सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से, आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

‘सनातन के दैवी बालकों की अलौकिक गुणविशेषताएं’

     परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के संकल्प अनुसार कुछ वर्षाें में ही ईश्वरीय राज्य की स्थापना होनेवाली है । अनेकों के मन में यह प्रश्न उठता है कि ‘यह राष्ट्र कौन चलाएगा ?’ इसके लिए ईश्वर ने उच्च लोकों से दैवीय बालकों को पृथ्वी पर भेजा है । इन दैवीय बालकों में सीखने की वृत्ति, वैचारिक प्रगल्भता, उत्तम शिष्य के अनेक गुण होना, श्री गुरु का आज्ञापालन तुरंत करना, उन्हें होनेवाली अनुभूतियां एवं उनकी सूक्ष्म की बातें समझने की क्षमता, इस प्रकार की विशेषताएं इस स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित कर रहे हैं ।

     ‘कु. प्रार्थना पाठक ने इतनी छोटी आयु में ही अब तक अनेक ग्रंथ पढ लिए हैं, उनकी सूची इस लेख में दी है । आयु में कहीं अधिक बडे कितने साधक ऐसा वाचन करते होंगे ? इस वाचन के कारण, अध्ययन के कारण इतनी छोटी आयु में ही प्रार्थना ने ६७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । आगे वह शीघ्र ही संत बनेगी ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२.२.२०२२)

अभिभावको, दैवी बालकों को साधना में विरोध न करें, अपितु उनकी साधना की ओर ध्यान दें !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

     ‘कुछ दैवी बालकों का आध्यात्मिक स्तर इतना अच्छा होता है कि वे आयु के २० – २५ वें वर्ष में ही संत बन सकते हैं । कुछ माता-पिता ऐसे बालकों की पूर्णकालीन साधना को विरोध करते हैं और उन्हें माया की शिक्षा सिखाकर उनका जीवन व्यर्थ करते हैं । साधक को साधना में विरोध करने समान बडा दूसरा महापाप नहीं है । यह ध्यान में रखकर ऐसे माता-पिता ने बच्चों की साधना भलीभांति होने की ओर ध्यान दिया, तो माता-पिता की भी साधना होगी तथा वे जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होंगे !’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१८.५.२०१८)

कु. प्रार्थना पाठक
श्रीमती मनीषा पाठक

१. ‘सनातन के ग्रंथ एवं दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के विषय में कु. प्रार्थना का लगाव एवं उसकी अभ्यासी वृत्ति

अ. ‘कु. प्रार्थना को बचपन से ही सनातन के ग्रंथों के प्रति लगाव है । वह जब ४ – ५ माह की थी, तब से उसे सनातन का ग्रंथ दिखाने पर आनंद होता था ।

आ. प्रार्थना जब ६ माह की थी तब से ‘सनातन पंचांग, सनातन के ग्रंथ, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प.पू. भक्तराज महाराज, उनके शिष्य प.पू. रामानंद महाराज एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र पहचान लेती थी ।

इ. उसने कभी भी सनातन के ग्रंथ, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के कागद नहीं फाडे । वह सनातन के ग्रंथ एवं दैनिक ‘सनातन प्रभात’ अत्यंत प्रेमपूर्वक संभालती है । जैसे अन्य छोटे बच्चे लकीरें बनाते हैं, उसने कभी भी सनातन के ग्रंथ एवं दैनिक ‘सनातन प्रभात’ पर लकीरें नहीं खींचीं ।

ई. विद्यालय में ‘अ, आ, ई…’ सीखने के उपरांत प्रार्थना दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में आकाशपंक्ति (स्कायलाइन) पढने का प्रयत्न करने लगी । जब वह ४ वर्ष की थी, तब से वह अपने पिता (श्री. महेश पाठक, आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत) को दैनिक ‘सनातन प्रभात’ पढकर बताने के लिए कहने लगी ।

