रामराज्य समान हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने हेतु प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद !
१. कुछ कारणवश श्रीरामजन्मभूमि पर जाने में बाधा आने से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का मार्ग के मठ में रुकना
महर्षि ने २.८.२०२० को श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को अयोध्या के रामजन्मभूमि के दर्शन करने के लिए कहा था । उस दिन किसी कारणवश श्रीरामजन्मभूमि के दर्शन बंद रखे गए थे इसलिए श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी रामजन्मभूमि नहीं जा सकीं । उस समय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ मार्ग के एक मठ में रुकीं । तब उस मठ के महंत ने उन्हें श्री कालाराम मंदिर के विषय में जानकारी दी ।
२. प्रभु श्रीराम की मूल मूर्ति के दर्शन होने के विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को मिला संकेत और प्रत्यक्ष दर्शन
मठ में मिली जानकारी के आधार पर श्री कालाराम मंदिर में जाने के उपरांत श्री कालाराम मंदिर के पुजारी श्री. गोपालराव दिगंबर देशपांडे और उनके भतीजे और मंदिर के व्यवस्थापक श्री. राघवेंद्र यशवंत देशपांडे ने उस मूर्ति का इतिहास बताया । इससे समझ में आया कि सम्राट विक्रमादित्य द़्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर स्थापित की हुई मूल मूर्ति अब श्री कालाराम मंदिर में स्थापित है । वह मूर्ति श्रीरामपंचायतन है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उस मूर्ति के भावपूर्ण दर्शन लिए । प्रत्यक्ष में भी रामजन्मभूमि के निकट मठ में प्रवेश करते ही श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को लग रहा था कि ‘आज प्रभु श्रीराम की मूल मूर्ति के दर्शन होंगे ।’
सर्वत्र परिस्थिति अत्यंत कठिन है । ऐसी स्थिति में प्रभु श्रीराममंदिर की मूल और प्राचीन मूर्ति के दर्शन होना, यह हिन्द़ू राष्ट्र अर्थात रामराज्य की स्थापना के लिए मिला महत्त्वपूर्ण आशीर्वाद ही है ! यह महर्षि और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा ही है ! भगवान को खरे भक्त से मिलने के लिए परिस्थिति का कोई भी बंधन नहीं होता, यही सत्य है !’
– श्री. अनिमिष नाफडे, अयोध्या. (३.८.२०२०)
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को श्रीरामपंचायतन की मूल मूर्ति के दर्शन लेते समय हुई अनुभूति !
अत्यंत विलोभनीय, मनमोहक एवं आकर्षणशक्ति से युक्त श्रीरामपंचायतन की मूर्ति !
‘रामपंचायतन की यह मूर्ति अत्यंत सुंदर और विलोभनीय है । इस मूर्ति के मुख पर मनमोहक भाव है । उस मूर्ति में विशिष्ट प्रकार का आकर्षण है । इसलिए मनुष्य की दृष्टि उस पर से हटती नहीं । मैं उस मूर्ति की ओर आकर्षित हो गई । अपने निकटतम व्यक्ति से मिलने पर जो आनंद होता है, वैसा आनंद इस मूर्ति के दर्शन लेने पर हुआ । मैं भाव-विभोर हो गई ।
महर्षि की आज्ञा से मैं पिछले २ – ३ वर्षों से अयोध्या आ रही हूं; परंतु अब इस मूर्ति के दर्शन हुए । हिन्दू राष्ट्र स्थापना की, अर्थात रामराज्य की स्थापना का समय निकट आ रहा है, वैसे ही श्रीरामतत्त्व जागृत हो रहा है । इसी का शुभसंकेत है कि प्रभु श्रीराम की इस मूल मूर्ति के दर्शन हमें हुए हैं ।’ – (श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळ (३.८.२०२०)
इस पंचायतन में श्रीराम पद्मासन में बैठे हैं, उनके बाएं में सीतामाता है, श्रीराम के दाएं में लक्ष्मण की मूर्ति है । लक्ष्मण के हाथ में छत्र है । एक ओर पंखा हाथ में पकडे भरत और चामर लिए शत्रुघ्न हैं । उनके सामने हनुमान विराजमान हैं । अहिरावण का वध करने के लिए हनुमानजी ने देवी का रूप धारण किया था । इसलिए यहां हनुमान की मूर्ति देवी के वेश में है और उनके पैरों तले अहिरावण है । ये सभी मूर्तियां एक ही शालीग्राम पत्थर की बनी हैं । मूर्ति के चरणों में श्रीरामयंत्र है । वाल्मीकि रामायण में दिए श्लोक के अनुसार इस मूर्ति की रचना है ।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर में मूर्ति पहले स्थापित हुई व तदुपरांत मंदिर का निर्माण हुआ ।
राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु सक्रिय होना ही कृतज्ञता !यवनी आक्रमणों के काल में धर्म और संस्कृति बचाने के लिए अपने पूर्वजों ने शक्ति और आवश्यकता पडने पर युक्ति से काम लिया । बाबर के आक्रमण से बचाने के लिए श्रीराममंदिर के पुजारी श्यामानंद सरस्वती ने वह मूर्ति सरयू माता के अधीन की, इसलिए वह सुरक्षित रही । तदुपरांत पंडित मोघे ने स्वप्नदृष्टांत अनुसार उसे पुन: स्थापित किया, इसलिए आज उस मूर्ति के दर्शन हो रहे हैं । आज हम जो प्राचीन मंदिर देख रहे हैें, उन्हें अपने पूर्वजों ने अत्यंत कष्ट से रक्षा की हुई अनमोल धरोहर है । उन सभी को त्रिवार वंदन ! अपनी अगली पीढी को यह इतिहास ज्ञात हो, इसलिए अपने पराक्रमी और धर्मनिष्ठ पूर्वजों के समान ही राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए सक्रिय होना, यही उनके प्रति खरी कृतज्ञता है ! |
महर्षि की सर्वज्ञता और द्रष्टापन !
१. ‘नाडीवाचन से महर्षि हमें श्रीराम जन्मभूमि पर दर्शन करने के लिए बताते समय सदैव कहते थे कि ‘समर्थ रामदासस्वामीजी द्वारा पूजन की गई मूर्ति के दर्शन करें ।’ वर्तमान में श्रीराम जन्मभूमि पर जो मूर्ति है, अभी के काल की है । कालाराम मंदिर का इतिहास जानने पर ध्यान में आया कि ‘महर्षि जो हमें बता रहे थे वह मूर्ति यही है ।’ २.८.२०२० को हम श्रीराम जन्मभूमि पर दर्शन के लिए गए थे। तदुपरांत जानकारी मिलने पर हम श्री कालाराम मंदिर आए । इससे यह ध्यान में आया कि ‘हमारा श्री कालाराम मंदिर आना ईश्वरनियोजित ही था।’ महर्षि की सर्वज्ञता भी इससे समझ में आती है ।
२. कुछ वर्षों पूर्व ही महर्षि ने ‘सनातन के सर्व साधकों की रक्षा हो’, इसके लिए श्रीरामपंचायतन का चित्र साधकों को साथ में रखने के लिए कहा
है । आज श्री कालाराम मंदिर के रामपंचायतन की मूल मूर्ति के दर्शन लेने के उपरांत महर्षि द्वारा दिए गए श्रीरामपंचायतन के चित्र के पीछे का कार्यकारणभाव ध्यान में आया ।’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