चैत्र पूर्णिमा (१६ अप्रैल २०२२)
रूप : आकार व मुख के अनुसार हनुमानजी की साधारणतः निम्न प्रकार की मूर्तियां होती हैं ।
१. प्रताप हनुमान : इनका स्वरूप भव्य है । इनके एक हाथ में द्रोणागिरी पर्वत एवं दूसरे हाथ में गदा है ।
२. दास हनुमान : ये राम के आगे हाथ जोडे खडे रहते हैं । मस्तक थोडा आगे की ओर झुका हुआ और पैर जुडे होते हैं तथा पूंछ भूमि पर रहती है ।
३. वीर हनुमान : ये योद्धा मुद्रा (वीरासन मुद्रा) में होते हैं । मूर्ति के बाएं हाथ में गदा है । आगे किए बाएं हाथ को बाईं जांघ का आधार मिला है । गदा बाएं कंधे पर टिकी है । दाहिना पैर घुटने से मुडा हुआ होता है तथा दाहिना हाथ अभयमुद्रा में होता है । पूंछ उठी हुई होती है । कभी-कभी उनके पैरोंतले राक्षस की मूर्ति भी होती है । भूतावेश, जादू-टोना इत्यादि की पीडा दूर करनेके लिए वीर हनुमान की उपासना करते हैं । वीर हनुमान से शक्ति व दास हनुमान से (राम से उनकी एकरूपता के कारण) भाव एवं चैतन्य प्रक्षेपित होता है ।
४. पंचमुखी हनुमान : पांच मुख हैं – गरुड, वराह, हयग्रीव, सिंह एवं कपिमुख । दशभुज मूर्तियोंके हाथोंमें ध्वज, खड्ग, पाश इत्यादि शस्त्र हैं । पंचमुखी देवता का अर्थ है पूर्व, पश्चिम, दक्षिण एवं उत्तर, ये चार दिशाएं एवं ऊर्ध्व दिशा, इन पांचों दिशाओं पर उनका स्वामित्व है ।
५. दक्षिणमुखी (दाहिनी ओर देखनेवाले) हनुमान : ‘दक्षिण’ शब्द के दो अर्थ हैं – दक्षिण दिशा दाहिनी बाजू ।
दक्षिण दिशा वाचक अर्थ : यह मूर्ति दक्षिणाभिमुखी है ।
दाहिनी ओर का अर्थ : हनुमानजी का मुख उनकी दाहिनी ओर मुडा है ।
इस रूप में हनुमान की सूर्यनाडी कार्यरत रहती है । सूर्यनाडी तेजस्वी तथा शक्तिदायक है । इनकी उपासना विधिनिषेध-पूर्वक करनी पडती है । अनिष्ट शक्तियों के निवारण के लिए इनकी उपासना की जाती है ।
६. वाममुखी (बाईं ओर देखनेवाले) हनुमान : वाम अर्थात बाईं बाजू अथवा उत्तर दिशा ।
उत्तर दिशावाचक अर्थ : इस मूर्ति का मुख उत्तर की ओर होता है ।
बाईं ओर का अर्थ : उनका मुख उनकी बाईं ओर मुडा रहता है । इनकी चंद्रनाडी कार्यरत रहती है । चंद्रनाडी शीतल तथा आनन्ददायी है तथा उत्तर दिशा अध्यात्म हेतु पूरक है ।
७. ग्यारहमुखी हनुमान : इस रूप में हनुमानजी के बाईस हाथ तथा दो पैर होते हैं ।
(संदर्भ – सनातन का लघुग्रंथ ‘श्री हनुमान’)