क्‍या प्रत्‍येक सांसद को सांसद स्‍थानीय क्षेत्र योजना के माध्‍यम से प्रतिवर्ष ५ कोटि रुपए का उचित आवंटन प्राप्‍त होता है ?

पू. अधिवक्‍ता सुरेश कुलकर्णी

१. सांसद स्‍थानीय क्षेत्र योजना का स्‍वरूप एवं उद्देश्‍य

२३.१२.१९९३ को ग्रामीण क्षेत्र मंत्रालय के माध्‍यम से लोकसभा एवं राज्‍यसभा के प्रत्‍येक सांसद को उसके क्षेत्र में विकास हेतु प्रतिवर्ष ५ लाख रुपए मान्‍य किए गए थे । ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं सांख्‍यिकी विभाग तथा कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय (मिनिस्‍ट्री ऑफ स्‍टैटिस्‍टिक्‍स स्‍मॉल एंड प्रोग्राम इंप्‍लीमेंटेशन) के माध्‍यम से वर्ष १९९४ से पिछले २५ वर्षों से यह योजना चल रही है । निधि के अभाव अथवा योजना के प्राधान्‍यक्रम के अभाव में छोटे-बडे लोकोपयोगी काम पीछे रह जाते हैं । ऐसे काम स्‍थानीय लोकप्रतिनिधियों द्वारा सूचित करना संभव हो, इस योजना का यह उद्देश्‍य है । वर्ष १९९४ में सांसद निधि योजना के माध्‍यम से व्‍यय करने की सीमा १ कोटि रुपए की गई । यह सीमा वर्ष १९९८-९९ में २ कोटि एवं वर्ष २०११-२०१२ में प्रतिवर्ष ५ कोटि रुपए तक बढाई गई एवं प्रत्‍येक सांसद को उसके क्षेत्र की विविध सरकारी योजनाआें के लिए यह निधि उपयोग में लाने का अधिकार दिया गया ।

 

२. योजना बंद करने के लिए आयोग एवं स्‍वतंत्र निकायों द्वारा निर्देश प्राप्‍त करना

सांसद निधि के विनियोग के विषय में ‘कैग’ (नियंत्रक एवं महालेखापाल) कभी समाधानी नहीं था । सांसद स्‍थानीय क्षेत्र योजना चालू रखनी है अथवा नहीं, इस संदर्भ में आयोग एवं स्‍वतंत्र निकायों के माध्‍यम से ब्‍यौरे लिए गए । संविधान के कामकाज का समीक्षण करने हेतु राष्‍ट्रीय आयोग (सरन्‍यायाधीश व्‍यंकटचलय्‍या आयोग) ने यह योजना त्‍वरित बंद करने कानिर्देश दिया था । इसके साथ ही केंद्र सरकार के अंतर्गत आनेवाली राष्‍ट्रीय परामर्श परिषद ने भी वर्ष २००५ में उसे बंद करने का निर्देश दिया था । नए मार्गदर्शक निर्देशानुसार कैग द्वारा इस योजना के अंतर्गत व्‍यय किए गए पैसे का लेखा-परीक्षण नहीं होता । सांसद कानूनमंडल के घटक होते हैं । अतः वे प्रशासन के घटक के रूप में काम नहीं कर सकते; उसी प्रकार अकार्यक्षम रहने से अनेक राज्‍यों के सांसद की निधि बिना किसी उपयोग के पडी रहती है । इन कारणों से ये योजनाएं बंद करने का निर्देश दिया गया था ।

३. केंद्र सरकार द्वारा कोविड-१९ के लिए सांसद निधि का उपयोग करना

वर्ष २०१६ से केंद्र सरकार ने ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’, ‘सुगम्‍य भारत’, ‘स्‍वच्‍छ भारत’ आदि योजनाआें के लिए भी सांसद निधि का उपयोग करने का सुझाव दिया । वर्ष २०१९-२०२० में कोविड-१९ ने पूरे विश्‍व में भयंकर अशांति मचाई । उस समय इस योजना के अंतर्गत प्रत्‍येक सांसद को दिए जानेवाले ५ कोटि रुपए २ वर्ष के लिए रोके गए थे तथा भारत की एकत्रित निधि में इस निधि का वर्गीकरण किया गया था । इस प्रकार उपयोग करने हेतु केंद्र सरकार को ७ सहस्र ९०० कोटि रुपए प्राप्‍त हुए ।

