कहां हिन्दू-विरोधी कार्यक्रमों के विरुद्ध तत्परता से संगठित होकर सक्रिय होने वाले विदेश के हिन्दू और कहां हाथ पर हाथ धरे चुप बैठने वाले भारत के साधारण हिन्दू ? ध्यान दें, कि भारतीय हिन्दुओं में धर्माभिमान हीनता के कारण ही, कोई भी उठता है तथा हिन्दू धर्म एवं उनके श्रद्धा स्थलों के विरुद्ध विषारी बातें करता है !- संपादक
न्यू जर्सी (अमेरिका) – अमेरिका एवं कनाडा में कुल १५० हिन्दुत्व का कार्य करने वाले संगठनों, मंदिरों एवं आध्यात्मिक संगठनों ने, ४० विश्वविद्यालयों को एक निवेदन भेजकर उनसे ‘डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ (हिन्दुत्व का वैश्विक स्तर पर विखंडन), इस सम्मेलन का समर्थन नहीं करने का आग्रह किया है । परिषद के सह-प्रायोजक होने वाले इन विश्वविद्यालयों में पढने वाले अनेक छात्रों, उनके माता-पिता एवं पूर्व छात्रों ने भी विश्वविद्यालयों को १ लाख से अधिक कम्प्यूटरीकृत पत्र (ई-मेल) भेजकर इस हिन्दुत्व-विरोधी परिषद का विरोध किया है । विश्वविद्यालयों को पत्र भेजने वाले इन सभी संगठनों का समन्वय ‘उत्तरी अमेरिका के हिन्दुओं के गठबंधन’ द्वारा किया है । इस निवेदन के हस्ताक्षरकर्ता हिन्दू मंदिरों, राष्ट्रीय स्तर के संगठनों, विभिन्न हिन्दू धार्मिक संगठनों एवं स्थानीय सांस्कृतिक मंडलों के सदस्य हैं । वे अमेरिका में रहने वाले सहस्रों हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । इस निवेदन की एक प्रतिलिपि कानूनी विशेषज्ञ व्यक्तियों को भेजी जाएगी ।
इस संदर्भ में ‘उत्तरी अमेरिका के हिन्दुओं के गठबंधन’ के अध्यक्ष निकुंज त्रिवेदी ने कहा,
१. अमेरिका एवं कनाडा के १५० हिन्दू संगठनों द्वारा निवेदन पर हस्ताक्षर किए गए हैं । यह यहां रहने वाले हिन्दुओं का क्षोभ दर्शाता है । इस अभियान में अनेक स्थानों से हिन्दू सहभागी हुए थे तथा हिन्दुत्व के संबंध में पूर्वाग्रह से ग्रसित एवं हिन्दुओं को ‘चरमपंथी विचारधारा का प्रचारक’ बताकर, हिन्दुत्व की आवाज दबाने के हिन्दुद्वेषियों के प्रयासों से चिंतित हैं ।
२. इस सम्मेलन में सहभागी हो रहे वक्ता, अमेरिका द्वारा आतंकवादी घोषित नक्सलियों एवं माओवादियों जैसे हिंसक गुटों के समर्थक हैं । शेष वक्ताओं ने अनेक प्रसंगों में हिन्दू धर्म का विरोध करके हिन्दू धर्म के देवताओं, प्रथाओं एवं परम्पराओं का अपमान किया है । इन वक्ताओं का विरोध करने वाले हिन्दुओं पर ‘हिन्दू वर्चस्ववादी समूह के एजेंट’ होने का आरोप लगाया जा रहा है । इसलिए, यदि कोई विश्वविद्यालय इस परिषद में पंजीकरण करता है, तो यह ऐसा होगा जैसे उसने भेदभाव को मान्यता दी हो ।
३. पश्चिमी संसार के सरकारी संस्थानों, निगमों एवं शैक्षणिक संस्थानों में ‘हिन्दुत्व क्या है ?’ एवं ‘हिन्दुत्व क्या नहीं है ?’ इसपर चर्चा करने की प्रवृत्ति है । यही वास्तविक समस्या है ; क्योंकि, हिन्दू धर्म एक व्यापक एवं अनुभवात्मक तथा विकेंद्रीकृत परंपरा होने वाला धर्म है । इसलिए, राजनीतिक विचारधारा एवं अकारण उत्पन्न की गई भ्रांतियों के माध्यम से हिन्दुत्व की सीमाएं निर्धारित करना, यहां के हिन्दू अल्पसंख्यकों के लिए संकटकारी है तथा उनके नागरिक अधिकारों का अतिक्रमण करने के समान है ।
४. इन विश्वविद्यालयों के हिन्दू छात्र अस्थायी ‘वीजा’ पर अमेरिका में रह रहे हैं । इसका विपरीत परिणाम उन्हें भुगतना पड सकता है । कभी-कभी हिन्दू छात्र अपने घरों में हिन्दू देवी-देवताओं के छायाचित्र लगाते हैं, तब आपत्ति जताई जाती है । इसलिए, विश्वविद्यालयों को हिन्दू छात्रों के सुरक्षा के संबंध में आश्वस्त कर विश्वविद्यालयों में विविधता, समानता एवं समावेशिता को प्रोत्साहन देना चाहिए । यदि शिक्षण संस्थान स्वतंत्रता के नाम पर धर्मांधता का समर्थन करते हैं, तो इसका विपरीत प्रभाव पडेगा तथा हिन्दू-विरोधी घृणा उत्पन्न होगी ।