भारत में सर्वत्र दूध एवं दुग्धजनित पदार्थों में होनेवाली मिलावट एवं उस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

पू. (अधिवक्‍ता) सुरेश कुलकर्णी

१. मिलावटयुक्‍त दूध बेचकर जनता के प्राणों से खेलनेवाले दूध व्‍यवसायी !

     ‘वर्ष २०११ में भारत में ‘दूध मिलावट राष्‍ट्रीय सर्वेक्षण’ द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया। उन्‍होंने संपूर्ण भारत में विशेषत: दूध का अधिक उत्‍पादन होनेवाले राज्‍यों में सर्वेक्षण किया कि क्या दूध शुद्ध मिलता है । इस सर्वेक्षण में भारत में बिक्री होनेवाले कुल दूध में ६८ प्रतिशत दूध मिलावटयुक्त मिला है । कुछ राज्यों के दूध में १०० प्रतिशत मिलावट दिखाई दी । इसका अर्थ है उस राज्य के दूध की प्रत्येक बूंद दूषित अथवा मिलावटी होती है । ऐसी मिलावट बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, बंगाल, मिजोरम, दीव और दमन आदि प्रदेशों में की जाती है । दुग्ध व्यवसायी दूध में मिलावट करने के लिए यूरिया, डिटर्जेंट, कॉस्टिक सोडा, रिफाइंड तेल आदि घटकों का उपयोग करते हैं । इससे समझ में आता है कि दूध विक्रेता अथवा व्यापारी बालकों के प्राणों से किस प्रकार अघोरी पद्धति से खेलते हैं । शिशु अथवा बालकों के लिए दूध एक उत्तम आहार है। यदि यह दूध मिलावटयुक्त हो, तो देश की नई पीढी का क्या होगा, इसका अनुमान भी नहीं लगा सकते । इस संदर्भ में कुछ समाजसेवी संगठनों और व्यक्तियों ने न्‍यायालय में न्याय मांगा था । इस प्रश्न का राष्ट्रीय महत्त्व समझकर इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से विचार किया। प्रारंभ में इस याचिका में राज्य सरकारें प्रतिवादी थीं । उसके उपरांत केंद्र सरकार और अन्यों को भी प्रतिवादी बनाया गया ।

२. समाचार वाहिनियां और समाचार पत्रों द्वारा इस ब्‍यौरे को प्रसारित करना

     दूध में ६८ प्रतिशत से अधिक मात्रा में मिलावट दर्शानेवाले वर्ष २०११ के इस ब्‍यौरे को प्रसारमाध्‍यमों ने अच्‍छे से प्रसारित
किया । प्रतिष्‍ठित अंग्रेजी और मराठी समाचार पत्रों ने इसे मुख्य समाचार बनाया । वर्ष २०१२ में कुछ समाजसेवी संस्थाआें ने निवेदन किया कि ‘उन्हें भी इसमें याचिकाकर्ता बनाया जाए ।’ बालकों के पालन-पोषण और वृद्धि के लिए मिलनेवाला दूध पौष्टिक होना चाहिए, ऐसी लगन उसके पीछे थी ।

३. सरकार द्वारा संबंधित कानूनों की कठोर कार्यवाही करने पर दूध की मिलावट रोकना संभव !

     केंद्र सरकार द्वारा सूचित किया गया कि वर्ष २००६ में संसद ने इस संबंध में ‘फूड सेफ्‍टी एंड स्‍टैंडर्ड एक्‍ट’ कानून बनाया है । उसमें दूध और दुग्‍धजनित पदार्थों का उत्पादन करने और बेचने के संबंध में नियम बनाए गए हैं । दूध व्यवसायियों को राज्यों के दुग्ध विकास मंत्रालय द्वारा नियुक्त अधिकारियों को आवेदन देकर अनुमति लेना अनिवार्य किया है । उसके उपरांत वर्ष २०११ में नियमावली भी बनाई गई । उसके अनुसार अधिकारियों को मिलावट करनेवाले के विरुद्ध कार्यवाही करने के अधिकार दिए गए तथा उनका भंग करनेवालों को भारतीय दंड विधान में धारा २९२ और २९३ के अनुसार दंड की भी व्यवस्था की गई । उत्तरप्रदेश सरकार ने इस संबंध में अपने राज्य में कानून अधिक कठोर बनाया है । उन्होंने मिलावट करनेवालों को आजन्म कारावास के दंड की व्यवस्था की है । वास्तविक प्रश्न यह है कि क्या इस कानून पर कार्यवाही होती है ?

