वर्तमान में प्रत्येक क्षेत्र में पतन होता दिखाई दे रहा है । संगीत क्षेत्र भी उसका अपवाद नहीं । इतनी भयावह स्थिति है कि पाश्चात्य संगीत किसी के प्राण भी संकट में डाल सकता है । विश्वास नहीं होता न ? इसे समझने के लिए महाराष्ट्र के नांदेड जिले में हाल ही में हुई घटना, इसकी साक्षि है । नांदेड के मुदखेड तालुका का एक युवक व्यसनाधीन था । इससे उसकी पढाई छूट गर्स और वह निराशाग्रस्त हो गया । ऐसी निराशाग्रस्त अवस्था में उसने मूल हंगेरियन भाषा का गाना ‘ग्लूमी संडे’ (खिन्न रविवार) का हिन्दी रूपांतर सुना । यह गाना सुनने के पश्चात उसका बचा-खुचा मानसिक संतुलन भी धराशायी हो गया । इस गाने को सुनने के पश्चात उसके मन में सतत आत्महत्या के विचार आने लगे । उसकी स्थिति इतनी बिगड गई कि उसके परिजनों को उसे उपचार के लिए मनोविकार विशेषज्ञ के पास लेकर जाना पडा । अब मनोविकार विशेषज्ञ डॉ. रामेश्वर बोले उसका समुपदेशन (counselling) कर रहे हैं । इस गाने का उस युवक के मन पर इतना गहरा परिणाम हुआ है कि अब भी इस गाने की केवल धुन कानों में पडते ही, उसे पसीना आने लगता है और वह चिल्लाने लगता है । इस अजीब घटना के विषय में डॉ. रामेश्वर बोले का भी कहना है कि ‘निराशाग्रस्त अथवा पहले ही आत्महत्या के विचार रहने पर, यदि व्यक्ति यह गाना सुन ले तो उसकी स्थिति और बिगड जाती है । इसलिए ऐसे लोगों को यह गाना नहीं सुनना चाहिए ।’ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में ऐसी सलाह दी है ।
यह गाना सुनकर आत्महत्या के विचार आने की यह पहली घटना नहीं है । इससे पहले यह गाना सुनकर विदेश में असंख्य लोगों ने आत्महत्या की है । यह गाना हंगेरी के संगीतकार रेजसो सेरेस ने वर्ष १९३३ में रचा था । कहा जाता है कि यह गीत प्रेमभंग पर आधारित होने से उसे सुननेवाले की वेदनाएं ताजा हो जाती हैं और उसके कदम आत्महत्या की दिशा में बढते हैं । इसके परिणामस्वरूप कुछ देशों में इस गाने पर बंदी लगाई गई थी; परंतु फिर वह उठा दी गई ।
प्राचीन भारतीय संगीत की श्रेष्ठता !
इस गाने को सुनकर आत्महत्या के लिए प्रवृत्त होने के विषय में आज जगभर में मतभेद हैं । तब भी इन सभी बातों से पाश्चात्य संगीत का अघोरीपन एवं भारतीय संगीत का देवत्व प्रमुख रूप से ध्यान में आता है । कोई कला अवगत होना, ईश्वरीय कृपा के बिना असंभव है । इस ईश्वरीय वरदान का उपयोग यदि ईश्वरप्राप्ति के लिए किया जाए, तब ही खरे अर्थ में मनुष्यजन्म सार्थक होता है । हिन्दू धर्म में १४ विद्याएं एवं ६४ कलाएं बताई गई हैं । उनमें से संगीत एक है । यह संगीत (आज का होहल्ला नहीं) ईश्वरप्राप्ति का माध्यम है । सप्तसुरों के माध्यम से व्यक्ति की बाह्य जगत से ईश्वरप्राप्ति की ओर ले जानेवाली यात्रा करने का सामर्थ्य प्राचीन भारतीय संगीत में है । संतों के अभंग, भजन, भक्तिगीत आदि उसके उत्तम उदाहरण हैं । संत ज्ञानेश्वर महाराज, संत नामदेव महाराज, संत जनाबाई, संत मीराबाई जैसे अनेक संतों के अभंगरूपी संगीत से ही भक्त भगवान की अनुभूति ले पाए । कुछ वर्षाें पूर्व पुणे में गीतरामायण का भव्य कार्यक्रम संपन्न हुआ । कार्यक्रम के चलते बीच में ही एक श्रोता ने खडे होकर सार्वजनिक रूप से गीतरामायण के विषय में जो अनुभूति बताई, वह भारतीय संगीत का देवत्व स्पष्ट करती है । उस श्रोता के वृद्ध पिताजी को उस कार्यक्रम में आना था; परंतु प्रकृति ठीक न होने से वे आ नहीं पाए । इसलिए उस श्रोता ने अपने पिताको दूरभाष द्वारा गीतरामायण सुनाई और आश्चर्य की बात कि उनके पिता को अच्छा लगने लगा । इससे संगीत का सामर्थ्य ध्यान में आता है !
वैज्ञानिक शोध से यह प्रमाणित भी हुआ है कि आजकल की कर्कश आवाज में अर्थहीन गीतों के कारण व्यक्ति आत्महत्या की ओर भले ही प्रवृत्त न हो, तब भी उसके सर्व ओर नकारात्मक वलय निर्माण हो जाता है । यह खरा भारतीय संगीत नहीं । भारतीय संगीत सुनकर ‘शांत लगना’, ‘उत्साह निर्माण होना’, ‘भावजागृति होना’, ऐसी अनुभूतियां देने की क्षमता है । इतना ही नहीं; अपितु भारतीय संगीत का प्रत्येक राग भी अत्यंत सामर्थ्यवान है । राग गाने पर वर्षा आरंभ होना, ऐसा सामर्थ्य केवल भारतीय संगीत में ही है । भारतीय संगीत गायन से वर्षा होती है, जबकि पाश्चात्त्य गीत सुनकर मनुष्य आत्महत्या के लिए प्रवृत्त होता है ! यही दोनों में बडा भेद है । इस अर्थ में पाश्चात्य गीतों को आसुरी ही माना जाना चाहिए ।
राजाश्रय चाहिए !
आज भारत छोडकर, सर्वत्र संगीत की गुणवत्ता निकृष्ट है । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए भारत सरकार को आगे आना चाहिए । हमारे पास १४ विद्याएं एवं ६४ कलाएं हैं । इन्हें सातसमुद्र पार पहुंचाने के लिए प्रयत्न करने चाहिए । आज संपूर्ण जगत आयुर्वेद, भारतीय संगीत, संस्कृति, अध्यात्म आदि के संदर्भ में भारत की ओर बडी आशा से देख रहा है । आयुर्वेद के कारण लडकी का दृष्टिदोष चला गया और उसे ठीक से दिखाई देने लगा । इसके लिए केनिया के भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने भारत का आभार माना है । भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए । इसके लिए सरकार को प्राचीन भारतीय संगीत को खरे अर्थ में राजाश्रय देना होगा । इससे भारत में संगीत का प्रचार-प्रसार होगा ।