सुप्रसिद्ध कथ्थक नर्तक पं. बिरजू महाराज का निधन


नई देहली – देश के सुप्रसिद्ध कथ्थक नर्तक तथा पद्मविभूषण पुरस्कार प्राप्त पंडित बिरजू महाराज का नई देहली में १६ जनवरी की मध्यरात्रि में हृदयाघात से निधन हुआ । वे ८३ वर्ष के थे ।

लखनऊ (लक्ष्मणपुरी) घराने के बिरजू महाराज का वास्तविक नाम ब्रिजमोहन मिश्रा था । उनका जन्म ४ फरवरी १९३८ को लक्ष्मणपुरी में हुआ थश । कथ्थक नृत्य की परंपरावाले परिवार में जन्मे बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज, काका शंभू महाराज और लच्छू महाराज भी प्रसिद्ध कथ्थक नर्तक ही थे । पिता की अकालमृत्यु होने पर परिवार का दायित्व पं. बिरजू महाराज के कंधों पर आ गया । उन्होंने अपने काका से कथ्थक का प्रशिक्षण लेना आरंभ किया । कथ्थक नृत्य के साथ ही वे उत्कृष्ट संगीतकार, शास्त्रीय गायक, अप्रतिम कवी और कुशल चित्रकार भी थे । उनकी कई रचनाएं प्रसिद्ध हैं । वे कथ्थक नृत्य के लखनऊ कालका-बिंदादीन घराने के अग्रणी नर्तक थे । भारतीय शास्त्रीय नृत्य, विशेषरूप से कथ्थक नृत्य को भारत में सर्वत्र और विदेशों में भी सर्वसामान्य लोगोंतक पहुंचाने में पं. बिरजू महाराज का बहुमूल्य योगदान है ।
वर्ष १९८३ में पं. बिरजू महाराज को पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । (पद्मविभूषण पुरस्कार देश का दूसरे क्रम का नागरी सम्मान है ।) उसके साथ ही उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार और कालिदास सम्मान भी प्राप्त हुए हैं । बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और खैरागढ विश्वविद्यालय ने भी पं. बिरजू महाराज को मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है । फिल्मों के नृत्य निर्देशन के लिए भी उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था । उनके निधन से शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में बडी रिक्ति आई है ।

नृत्य करते समय में श्रीकृष्ण की आराधना करनेवाले अर्थात अपनी नृत्यकला श्रीकृष्ण को अर्पण करनेवाले पं. बिरजू महाराज !

उनका यह मत ता कि शास्त्रीय नृत्य तो ईश्वर के सान्निध्य में रहने की (साधना) की पद्धतियों में से एक है । श्रीकृष्ण उनके इष्टदेवता थे । नृत्य करते समय वे श्रीकृष्ण के सान्निध्य में रहते थे । नृत्य करते समय वे श्रीकृष्ण का किस प्रकार से अनुभव करते थे, इसका वर्णन उन्हीं के शब्दों में यहां दे रहे हैं ।

‘मैं जब नृत्य कर रहा होता हूं, तब श्रीकृष्ण मेरे साथ होते हैं । मैं ‘थै’ और ‘ता’ के ताल का संतुलन बनाते समय भगवान ही मेरे ताल का संतुलन बनाते हैं । मैने अपनी कला श्रीकृष्ण को ही अर्पण की है । मंच पर नृत्य करते समय मैं केवल नृत्य नहीं कर रहा होता हूं, अपितु मैं श्रीकृष्ण के पीछे दौडकर उनका पिछा करता रहता हूं ।’ – पं. बिरजू महाराज (२७.११.२०१०)

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से पं. बिरजू महाराज को भावपूर्ण श्रद्धांजली !

‘संपूर्ण विश्व में भारतीय नृत्यकला को अनोखी पहचान दिलानेवाले, जीवनभर कला की साधना करनेवाले कथ्थक नृत्य के तपस्वी पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजली !’ – श्रीमती सावित्री इचलकरंजीकर, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा  

(पं. बिरजू महाराज की गुणविशेषताओं के विषय में विस्तृत लेखन बहुत शीघ्र प्रकाशित कर रहे हैं ।)