४. मिलावट के विरुद्ध की गई कठोर व्‍यवस्‍थाएं उत्तर प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय द्वारा निरस्‍त करना

     उत्तर प्रदेश सरकार ने भारतीय दंड विधान की धारा २९२ और २९३ में परिवर्तन किया । उन्‍होंने दूध में मिलावट रोकने के लिए दंड की व्‍यवस्‍था में वृद्धि की तथा अपराध सिद्ध होने पर आजन्‍म कारावास का दंड देने की व्‍यवस्‍था की । उसी प्रकार बंगाल और ओडीशा राज्यों ने भी मिलावट करनेवालों को दंड सहित कारावास के दंड में वृद्धि की । इस सुधार को उत्तर प्रदेश उच्च न्‍यायालय में चुनौती दी गई । उसके पश्चात उच्च न्‍यायालय ने अपने ८.९.२०१० के आदेश से ये परिवर्तन निरस्त किए । इस निर्णय को उत्तर प्रदेश सरकार ने त्‍वरित सर्वोच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी । वर्तमान में यह याचिका सर्वोच्‍च न्‍यायालय में लंबित है ।

५. मिलावट करनेवालों को कठोर दंड मिलने के लिए कानून
में परिवर्तन करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देश देना

     ‘अन्‍य राज्‍य भी मिलावट करनेवालों के विरुद्ध कठोर दंड की व्‍यवस्‍था रखें तथा केंद्र सरकार भी उनके कानून में इस प्रकार के परिवर्तन करे’, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने ५.१२.२०१३ को कहा । उसके अनुसार केंद्र सरकार भी शीघ्र ही परिवर्तन करनेवाली है, ऐसा १२.३.२०१४ को केंद्रीय स्वास्थ्‍य विभाग के अधिकारी ने कहा है । उसके उपरांत सर्वोच्च न्‍यायालय ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलावट करनेवालों के विरुद्ध कठोर दंड देने के लिए उनके कानून में परिवर्तन करने के निर्देश दिए हैं ।

६. मिलावट के संदर्भ में सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिया गया निर्णय

६ अ. केंद्र सरकार और राज्‍य सरकारें ‘एफएसएस २००६’ कानून पर परिणामकारक रूप से अमल करने हेतु प्रयत्न करें ।

६ आ. दूध में मिलावट की गई अथवा उसमें कॉस्‍टिक सोडा, कीटकनाशक और रासायनिक पदार्थों जैसे घटक मिले, तो संंबंधितों पर कठोर कार्यवाही की जाएगी, ऐसी चेतावनी सर्व राज्य सरकारें दूध डेयरी, दूध विक्रेता और फुटकर दूध विक्रेताआें को दे ।

६ इ. जिस स्‍थान पर फुटकर विक्रेता अधिक हैं तथा अधिक मात्रा में मिलावट होती है, वहां के दूध के नमूनों की जांच के लिए डेयरी विभाग के कर्मचारी बडी मात्रा में बढाए जाएं ।

६ ई. सरकार दूध के नमूनों की जांच के लिए शास्‍त्रीय प्रयोगशालाएं बनाए । वे प्रयोगशालाएं जनपद स्‍तर पर भी हों ।

६ उ. जिस स्‍थान पर दूध और दुग्‍धजनित पदार्थ थैलियों में बेचे जाते हैं, वहां के नमूने जांच के लिए नियमित रूप से लिए जाएं ।

६ ऊ. जिस प्रकार केंद्र सरकार ने वर्ष २०११ में सर्वेक्षण कर दूध की मिलावट को उजागर किया था, वैसा सर्वेक्षण एक निश्‍चित समय उपरांत निरंतर किया जाए ।

६ ए. दूध की मिलावट पर रोक लगाने के लिए सरकार समितियां स्‍थापित करे । उनमें मुख्‍य सचिव और डेयरी विभाग के सचिव की अध्‍यक्षता में समिति हो । ऐसी समितियां जनपद स्तर पर भी स्थापित की जाएं । इस समिति के अध्यक्ष पद पर जिलाधिकारी होना चाहिए ।

     इसके अतिरिक्‍त इन सर्व समितियों का कारोबार व्‍यवस्थित चलने की ओर सरकार ध्यान दे ।

६ ऐ. इस संदर्भ में सरकार एक जालस्‍थल प्रारंभ करे । उसमें ‘एफएसएस २००६’ के कानून के अनुसार अधिकारियों को दायित्‍व की जानकारी दी
जाए । इस जालस्‍थल पर दूध में मिलावट के संबंध में ग्राहकों को ‘ऑनलाइन’ शिकायत करने की सुविधा प्रदान की जाए । आयुक्त, सह आयुक्त इस स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति कर उनके ‘फ्री टोल’ दूरभाष क्रमांक दिए जाएं ।

६ ओ. विद्यालयों में कार्यशालाआें का आयोजन कर मिलावट के संबंध में विद्यार्थियों को अवगत करवाया जाए ।

६ औ. केंद्र सरकार और राज्‍य सरकारें भ्रष्‍टाचार पर नियंत्रण रखने के लिए अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत सुनने के लिए स्वतंत्र तंत्र स्थापित करें ।

     ‘एफएसएस २००६’ कानून और उसकी २०११ की नियमावली, सर्वोच्‍च न्‍यायालय का निर्णय पत्र और उनके द्वारा बालक, अभिभावक और बीमार व्यक्‍तियों को मिलावट युक्त द़ूध मिलने के संबंध में व्यक्‍त की हुई संवेदना स्तुत्‍य हैं । कानून और नियम अच्छे होने पर भी उनकी कार्यवाही होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक कानून नागरिकों के हित, रक्षा और कल्याण के लिए होता है । दुर्भाग्‍यवश उसकी कार्यवाही नहीं होती ।

श्रीकृष्‍णार्पणमस्‍तु !’

– (पू.) अधिवक्‍ता सुरेश कुलकर्णी, संस्‍थापक सदस्‍य, हिन्‍दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्‍ता, मुंबई उच्‍च न्‍यायालय. (१५.०२.२०२१)