रण चाहे कितनी भी लंबी कालावधि से प्राप्त किया हो, देवता एवं उनके भक्त कभी नष्ट नहीं होते । किसी मंदिर की छत को तोडकर या उसकी दीवारों को तोडकर उसका स्वरूप नहीं बदला जा सकता है ।
३. संविधान का अनुच्छेद १३, हिन्दुओं, जैनियों, बौद्धों तथा सिखों को अपने धर्म का प्रचार करने एवं पूजा स्थलों की रक्षा करने का अधिकार देता है । यह धारा उन्हें इस अधिकार से वंचित करने वाले किसी भी नए कानून के अधिनियम पर भी रोक लगाती है । इसके साथ ही, इस्लामी कानून का उल्लंघन कर बनाई गई ‘मस्जिद’ को धर्मस्थल नहीं माना जा सकता है ।
संपादकीय भूमिकाजब तक मंदिर को स्थानांतरित नहीं किया जाता है अथवा मूर्ति को विसर्जित नहीं किया जाता है, तब तक मंदिर सदैव मंदिर ही रहता है । |