वाराणसी में सेवा करनेवाले श्री. राजाराम पाध्ये ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त !

श्री. राजाराम पाध्ये

     वाराणसी (उ.प्र.) – २२ मार्च को आयोजित एक ऑनलाइन सत्संग में वाराणसी सेवाकेंद्र में पूर्णकाल सेवा करनेवाले श्री. राजाराम पाध्‍ये का आध्‍यात्मिक स्‍तर ६१ प्रतिशत होने की हिन्‍द़ू जनजागृति समिति के पूर्वोत्तर भारत मार्गदर्शक पू. नीलेश सिंगबाळजी ने घोषित किया । यह आनंदवार्ता सुनकर साधकों की भावजागृति हुई । इस अवसर पर उनकी अनेक गुणविशेषताएं साधकों ने व्यक्‍त कीं । इस सत्संग के लिए रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में सेवारत उनकी पत्नी ६३ प्रतिशत आध्यात्‍मिक स्‍तर की श्रीमती रश्मी पाध्ये, भू (राजापुर) निवासी सुपुत्र श्री. राकेश, श्री. आेंकार, स्नुषा श्रीमती पूर्वा और श्रीमती स्वराली ऑनलाइन माध्यम से जुडे थे । इस प्रसंग में परिवार के सदस्‍यों ने कृतज्ञता व्‍यक्‍त की और श्री. राजाराम पाध्ये की साधना यात्रा के कुछ प्रसंग और साधना से उनमें हुआ परिवर्तन भावपूर्वक व्‍यक्‍त किया ।

     ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर घोषित होने पर श्री. राजाराम पाध्‍ये का भाव जागृत हुआ । वे बोलेे, ‘‘मेरी प्रगति केवल परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से हुई है ।’’ इस अवसर पर पू. नीलेश सिंगबाळजी ने उन्हें भेंटवस्तु दी ।

‘अखंड सेवारत रहना’ काका का दैवीय गुण है ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी

     वाराणसी में धर्मसंवाद का ध्‍वनिचित्रीकरण आरंभ हुआ । तब उन्होंने आवश्यकता देखकर अपना नया चल-दूरभाष इस सेवा के लिए दिया । उन्हें चल-दूरभाष के विषय में आसक्ति भी नहीं थी । उन्हें द़ेखकर ही ऐसा लगता है कि वे माया से अलिप्त हैं और सेवा के माध्यम से भगवान के आंतरिक सान्निध्य में हैं । जब काका वाराणसी सेवा केंद्र में रहने आए, तब प्रयाग कुंभमेले में हुए सात्त्विक उत्पादों की बिक्री संबंधी सेवा आरंभ हो गई थी । इस सेवा में कुछ कठिन प्रक्रिया थी और कुछ अडचनें भी निर्माण हुई थीं । तब वे नए होने से उन्हें सेवा के पिछले विवरण की जानकारी नहीं थी, तब भी उन्होंने लगन से और अखंड सेवा कर, इस सेवा की अडचनें सुलझाने का प्रयत्न किया । इसे करते समय उन्हें पिछले विवरण की जड तक जाने का प्रयत्न करना पडा । ‘मैं यहां नया आया हूं । मुझे कुछ पता नहीं । मुझसे नहीं होगा’, ऐसे विचार उन्होंने एक बार भी व्यक्त नहीं किए । उन्‍होंने श्रद्धा से इस सेवा में नेतृत्‍व लेकर प्रयत्न किया । उसमें से त्रुटियां ढूंढ निकालीं और सेवा पूर्ण की ।