‘बाबर के आक्रमण में श्रीराम जन्मभूमि ध्वस्त होने से पूर्व वहां का भव्य श्रीराममंदिर सम्राट विक्रमादित्य ने लगभग २००० वर्ष पूर्व निर्माण किया था । उस समय सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित हुई श्रीरामपंचायतन मूर्ति वर्तमान में अयोध्या के श्री कालाराम मंदिर में विराजमान है ।
१. बाबर के आक्रमण से बचाने के लिए मूर्ति सरयू नदी में प्रवाहित करना
वर्ष १५२८ में बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण किया । मुगल आक्रामक बाबर अयोध्या की दिशा में आ रहा है, यह समझते ही श्रीराममंदिर के तत्कालीन पुजारी श्यामानंद सरस्वती को ध्यान में आया कि ‘इस यवनी आक्रमण में मूर्ति का भंजन हो सकता है और अपने प्राण देकर भी मैं मूर्ति नहीं बचा सकूंगा ।’ इसलिए उन्होंने १५२८ में यह मूर्ति सरयू नदी में प्रवाहित की । यह मूर्ति सरयू नदी में २२० वर्ष थी ।
२. पंडित नरसिंहराव मोघे को हुआ स्वप्नदृष्टांत और मूर्ति की सरयू के तट पर स्थापना !
१७४८ में महाराष्ट्र के पंडित नरसिंहराव मोघे उस समय सरयू नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे । उस समय उन्हें दृष्टांत हुआ कि ‘सरयू में लक्ष्मण घाट पर मेरी मूर्ति है । उसे निकालकर श्री नागेश्वरनाथ मंदिर के निकट उसकी स्थापना करें ।’ उस समय नरसिंहराव मोघे को उस मूर्ति के दर्शन भी हुए । यह दृष्टांत उन्हें ३ बार हुआ । अगले दिन स्नान के लिए सरयू तट पर जाने पर पंडित मोघे को वह मूर्ति मिली । यह मूर्ति काले रंग की थी । पंडित नरसिंहराव मोघे को जब वह मूर्ति मिली तब वे बोले, ‘‘ये काले राम हैं ।’’ तब से उनका नाम ‘कालाराम’ पड गया । उससे पहले जब वह मूर्ति श्रीराम जन्मभूमि के मंदिर में स्थापित थी, उस समय उसका नाम ‘विष्णुहरि’ था । पंडित मोघे को हुए दृष्टांत के अनुसार उन्होंने इस मूर्ति की स्थापना अयोध्या के श्री नागेश्वरनाथ मंदिर के निकट की । श्री नागेश्वरनाथ मंदिर १०८ ज्योर्तिलिंगों में से एक है । इस मंदिर की स्थापना प्रभु श्रीराम के छोटे पुत्र कुश ने की थी ।
३. मंदिर को भेंट देनेवाले महान विभूति
प.प. श्रीधरस्वामी ने इस मंदिर में ४ बार चातुर्मास का व्रत किया था । इस मंदिर में ही प.पू. गोंदवलेकर महाराज की माता ने देहत्याग किया था । समर्थ रामदासस्वामी और प.पू. गोंदवलेकर महाराजजी ने इस मंदिर के दर्शन किए थे ।
४. नए मंदिर के निर्माण के पश्चात भी मूल मूर्ति श्री कालाराम मंदिर में ही विराजमान रहेगी !
अब श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीराममंदिर का निर्माण हो रहा है । श्री कालाराम मंदिर की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा ‘यावच्चन्द्रदिवाकरौ…’ इस नियम के अनुसार अर्थात ‘जब तक चंद्र और सूर्य हैं’, तब तक अर्थात अनंत काल के लिए है । आरंभ में विक्रमादित्य द्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर स्थापित की हुई यह मूर्ति प्रभु श्रीराम के दृष्टांतानुसार ही श्री कालाराम मंदिर में स्थापित की गई है । इसलिए यह मूर्ति श्री कालाराम मंदिर में ही रहेगी ।’
– श्री. गोपाळराव दिगंबर देशपांडे, पुजारी व उनके भतीजे श्री. राघवेंद्र यशवंत देशपांडे, व्यवस्थापक, श्री कालाराम मंदिर, अयोध्या.