उ. प्रार्थना ७ वर्ष की होते-होते अपनेआप दैनिक ‘सनातन प्रभात’ पढती थी । वह दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित होनेवाले प.पू. भक्तराज महाराजजी की प्रासादिक सीख अर्थात अमृतवचनों का अर्थ पूछती । वह दैनिक में आनेवाले योगतज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायनजी का ‘ॐ आनंदं हिमालयं विष्णुं गरुडध्वजं ॐ । ॐ शिवं दत्तं गायत्री सरस्वती महालक्ष्मी प्रणमाम्यहं ॐ ।।’ यह मंत्र पढने का प्रयत्न करती थी । वह बालसाधक एवं साधक की अनुभूतियों के विषय में लेख पढने का प्रयत्न करती थी ।

ऊ. प्रार्थना दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित होनेवाले विविध स्तंभ, संपादकीय लेख’ में से जो विषय उसे समझ आते थे, वह पढती थी । इसके साथ ही वह नियमित रूप से प्रयत्न करती थी कि उसे लेखों में से यदि कुछ शब्द समझ में न आए, तो वह पूछ लेती और ध्यान में रखती ।

२. कु. प्रार्थना को ग्रंथवाचन में रुचि

अ. प्रार्थना जब ८ वर्ष की थी, तब से वह नियमित रूप से ग्रंथवाचन करती है । मार्च २०२० में हम (श्री. महेश पाठक, श्रीमती मनीषा पाठक एवं कु. प्रार्थना पाठक) गोवा स्थित सनातन के रामनाथी आश्रम में आए थे । तब से प्रार्थना ग्रंथ पढकर ग्रंथों के सूत्र लिखकर रखने का प्रयत्न करती है ।

आ. ग्रंथ पढना आरंभ करने पर जब तक उसे पूरा नहीं पढ लेती, प्रार्थना को चैन नहीं मिलता है । ग्रंथ पढना आरंभ करते समय वह ग्रंथ का मुखपृष्ठ, अनुक्रमणिका, ग्रंथों की पृष्ठसंख्या, संकलन की पद्धति (जैसे परिच्छेद के अंत में संदर्भ लिखा होता है, उदा. १२ से १२ अ २ उ) का अध्ययन करती है ।

३. ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा लिखे ग्रंथ, ज्ञानमार्ग सहित भक्तिमार्ग है’, ऐसा कहनेवाली १० वर्षीय कु. प्रार्थना !

     मेरी मां (श्रीमती सुरेखा सरसर, आयु ६५ वर्ष) को पढने में बहुत रुचि है । जब मैं बीमार थी, तब वह मेरी सहायता के लिए रामनाथी आश्रम आई थी । मां के ग्रंथवाचन आरंभ करने पर प्रार्थना भी ग्रंथवाचन करती थी । मां प.पू. भक्तराज महाराजजी के विषय के ग्रंथ पढती थी । उनकी सीख एवं अन्य ग्रंथ पढते समय मां की बहुत भावजागृति होती थी । उन्हें देख प्रार्थना की भी भावजागृति होती थी । एक बार प्रार्थना ने कहा, ‘‘मां, अपने परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा लिखे ग्रंथ, ज्ञानमार्ग के साथ-साथ भक्तिमार्ग भी है । कुछ ग्रंथों में से के कुछ ही पृष्ठ पढने पर मेरी बहुत भावजागृति होती है । इसलिए भावजागृति के लिए ग्रंथ पढने चाहिए न ?’’

४. कु. प्रार्थना द्वारा पढे कुछ ग्रंथ एवं ग्रंथों से सीखने के लिए मिले सूत्र आचरण में लाने का प्रयत्न करना

