भारत द्वारा अमेरिका की रशियाविरोधी भूमिका की उपेक्षा !

‘रशिया टूडे’ नाम रशिया सरकार के मुखपत्र के विशेष लेख द्वारा भारत की प्रशंसा !

मॉस्को (रूस) – संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के युक्रेन में सैनिकी कार्यवाही का विरोध दर्शानेवाले पश्चिमी देशों के प्रस्ताव के मतदान में भारत सम्मिलित न होते हुए, तटस्थ रहा । इस पर रशिया सरकार के मुखपत्र ‘रशिया टूडे’ने भारत की प्रशंसा करते हुए विशेष लेख प्रकाशित किया है । ‘रशिया एवं युक्रेन में युद्ध आरंभ होकर एक माह बीत गया । भारत पर पश्चिमी देश और विशेषरूप से अमेरिका द्वारा रशिया के विरोध में भूमिका लेने के लिए दबाव डाला जा रहा था, तब भी भारत ने उसकी बलि नहीं चढा । भारत एवं रूस के संबंधों पर विशेष विपरीत परिणाम नहीं होंगे’, ऐसा इस लेख में कहा गया है ।

‘भारत के दृष्टिकोण से ‘युक्रेनी संकट’ एवं एक ओर रूस तो दूसरी ओर पश्चिमी जगत से उसके संबंध !’ इस शीर्षक के अंतर्गत ‘विशेष’ स्तंभ में यह लेख ‘रशिया टूडे’ने प्रकाशित किया है ।

इसमें आगे कहा है,

१. भारत द्वारा युक्रेन में उनके सहस्रों नागरिकों को सुखरूप बाहर निकालने के लिए रशियन सरकार और रशियन सेना के साथ जो समन्वय किया, वह अपनेआप में विशेष था । भारत के परराष्ट्र मंत्री एस्. जयशंकर के विधान का उल्लेख कर ‘भारत को इस युद्ध से विशेष लेना-देना नहीं है । उसे तो केवल अपने नागरिकों के प्राण बचाना अधिक महत्त्वपूर्ण लगा’, ऐसा इस लेख में कहा है ।

२. रशिया की चीन पर बढती परावलंबता दूर होने के लिए भारत को प्रयत्न करने का यही उचित समय है । भारत को इस दृष्टिकोण से निर्णायक भूमिका लेकर नए उद्योगों की निर्मिति करना, रूस एवं भारत के संयुक्त प्रकल्प आरंभ करना और उपनिवेश बढाना इत्यादि के लिए प्रयत्न करने चाहिए । तब ही इन देशों के संबंध अधिक सुदृढ होंगे ।

३. वर्तमान में रशिया को पश्चिमी शक्तियों की तुलना में जगत के अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध प्रस्थापित करने होंगे । पूर्वीय देशों से अधिक अच्छे संबंध निर्माण करने का लाभ पाने के लिए भारत को रशिया के साथ रहने की आवश्यकता है ।

४. वर्तमान में तो स्थिति ऐसी है कि रशिया को पता नहीं कि आगे क्या होगा; परंतु भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जो (रशिया के लिए पूरक) भूमिका ली, इसपर रशिया को समाधान मानना चाहिए । जागतिक स्तर पर हो रहे राजकीय उतार-चढाव को देखते हुए रशिया और भारत को अब द्विपक्षीय संबंधों की ओर कुछ अलग दृष्टि से देखना आवश्यक है । उन देशों में नेतृत्व की इच्छाशक्ति और दोनों ओर के व्यावसायिकों के प्रोत्साहनात्मक कार्य पर भविष्य निर्भर होगा, ऐसा इस लेख के अंत में कहा गया है ।