नियमित उचित साधना करने से, आपातकाल में दैवी सहायता से आपकी रक्षा होगी ! – शॉन क्लार्क

श्रीलंका के अंतरराष्‍ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में ‘मौसम परिवर्तन’ विषय पर आध्‍यात्मिक शोधनिबंध प्रस्‍तुत !

 शॉन क्लार्क

     मुंबई – अत्‍यंत प्रतिकूल मौसम से संबंधित घटनाआें तथा प्राकृतिक आपदाआें की मात्रा दिनोंदिन बढती जा रही है । मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन के पीछे मानव का हाथ है, ऐसा शास्त्रज्‍ञों का मत है; परंतु यदि मानव योग्य साधना आरंभ कर उसे नियमित रूप से बढाए, तो स्वयं में तथा आसपास सात्त्विकता निर्माण होती है । इसलिए यद्यपि मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन हुए, तब भी साधना करनेवालों को आगामी आपातकाल में दैवी सहायता प्राप्त होकर उनकी रक्षा हो सकती है। महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद़्‍यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने शोधनिबंध प्रस्तुत करते समय ऐसे विचार व्यक्त किए । कोलंबो, श्रीलंका में १९ मार्च २०२१ को आयोजित ‘चौथे इंटरनेशनल कॉन्फरेंस ऑन सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट’ अंतर्राष्ट्रीय परिषद में श्री. क्लार्क ने ‘मौसम में परिवर्तन तथा समाधान पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण’ के संदर्‍भ में शोधनिबंध प्रस्तुत किया । वे ‘ग्लोबल एकेडेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट’ परिषद के आयोजक थे । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं सहलेखक शॉन क्लार्क हैं ।

श्री. शॉन क्‍लार्क ने आगे कहा कि

१. किसी भी घटना की मूलभूत कारणमीमांसा का अध्‍ययन करते समय आध्‍यात्मिक स्‍तर पर भी उसका अध्‍ययन होना आवश्यक है । जिस समय मौसम में अपेक्षा के विपरीत विविध परिवर्तन होते दिखाई देते हैं, उस समय उसके पीछेे निश्चित रूप से आध्यात्मिक कारण होता है ।

२. यदि पृथ्‍वी पर सात्त्विकता अल्‍प हुई तथा तामसिकता बढ गई, तो मानव की अधोगति होकर पृथ्‍वी पर साधना करनेवालों की संख्‍या न्‍यून हो जाती है। मानव के स्‍वभावदोष एवं अहं की मात्रा बढने से पर्यावरण की ओर उसकी अक्षम्य अनदेखी होती है, अर्थात अधर्म में वृद्धि होती है ।

३. सूक्ष्म की शक्‍तिशाली अनिष्‍ट शक्‍तियां पर्यावरण के इस ह्रास का अनुचित लाभ लेकर तमोगुण बढाती हैं एवं मानव पर प्रतिकूल परिणाम डालती हैं । जिस प्रकार धूल तथा धुएं से स्‍थूल स्‍तर पर प्रदूषण होता है, तथापि हम प्रतिदिन स्‍वच्‍छता करते हैं, उसी प्रकार अधमार्र्चरण सेे हो रही रज-तम में वृद्धि सूक्ष्म स्‍तर का प्रदूषण है ।

४. प्राकृतिक आपदाआें के माध्यम से प्रकृति इस सूक्ष्म पर्यावरण को स्वच्छ करती है । इस प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी ‘चरक संहिता’ में दी गई है ।

५. ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ ने पूरे विश्‍व में ३२ देशों की मिट्टी के अनुमानतः १ सहस्र उदाहरणों के सूक्ष्म स्पंदनों का अध्ययन किया । यह अध्ययन आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण तथा सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से किया गया है । इस अध्ययन में ८० प्रतिशत उदाहरणों में कष्टदायक स्पंदन दिखाई दिए । इसमें मिट्टी के कुछ उदाहरण हमने उसी स्थान से वर्ष २०१८ तथा २०१९ में प्राप्त किए थे । वैज्ञानिक उपकरण द्वारा किए गए परीक्षण में केवल एक वर्ष की कालावधि में इन उदाहरणों की नकारात्मक ऊर्‍जा में १०० से ५०० प्रतिशत वृद्धि पाई गई । सारांश यह कि पूरे विश्व में (कुछ धार्मिक स्थलों में भी) नकारात्मकता में बहुत वृद्धि पाई गई ।

     महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्‍तुत किया उपरोक्‍त शोधनिबंध ६८ वां था । इससे पूर्व विश्‍वविद्यालय ने १५ राष्‍ट्रीय तथा ५२ अंतर्राष्‍ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्‍तुत किए हैं । इन में ४ अंतर्राष्‍ट्रीय परिषदों मेें विश्वविद्यालय को ‘सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध’ पुरस्कार प्राप्त हुए हैं ।