‘यूएएस (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना सुनिश्चित होना

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ ने ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस)’ उपकरण द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण

परात्पर गुरु डॉ. आठवले

     ‘सनातन प्रभात’ में संतों की सीख के संदर्भ में लेख प्रकाशित किए जाते हैं । १६ से ३१ अक्टूबर २०२१ से आरंभ इस लेखमाला द्वारा ‘सनातन प्रभात’ के संस्थापक-संपादक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी के संदर्भ में लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं ।

     १ से १५ नवंबर २०२१ को प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी का पूरे जीवन साथ देनेवाली उनकी पत्नी पू. नलिनी (पू. ताई) आठवलेजी की विशेषताएं देखी । इस लेख में हम यूएएस (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर) उपकरण द्वारा प.पू. बालाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना सुनिश्चित किए जाने का निरीक्षण देखेंगे । (भाग ३)

     महाराष्ट्र में अनेक महान संत-महात्मा हुए हैं । १३ वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में जन्मे संत ज्ञानेश्वर महाराज स्वयं उच्च स्तर के संत थे और उनके माता-पिता एवं भाई-बहन भी संत थे । वर्तमान कलियुग में ऐसा ही एक उदाहरण है ‘सनातन संस्था’ और ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का !

     परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं ‘परात्पर गुरु’ स्तर के संत होने के साथ-साथ उनके माता-पिता (प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई) और उनके ज्येष्ठ भाई (सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवलेजी एवं पू. अनंत बाळाजी आठवलेजी), ये सभी संत हैं । (परात्पर गुरु डॉक्टरजी के दोनों छोटे भाईयों का आध्यात्मिक स्तर भी ६० प्रतिशत से अधिक है ।) संतों में अत्यधिक चैतन्य होता है, जो उनके छायाचित्रों से भी प्रक्षेपित होता है । प.पू. दादा और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से प्रक्षेपित स्पंदनों का विज्ञान द्वारा अध्ययन करने के लिए उनका ‘यूएएस (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन और अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया है ।

१. प.पू. दादा और उनके संत परिजनों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना

प.पू. दादा आठवले
पू. अनंत आठवले
स्व. डॉ. सुहास आठवले
श्री. विलास आठवले

     सामान्य व्यक्ति में रज-तम की मात्रा अधिक होने से उनमें सकारात्मक स्पंदन नहीं पाए जाते । साधना के कारण व्यक्ति के रज-तम अल्प होकर उनके सत्त्वगुण में वृद्धि होती है । साधना करनेवाले व्यक्ति में सकारात्मक स्पंदन पाए जाते है एवं उनका प्रभामंडल लगभग १ मीटर होता है । जैसे-जैसे उनकी साधना में वृद्धि होती है, वैसे वैसे इस मात्रा में वृद्धि होती है । परीक्षण में संतों के छायाचित्रों में नकारात्मक स्पंदन नहीं पाए गए; अपितु सकारात्मक स्पंदन अधिक मात्रा में पाए गए । यह निम्न सारणी से समझ में आएगा ।


टिप्पणी १ – सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवलेजी का छायाचित्र उन्होंने ‘संत’ पद (टिप्पणी ३) प्राप्त किया उस काल का है । ९.११.२०१३ को उन्होंने देहत्याग किया । वर्ष २०१७ में उन्होंने ‘सद्गुरु’ पद प्राप्त किया ।

टिप्पणी २ – परीक्षण स्थल का स्थान पर्याप्त न होने से इससे अधिक तथा अचूक प्रभामंडल का मापन नहीं हो पाया ।

टिप्पणी ३ – ७०-७९ प्रतिशत स्तर पर ‘संत’ पद (‘गुरु’ पद), ८०-८९ प्रतिशत स्तर पर ‘सद्गुरु’ पद और ९० प्रतिशत स्तर के आगे ‘परात्पर गुरु’ पद प्राप्त होता है ।

२. प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई के छायाचित्रों से अधिकाधिक मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना

     इस परीक्षण में प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई के छायाचित्रों से उत्तरोत्तर अधिक मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई की साधना के कारण उनकी अध्यात्म में उत्तरोत्तर अधिक प्रगति होने का यह सूचक है । साधना न करनेवाले सामान्य व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत होता है । अच्छी साधना कर जब व्यक्ति का स्तर ७० प्रतिशत होता है, तब वह ‘संत’ होता है । संतों में उनकी साधना के कारण चैतन्य निर्माण होता है । जैसे-जैसे संतों का आध्यात्मिक स्तर बढता जाता है, वैसे-वैसे उनसे प्रक्षेपित चैतन्य की मात्रा में भी वृद्धि होती है । ‘वर्ष २०१४ में प.पू. दादा का आध्यात्मिक स्तर ८३ प्रतिशत और पू. ताई का आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत था । प.पू. दादा ने २८.१.१९९५ को और पू. ताई ने ३.१२.२००३ को देहत्याग किया ।’

     (संदर्भ : सनातन संस्था का मराठी ग्रंथ – पू. बाळाजी आठवलेजीकी विचारसंपदा : खंड १ व २)

३. प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई के पुत्रों के छायाचित्रों से अत्यधिक मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना

     परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माता-पिता ने उनके पांचों बच्चों पर बचपन से ही साधना के संस्कार किए । उन्होंने स्वयं अध्यात्म में उत्तम प्रगति की; परंतु पांचों बच्चों पर साधना के संस्कार कर उनकी भी प्रगति करवा ली । वर्तमान काल में ऐसे उदाहण दुर्लभ हैं । प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई के तीनों पुत्र संत होने से उनके छायाचित्रों से भी अत्यधिक मात्रा में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । उनके ज्येष्ठ पुत्र सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवलेजी ने ‘सद्गुरु’ पद, उनके दूसरे पुत्र पू. अनंत बाळाजी आठवलेजी ने भी ‘संत’ पद और उनके तीसरे पुत्र परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘परात्पर गुरु’ पर विराजमान हुए हैं । इन सभी संतों के छायाचित्रों की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल उनके उस समय के आध्यात्मिक स्तरानुसार है ।

     प.पू. दादा और पू. (श्रीमती) ताई के पुत्र डॉ. सुहास आठवले एवं श्री. विलास आठवले की भी साधना में प्रगति हो रही है । इसलिए उनके छायाचित्रों में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई । वर्तमान कलियुग में ऐसा आदर्श संत परिवार देखने के लिए मिला, इसके लिए ईश्वर के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’ – श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१७.९.२०२१)                               (क्रमशः)

(इस लेख में ‘यूएएस’ परीक्षण किए संतों के सभी छायाचित्र https://sanatanprabhat.org/hindi/44380.html लिंक पर देखने के लिए उपलब्ध हैं । – संपादक)