मंदिर में स्थित मूर्ति छोटे बच्चे की भांति होने से न्यायालय को ही उसकी संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए ! – मद्रास उच्च न्यायालय

तमिलनाडू के प्रसिद्ध पलानी मंदिर की संपत्ति का प्रकरण

आज देश के सहस्रों मंदिरों पर सरकारों ने अपना नियंत्रण स्थापित किया है और इस संपत्ति का उपयोग हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए करने के स्थान पर अन्य कार्याें के लिए ही किए जाने से माननीय न्यायालय इसकी ओर भी ध्यान देकर इस संपत्ति का उपयोग हिन्दू धर्म के लिए ही खर्च करने के लिए प्रयास करना चाहिए, ऐसा हिन्दू श्रद्धालुओं को लगता है !

(प्रतिकात्मक छायाचित्र)

चेन्नई (तमिलनाडू) – मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य के प्रसिद्ध पलानी मंदिर के भूमि विवाद से संबंधित याचिका की सुनवाई के समय ऐसा कहा कि कानून के परिप्रेक्ष्य में मंदिर में स्थित मूर्तियां किसी छोटे बच्चे की भांति हैं । अतः छोटे बच्चों की संपत्ति की रक्षा न्यायालय को ही करनी होगी । कुछ परिवारों ने इस भूमि पर अवैधरूप से नियंत्रण स्थापित किया था । उसपर न्यायालय ने इन लोगों को वहां से हटाने का आदेश दिया । विगत अनेक वर्षाें से इन परिवारों ने मंदिर की संपत्ति पर अपना नियंत्रण स्थापित किया था । न्यायालय ने प्रशासनिक अधिकारियों को ४ सप्ताह में मंदिर की संपत्ति को खाली कराने का भी आदेश दिया ।

१. न्यायालय ने जिस संपत्ति के संदर्भ में निर्णय दिया है, वह संपत्ति ब्रिटिशों ने वर्ष १८६३ में कुछ लोगों को पुरस्कार के रूप में दी थी । इन परिवारों ने न्यायालय ने यह दावा करते हुए कहा था कि हमारी अनेक पीढीयों का इस भूमिपर स्वामित्व का अधिकार है, साथ ही वे इस भूमि का किराया भी इस मंदिर को देते हैं । उसपर न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि आप इस भूमि के मालिक नहीं, अपितु किराएदार है । अतः इस संपत्ति के किसी भी भाग पर स्वामित्व के अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता ।

२. आयुक्त को इस संपूर्ण प्रक्रिया पर ध्यान रखने के लिए कहा गया है । यह भूमि ६० एकर से भी अधिक क्षेत्रवाली है । तिरुपुर के धारापुरम् के पेरियाकुमारापलायम गांव में यह भूमि है । न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस संपत्ति पर देवता मुरुगन स्वामीजी का अधिकार है । इस मंदिर का पूर्ण नाम पलानी अरुल्मिगु धनदायुथपानी स्वामी मंदिर है । यह मंदिर तमिलनाडू के सबसे धनवान मंदिरों में से एक है तथा यह प्राचीन मंदिर भी है ।