अतृप्त पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट से रक्षा हेतु उपासना करें !
वर्तमान काल में पूर्व की भांति कोई श्राद्ध पक्ष इत्यादि नहीं करता और न ही साधना करता है । इसलिए अधिकतर सभी को पितृदोष (पूर्वजों की अतृप्ति के कारण कष्ट) होता है । आगे पितृदोष की संभावना है या वर्तमान में हो रहा कष्ट पितृदोष के कारण है, यह केवल उन्नत पुरुष ही बता सकते हैं । किसी उन्नत पुरुष से भेंट संभव न हो, तो यहां पितृदोष के कुछ लक्षण दिए हैं – विवाह न होना, पति-पत्नी में अनबन, गर्भधारण न होना, गर्भधारण होने पर गर्भपात हो जाना, संतान का समय से पूर्व जन्म होना, मंदबुद्धि अथवा विकलांग संतान होना, संतान की बचपन में ही मृत्यु हो जाना आदि । व्यसन, दरिद्रता, शारीरिक रोग, ऐसे लक्षण भी हो सकते हैं ।
दत्त के नामजप से पितृदोष से रक्षा कैसे होती है ?
अ. सुरक्षा-कवच निर्माण होना : दत्त के नामजप से निर्मित शक्ति से नामजप करनेवाले के सर्व ओर सुरक्षा-कवच का निर्माण होता है ।
आ. पूर्वजों को गति प्राप्त होना : अधिकांश लोग साधना नहीं करते । अतएव वे माया में अत्यधिक लिप्त होते हैं । इसलिए मृत्यु के उपरांत ऐसे व्यक्तियों की लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसे अतृप्त लिंगदेह मत्र्यलोक में (मृत्युलोक में) अटक जाते हैं । (मृत्युलोक भूलोक एवं भुवर्लोक के मध्य है ।) दत्त के नामजप के कारण मृत्युलोक में अटके पूर्वजों को गति मिलती है और वे अपने कर्म के अनुसार आगे के लोक में जाते हैं । इससे स्वाभाविक रूप से उनसे व्यक्ति को होनेवाले कष्ट की तीव्रता घट जाती है ।
अतृप्त पूर्वजों से होनेवाले कष्ट पर उपाय
१. किसी भी प्रकार का कष्ट न हो रहा हो, तो भी आगे चलकर कष्ट न हो इसलिए, साथ ही यदि थोडा सा भी कष्ट हो तो ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप १ से २ घंटे करें । शेष समय प्रारब्ध के कारण कष्ट न हो इस हेतु एवं आध्यात्मिक उन्नति हो इसलिए सामान्य मनुष्य अथवा प्राथमिक अवस्था का साधक कुलदेवता का अधिकाधिक नामजप करे ।
२. मध्यम कष्ट हो तो कुलदेवता के नामजप के साथ ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप प्रतिदिन २ से ४ घंटे करें । गुरुवार को दत्तमंदिर जाकर सात परिक्रमाएं करें एवं बैठकर एक-दो माला जप वर्षभर करें । तत्पश्चात तीन माला नामजप जारी रखें ।
३. तीव्र कष्ट हो तो कुलदेवता के नामजप के साथ ही ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप प्रतिदिन ४ से ६ घंटे करें । किसी ज्योतिर्लिंग में जाकर नारायणबलि, नागबलि, त्रिपिंडी श्राद्ध, कालसर्पशांति आदि विधियां करें । साथ ही किसी दत्तक्षेत्र में रहकर साधना करें अथवा संतसेवा कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करें ।
‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप से क्या अतृप्त पितरों को सर्वाधिक लाभ होता है ?
कोई व्यक्ति जब ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप करता है, उस समय जिस पितर में, अगले लोकों में जाने की तीव्र इच्छा होती है, उस पितर को इस नामजप से सर्वाधिक लाभ होता है । ‘यदि ऐसा है, तो अधिकतर पूर्वज नामजप करनेवाले उत्तराधिकारी को ही लक्ष्य क्यों बनाते हैं’, यह प्रश्न किसी के भी मन में आ सकता है । इसका कारण इस प्रकार है – ‘मेरी आध्यात्मिक प्रगति हो’, यह इच्छा करनेवाले पितर साधना करनेवाले वंशज से सहायता लेते हैं, तो जिन पितरों की इच्छा भौतिक विषयों से (खाना-पीना आदि से) संबंधित होती है, वे पितर उसी प्रकार की वासनावाले अपने वंशज से सहायता लेते हैं ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’)