परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
अनेक से एक की ओर जाना हिन्दू धर्म सिखाता है। इसके विपरीत, ‘विविधता भारत का बल है’, ऐसा अनेक राजनीतिक नेता कहते हैं ! विविधता के कारण ही आज भारत की परम अधोगति हुई है !’
शिक्षासम्राट (?)
‘क्या किसी भी शिक्षा-सम्राट ने ऋषि-मुनियों के समान शिक्षा क्षेत्र में कार्य किया है ? आज के शिक्षा-सम्राट शिक्षा के माध्यम से केवल अधिकाधिक पैसे अर्जित करनेवाले सम्राट हैं !’
आंतरिक तथा बाह्य शत्रुओं से घिरा हुआ भारत !
‘अन्य देशों में आंतरिक शत्रु नहीं होते ! भारत में आंतरिक और बाह्य, दोनों प्रकार के शत्रु हैं। इस प्रकार के शत्रु रखनेवाला एकमात्र देश भारत ही है ! भारतीयों के लिए यह अत्यंत लज्जाजनक है !’
राष्ट्र एवं धर्म प्रेम !
व्यक्तिगत प्रेम की अपेक्षा राष्ट्रप्रेम और धर्मप्रेम करके देखिए, उसमें अधिक आनंद है !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले