यज्ञयाग का मनुष्य एवं पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पडता है ! – शोध के निष्कर्ष

  • हिन्दुओं की ‘पिछडा’ एवं ‘अवैज्ञानिक’ कह कर अवहेलना करने वाले स्वदेशी एवं विदेशी बुद्धिजीवियों के मुंह पर तमाचा !

  • यज्ञ से प्रदूषण न्यून होता है तथा मानव का तनाव अल्प होता है, यह हुआ प्रमाणित !

  • वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से किया गया शोध !

  • प्राचीन वैदिक हिन्दू संस्कृति पश्चिमी संस्कृति से कहीं अधिक उन्नत थी, तथा इसे निर्माण करने वाले ऋषि-मुनि उस समय के महान वैज्ञानिक ही थे, यह एक बार पुनः रेखांकित हो जाता है ! – संपादक

  • हिन्दुओं, स्वधर्म का महत्व ध्यान में लेकर अभी तो धर्माचरण करें ! समझ लें कि इससे ही आपके जीवन की चिंताएं, क्लेश एवं दुख दूर होकर अपना जीवन आनंदमय बनाना संभव है ! – संपादक

  • संसार के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में भारतीय शहर बडी संख्या में सम्मिलित हैं । ऐसे में यदि इन शहरों में अध्ययन-सहित एवं नियमित रूप से यज्ञ किए जाएं, तो प्रदूषण का स्तर निश्चित रूप से घट जाएगा । इससे प्रदूषण न्यून करने का एक प्रभावशाली ‘भारतीय तंत्र’ पूरे संसार में क्रियान्वित किया जा सकता है । राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओं को लगता है कि मोदी सरकार ने इसके लिए पहल करनी चाहिए ! – संपादक
यज्ञ (प्रतीकात्मक छायाचित्र)

उज्जैन (मध्य प्रदेश) – हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि यज्ञयाग से मनुष्य का तनाव अल्प होने के साथ-साथ वातावरण के प्रदूषण का स्तर भी न्यून होता है । इस संदर्भ में गायत्री शक्तिपीठ एवं गुजराती माली समाज की धर्मशाला में दो-दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई थी । इस कार्यशाला में आधुनिक उपकरणों की सहायता से यज्ञ के परिणामों का परीक्षण किया गया । इस परीक्षण से यह स्पष्ट हो गया कि यज्ञ का मनुष्य एवं पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पडता है ।

इस समय जबलपुर से आए प्रकाश मुरजानी, उज्जैन की यज्ञाचार्य माधुरी सोलंकी, याज्ञिक (धार्मिक-विधियां) शास्त्र की शोधकर्ता नीति टंडन ने प्रतिदिन यज्ञयाग किए जाने वाले शक्तिपीठ का उनके पास उपलब्ध आधुनिक उपकरणों की सहायता से परीक्षण किया । उन्होंने वैसा ही परीक्षण घनी जनसंख्या में स्थित तथा यातायात, कोलाहल एवं अन्य प्रकार का प्रदूषण होने वाली धर्मशाला का भी किया ।

१. शक्तिपीठ की यज्ञशाला एवं गौशाला का वातावरण सर्वाधिक सकारात्मक !

‘ऑरा स्कैनर’ की सहायता से वातावरण का परीक्षण

प्रथम शक्तिपीठ में ‘ऑरा स्कैनर’ की सहायता से वातावरण का परीक्षण किया गया । तब यज्ञशाला तथा गौशाला में सर्वाधिक आभा (ऑरा) पाई गई । अन्य स्थानों के परीक्षणों में यह आभा अत्यल्प थी । शक्तिपीठ स्थान पर प्रतिदिन यज्ञयाग किए जाते हैं । इसलिए यह ध्यान में आया कि वहां आभा अधिक थी । गौशाला के स्थल पर किए गए एक परीक्षण में ‘ऑरा स्कैनर’ में ३६० अंश का संकेतांक दिखाई दिया । इससे गौशाला क्षेत्र में सबसे अधिक सकारात्मक वातावरण होता है, यह बात सामने आई । (इससे हिन्दुओं को पूजनीय गाय का आध्यात्मिक महत्व ध्यान में आता है ! इससे स्पष्ट होता है कि विज्ञान ने भी हिन्दुओं की इस मान्यता को अपनी स्वीकृति ही दे दी है कि ‘गाय में ३३ कोटी देवता होते हैं’। – संपादक)

२. यज्ञ से मनुष्य का तनाव होता है न्यून !

अनुसंधान के भाग के रूप में धर्मशाला एवं शक्तिपीठ इन दोनों स्थानों पर यज्ञ किए गए थे । यज्ञ के पूर्व एवं पश्चात वहां उपस्थित लोगों के तनाव का स्तर ‘हैप्पीनेस इंडेक्स मीटर (सुख सूचकांक मापक)’ नामक उपकरण की सहायता से नापा गया । यज्ञ से पूर्व जिन लोगों में उच्च स्तर का तनाव था, यज्ञ के पश्चात उनके तनाव का स्तर अल्प पाया गया । धर्मशाला के स्थान पर किए गए एक प्रयोग में पाया गया कि १० में से ९ लोगों में तनाव का स्तर न्यून हुआ है । इससे प्रमाणित हुआ कि लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर यज्ञ करने का सकारात्मक प्रभाव पडता है ।

३. यज्ञ से प्रदूषण का स्तर होता है न्यून !

धर्मशाला क्षेत्र में यज्ञ से पूर्व प्रदूषण अधिक मात्रा में था । ‘एयर वेदा’ इस यंत्र की सहायता से यज्ञ से पूर्व एवं यज्ञ के पश्चात ‘पीएम २.५’, ‘पीएम१०’ एवं ‘कार्बन डाइऑक्साइड’ इन घातक वायुओं का स्तर नापा गया । दोनों ही स्थानों पर यज्ञ के पश्चात इन तीनों वायुओं का स्तर न्यून पाया गया । इससे प्रमाणित हुआ कि यज्ञ से प्रदूषण न्यून होता है ।

४. यज्ञ से वातावरण की घनता होती है न्यून !

धर्मशाला के जिस कक्ष में प्रयोग किए गए, वहां यज्ञ से पूर्व प्रदूषण की घनता अधिक थी । यज्ञ के समय यह बढ गई एवं यज्ञ के एक घंटे के उपरांत द्रुत गति से न्यून हुई ।