चैतन्‍यदायी ब्रह्मध्वजा !

१. हिन्‍दू नववर्षारंभ के दिन (चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा) पृथ्‍वी पर प्रजापति संयुक्‍त तरंगों का अधिक मात्रा में आना !

     तंत्रग्रंथ के ‘गणेशयामल’ नामक तंत्रग्रंथ में ‘अजान लोक में नक्षत्र लोक के (कर्मदेव लोक के)२७ नक्षत्रों से निकली तरंगों में से प्रत्‍येक के ४ चरण (विभाग) बनते हैं तथा पृथ्‍वी पर २७ x ४ = १०८ तरंगें आती हैं ।’ उनके विघटन से यम, सूर्य, प्रजापति एवं संयुक्‍त, ऐसी ४ तरंगें बनती हैं ।

अ. प्रजापति तरंगों के कारण भूमि की वनस्‍पतियों के अंकुरण की क्षमता बढना, बुद्धि का प्रगल्‍भ होना, कुआें में नए झरने आना, शरीर में कफ प्रकोप इत्‍यादि परिणाम होते हैं ।

आ. यमतरंगों के कारण वर्षा होना, वनस्‍पतियों का अंकुरण होना, महिलाआें को गर्भ धारण होना, गर्भ का विकास व्‍यवस्‍थित होना, शरीर में वायु प्रकोप होना इत्‍यादि परिणाम होते हैं ।

इ. सूर्यतरंगों के कारण भूमि का तापमान बढकर वनस्‍पतियों का जल जाना, त्‍वचा रोग होना, भूमि की उत्‍पाद क्षमता न्‍यून होना, शरीर में पित्त प्रकोप जैसे परिणाम होते हैं ।

ई. संयुक्‍त तरंग अर्थात प्रजापति, सूर्य एवं यम, इन तीनों तरंगों का मिश्रण  जिन संयुक्‍त तरंगों में प्रजापति तरंगों की मात्रा अधिक होती है, उन्‍हें प्रजापति-संयुक्‍त तरंगें कहते हैं । इसी प्रकार सूर्य संयुक्‍त एवं यम संयुक्‍त तरंगें भी होती हैं ।

२. प्रत्‍येक मास में पृथ्‍वी पर आनेवाली तरंगों की मात्रा

     प्रत्‍येक मास में पृथ्‍वी पर प्रजापति, सूर्य, यम एवं संयुक्‍त तरंगें आती हैं । चैत्र मास में इन तरंगों में सत्त्वगुण अधिक मात्रा में उत्‍पन्‍न करनेवाली प्रजापति-संयुक्‍त एवं सूर्य-संयुक्‍त तरंगें अधिक मात्रा में होती हैं । चैत्र मास की शुक्‍ल पक्ष प्रतिपदा को पृथ्‍वी पर प्रजापति-संयुक्‍त तरंगें सबसे अधिक मात्रा में आती हैं; इसलिए इस दिन को वर्षारंभ कहा जाता है ।

३. प्रजापति तरंगें

     प्रजापति तरंगें ब्रह्मध्‍वजा के माध्‍यम से ग्रहण कर वातावरण में प्रक्षेपित की जाती हैं । जिन जीवों में ईश्‍वर के प्रति भाव होता है, उन जीवों को इन तरंगों का अधिक लाभ मिलता है ।

४. प्रजापति तरंगें ग्रहण करने हेतु आवश्‍यक गुण

     सामान्‍य व्‍यक्‍ति में ईश्‍वर से आनेवाली तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता बहुत अल्‍प होती है । जिस जीव में निम्‍नांकित गुण होते हैं, वह इन तरंगों को अधिकाधिक मात्रा में ग्रहण कर सकता है – सदैव ईश्‍वर का स्‍मरण करनेवाला, ईश्‍वर के प्रति अटूट श्रद्धा रखनेवाला, अपनी शक्‍ति का उपयोग राष्‍ट्र एवं धर्म के कार्य हेतु करनेवाला ।

     (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – त्‍योहार मनाने की उचित पद्धतियां)