     संतों के जीवन के प्रसंग, बोधकथा, रामायण के प्रसंग, संत सावतामाळी की कथा, श्रीसमर्थ की ग्रंथसंपदा, रामकृष्ण परमहंस की वाकसुधा, संस्कार ठेवा (धरोहर), लोकमान्य टिळक, सुभाषचंद्र बोस, ‘नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद’ आदि ग्रंथ उसने पढे हैं । ग्रंथ पढने पर ‘उसे उससे क्या सीखने के लिए मिला ? वह कहां न्यून पडी ?’, इस विषय में वह बताती है । वह ग्रंथ का एकाध सूत्र आचरण में लाने का प्रयत्न करती है, उदा. ‘रामकृष्ण परमहंस की वाकसुधा’ ग्रंथ पढने के उपरांत ‘वह उसके उदाहरण कैसे आचरण में ला सकती है ?’, वह निश्चित करती है । उस ग्रंथ के एक प्रसंग में राजस्थान की महिला सिर पर पानी का घडा लेकर जाते समय अपनी सहेली से बातें करना भी जारी रखती है । उस महिला का ध्यान पानी के घडे पर भी होता है । इससे उसे ‘आंतरिक सान्निध्य’ में कैसे रहना है ?’, यह सीखने के लिए मिला । वह मुझसे बोली, ‘‘मां, मैं भी खेलते समय, चलते समय या अन्य भी कुछ करते समय ‘आंतरिक सान्निध्य’ में रहने का प्रयत्न बढाऊंगी । आप मेरी सहायता करें ।’’

कु. प्रार्थना द्वारा सनातन ग्रंथमाला के पढे गए तथा जिनका वाचन वह कर रही है वह ग्रंथ सूची

अ. आपातकालमें जीवितरक्षा विषयकी ग्रंथमाला के २ ग्रंथ

आ. निरोगी एवं दीर्घायुषी जीवनके लिए उपयुक्त ‘आयुर्वेदविषयक ग्रंथमाला’ के ३ ग्रंथ

इ. बालभाव बढाने हेतु उपयुक्त ग्रंथमाला के २ ग्रंथ

ई. सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरका साधनापूर्व जीवन एवं साधनाप्रवास

उ. अमृतमय गुरुगाथा के ४ ग्रंथ

ऊ. भावी पीढी धर्मनिष्ठ एवं राष्ट्रभक्त बनानेवाली ग्रंथमाला के ५ ग्रंथ

ए. आगामी महायुद्धके कालमें संजीवनी सिद्ध होनेवाली ग्रंथमाला के ६ ग्रंथ

ऐ. हिन्दू धर्ममें नित्य आचारोंका पालन सिखानेवाली ग्रंथमाला के १ ग्रंथ

ओ. सुखी जीवन आणि व्यक्तीमत्त्व विकास यांसाठी उपयुक्त ग्रंथमालिका के २ ग्रंथ

औ. प. पू. बाळाजी आठवलेजीका विचारधन खंड ३ – सुगम अध्यात्म

क. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के तेजस्वी विचार (राष्ट्रजागृति, धर्मरक्षा आदि के विषयमें मार्गदर्शन !)

ख. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी रचित आध्यात्मिक काव्यसंग्रह

ग. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की साधकोंकी प्रशंसा करनेवाली कविता – ‘साधको, तुम जीते, मैं हारा !’

घ. भजन एवं उनका भावार्थ – भाग १ – चंद्रकांतदादा दळवी

च. संत भक्तराज महाराजजी की सीख

छ. योगतज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायन (गुणविशेषताएं, कार्य, सिद्धियां एवं देहत्याग)

हर सांस में और हृदयमंदिर में आप ही गुरुवर ।

आंखें खोलूं तो आप ही दिखे ।
बंद नयनों में भी आप ही दिखे ।। १ ।।
आगे देखूं आपके दर्शन ।
पीछे देखूं आपके दर्शन ।। २ ।।
दश दिशाओं में आप ही गुरुवर ।
चराचर में व्याप्त आप ही गुरुवर ।। ३ ।।
हर सांस में आप ही गुरुवर ।
हृदयमंदिर में आप ही गुरुवर ।। ४ ।।
जो आप चाहें वह मैं करूं ।
जैसे आप चाहें वैसे ही रहूं ।। ५ ।।
अस्तित्व भी मेरा न अनुभव कर पाऊं ।
आपसे ही मैं एकरूप हो जाऊं ।। ६ ।।

– गुरुदेवजी का आनंदी फूल, कु. प्रार्थना महेश पाठक, (आयु १० वर्ष, आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.१०.२०२१)