महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण का प्रकरण !
नई दिल्ली : ८ मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण प्रकरण पर सुनवाई के दौरान कहा, “यह सूत्र केवल महाराष्ट्र के लिए नहीं है, अपितु महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में, जहां ५० प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिया गया है, उनके लिए भी है ।” इस मांग को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है और इस प्रकरण में उन राज्यों को भी नोटिस भेजा जाएगा, जहां अब आरक्षण ५० प्रतिशत से अधिक है । सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई हुई । अदालत ने दोनों पक्षों के विचारों को सुनने के बाद यह स्पष्ट कर दिया है कि अगली सुनवाई १५ मार्च को होगी ।
The #SupremeCourt sought responses on whether legislatures were competent to declare a particular caste to be socially and educationally backward for grant of quotahttps://t.co/cNQCNVN10t
— Business Standard (@bsindia) March 8, 2021
१. सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई के लिए समय सारिणी तय की थी । ८ से १८ मार्च तक नियमित सुनवाई होनी थी ; हालांकि, वकील मुकुल रोहतगी, जो राज्य सरकार के पक्ष में हैं, ने मांग की है कि अन्य राज्य भी इसमें भाग लें । कर्नाटक और तमिलनाडु सहित कुछ अन्य राज्यों ने भी ५० प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार कर ली है । रोहतगी की दलील के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक मापदंड पर दिए गए १० प्रतिशत आरक्षण के कारण इस सीमा का उल्लंघन हुआ है ।
२. केंद्र का बचाव करते हुए, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा, “मराठा आरक्षण पर सुनवाई में पहले ही देरी हो चुकी है । अब अन्य राज्यों को इसमें न लाएं । न्यायालय ने मुकुल रोहतगी के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और ५० प्रतिशत की आरक्षण सीमा से अधिक के सभी राज्यों को नोटिस जारी करने की अनुमति दी है । अब उन्हें भी पक्षकार बनाया जाएगा ।
३. १ दिसंबर, २०१८ को महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की मांग के बाद, सरकार ने उन्हें नौकरियों में १६ प्रतिशत आरक्षण दिया था । फलस्वरूप, आरक्षण की सीमा ५० प्रतिशत होते हुए भी उस को पार कर लिया गया । इसके कारण उसके विरुद्ध न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है । सुप्रीम कोर्ट ने ५० प्रतिशत की सीमा तय की है । हालांकि, यह तमिलनाडु में ६९ प्रतिशत है । तब से, कुछ अन्य राज्यों ने भी इस सीमा को पार कर लिया है । (जो राज्य सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हैं, उनके विरूद्ध कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है, क्या न्यायालय के आदेश पालन करने के लिए नहीं होते ? – संपादक)