जीवन का सार बताने वाली श्रीमद्भगवद्गीता को पाठशाला के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना आवश्यक ! – अभिनेत्री मौनी रॉय

  • ध्यान दें कि, इतने बडे चलचित्र (फिल्म) उद्योग में, एकाध-दो लोग ही श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में ऐसी मांग करते हैं ! मूलतः, ऐसी मांग करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । हिंदुओं को लगता है कि केंद्र सरकार को ही ऐसा निर्णय लेना चाहिए !

  • निधर्मी देश में धर्म को दूर रखने के कारण समाज की नैतिकता का अधःपतन हुआ है । इसे पुनः स्थापित करने के लिए धर्मशिक्षा एवं साधना के अलाव कोई विकल्प नहीं है !

मुंबई : ‘परिवहन प्रतिबंध (लॉक डाऊन) के काल में मैं बहुत धार्मिक हो गई थी । उस समय मैं अपने मित्र द्वारा चलाए जा रहे गीता के वर्ग में सहभागी हुई थी । मुझे लगता है कि पाठशाला के पाठ्यक्रम में श्रीमद्भगवद्गीता को सम्मिलित किया जाना चाहिए । यह केवल एक धार्मिक पाठ नहीं है, अपितु यह जीवन का सार है । खरा ज्ञान है । हमारे मन जो भी प्रश्न आता है, गीता में उसका उत्तर होता ही है’, ऐसा प्रतिपादन एक समाचार जालस्थल के साथ किए एक साक्षात्कार में अभिनेत्री मौनी रॉय ने किया ।

मौनी रॉय ने कहा,

१. हमारे घर में बाल्यावस्था से ही गीता का पठण किया जाता था । मैंने तब गीता पढने का प्रयास किया था ; परंतु, उस समय मैं अधिक समझ नहीं पाती थी । अब श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व मेरे ध्यान में आया है तथा पूरे विश्व में इसका प्रसार करने के लिए मैं काम कर रही हूं ।

२. चलचित्र सृष्टि में काम करने वाले प्रत्येक को गीता पढनी चाहिए ; क्योंकि, इस क्षेत्र में व्यक्ति इतना व्यस्त हो जाता है कि वह स्वयं को भूल जाता है । ऐसे समय गीता सहायता कर सकती है ।

३. हम अज्ञानी हैं । वास्तव में, हम वेदों, उपनिषदों आदि ग्रंथों के देश से हैं और हम इस विषय में कुछ भी नहीं करते । हम एक सोने की खान पर बैठे हैं एवं इसके संदर्भ में निष्क्रिय हैं । चाहे वह गांव हो या शहर, सभी को गीता की अत्यधिक आवश्यकता है ।