पाक अधिकृत कश्मीर में ‘शारदा यात्रा’ पुन: प्रारंभ करने के लिए शारदा सेवा समिती का प्रयास !

मूल रूप से हिंदुओं को ऐसा लगता है, कि भारत सरकार को इसके लिए स्वयं प्रयास करना चाहिए !

शारदा पीठ

श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) – पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में शारदा पीठ यात्रा पुन: प्रारंभ होने की संभावना है। कुपवाडा में मंदिर और धर्मशाला की आधारशिला, ‘शारदा बचाव समिति’द्वारा नियंत्रण रेखा पर, टिटवल में रखी गई। इसका शिलान्यास भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्या दारक्सान अन्द्राबी ने किया। अंद्राबी, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के अंतर्गत वक्फ विकास समिति की अध्यक्षा हैं। शारदा पीठ एक प्राचीन हिंदू विश्वविद्यालय है। यह स्थान, वर्ष १९४७ से पूर्व, शारदा यात्रा के लिए प्रसिद्ध था।१. ‘शारदा बचाव समिति’ के प्रमुख रवींद्र पंडिता ने कहा, “मैं करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जानेवाला पहला कश्मीरी हूं। यदि भारत और पाकिस्तान, करतारपुर साहिब के लिए कुछ व्यवस्था कर सकते हैं, तो वे शारदा पीठ के लिए कोई व्यवस्था क्यों नहीं कर सकते ?” करतारपुर साहिब गुरुद्वारा पाकिस्तान में है और यहां तक पहुंचने के लिए पंजाब से महामार्ग बनाया गया है।

२. रवींद्र पंडिता ने आगे कहा, “कश्मीर के दोनों हिस्सों में, लोगों को वर्तमान नियमों में परिवर्तन करके, अपने पूजा स्थलों पर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। जो मुसलमान हैं, उन्हें कश्मीर में हजरतबल और चरारे शरीफ जाने की अनुमति दी जानी चाहिए एवं यहां के लोगों को शारदा पीठ तथा गुरुद्वारा अली बेग जाने में किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं होना चाहिए।

 (सौजन्य : Bharat marg)

३. पंडिता, शारदा यात्रा को पुन:प्रारंभ करने के लिए कई वर्षों से भारत और पाकिस्तान की सरकारों के साथ काम कर रहे हैं और दोनों पक्षों के लोगों की एक समिति का भी गठन किया गया है। उनके प्रयासों से, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक न्यायालय ने शारदा पीठ स्थल का अतिक्रमण रोकने का आदेश दिया है और उस स्थल को पाकिस्तानी पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया है।

प्राचीन शारदा पीठ का इतिहास

यह श्री सरस्वती देवी यानि श्री मां शारदा का स्थान है, जिन्हें ज्ञान की देवी माना जाता है। ऐसा माना जाता है, कि इसकी स्थापना २७३ वर्ष ईसा पूर्व में नीलम घाटी में हुई थी। जिसके विषय में दावा किया जाता है, कि यह तक्षशिला और नालंदा के विश्वविद्यालयों से भी पुरातन है। यद्यपि यह एक विश्वविद्यालय है, किन्तु मंदिर की वार्षिक तीर्थयात्रा महाराजा प्रताप सिंह और रणबीर सिंह के शासनकाल के समय प्रसिद्ध हुई थी। १९४७ में विभाजन के उपरांत, तीर्थयात्रा बाधित हुई और मंदिर की उपेक्षा की गई।

रवींद्र पंडिता को अपेक्षा है, कि यद्यपि लोगों को वर्तमान में सीमा पार करने की अनुमति नहीं है, किन्तु यह शीघ्र ही यह संभव हो जाएगा।