४. सांसद विकास क्षेत्र योजना बंद करने हेतु न्‍यायालय में याचिका प्रविष्‍ट होना

भीम सिंह के साथ अनेक सांसदों ने सांसद विकास योजना को न्‍यायालय में चुनौती दी । इस संदर्भ में वर्ष १९९९ एवं वर्ष २००३ की कालावधि में विविध उच्‍च न्‍यायालयों में याचिका प्रविष्‍ट की गईं । तत्‍पश्‍चात केंद्र सरकार ने पहल करके अपने नेतृत्‍व में ये सभी याचिकाआें को सर्वोच्‍च न्‍यायालय में स्‍थानांतरित कर दिया । आरंभ में त्रिसदस्‍यीय न्‍यायमूर्ति के समक्ष उनकी सुनवाई हुई । तत्‍पश्‍चात १२ जुलाई २०१६ को यह अभियोग ५ सदस्‍यीय पीठ के पास भेजा गया । प्रसंग के अनुसार केवल केंद्र सरकार की एकत्रित निधि से यह निधि व्‍यय कर सकते हैं । धारा २८२ के अनुसार जनता के हित के लिए निधि व्‍यय होना आवश्‍यक है । निधि उपयोग करने के अधिकार सांसदों को होते हैं, इसलिए उनकी मनमानी से इसमें अडचन हो सकती है । इस प्रकार की आपत्ति प्रविष्‍ट की गईं थी। अंत में मुख्‍य न्‍यायमूर्ति के.जी. बालकृष्‍णन की पीठ ने सांसद निधि पर लगाए सभी आरोपों का खंडन किया ।

५. सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा योजना वैध बताकर कर याचिका पर सुनवाई करना

इस योजना में सांसदों की मनमानी, सांसद एवं काम करनेवाले ठेकेदारों के हितसंबंध आदि विषय में जो त्रुटियां हैं, उन पर आलोचना हुई । अतः दो बार यह योजना बंद करने के सुझाव दिए गए; परंतु सर्वोच्‍च न्‍यायालय की पीठ ने इस याचिका को वैध सिद्ध किया । इस योजना को वैध सिद्ध करते समय उन्‍होंने कुछ प्रमुख कारण दिए ।

अ. पीठ ने बताया कि सूचना अधिकार में प्रत्‍येक जानकार अथवा इच्‍छुक व्‍यक्‍ति को पत्रव्‍यवहार कर इस योजना के सदर्भ में उसकी कार्यवाही से संबंधित जानकारी लेने का अधिकार है ।

आ. केंद्र सरकार ने नवंबर २००४ में एक ‘सॉफ्‍टवेयर’ बनाया । उस माध्‍यम से योजना के परीक्षण, कार्यपद्धति एवं उसकी प्रगति की जांच पडताल करना संभव है ।

इ. केंद्र सरकार द्वारा आरंभ किए सभी शिक्षा अभियान, विद्यालय में विद्यार्थियों को दोपहर का भोजन देना, जवाहर रोजगार योजना इत्‍यादि उपक्रम स्‍वतंत्र रूप से चलाए जा रहे हैं । उस सदर्भ में अभीतक कोई विवाद नहीं है ।

ई . सत्ता के विकेंद्रीकरण की अवधारणा संविधान में नहीं है, इसे मान्‍य किया तो भी केंद्र में निहित अधिकार इसमें आते हैं । यह निधि कहां और कैसे उपयोग में लाना है, सांसद केवल ऐसा सुझाव देते हैं एवं स्‍थानीय समिति अर्थात ‘जिला नियोजन प्राधिकरण़’ उस पर व्‍यय करता है । इन कारणों से इन याचिकाआें पर सुनवाई की गई ।

६. सांसद निधि योजना कार्यान्‍वित करते समय पाए गए विकृत मानसिकता के सांसद एवं उन पर कार्यवाही

केंद्रीय जानकारी आयोग द्वारा १७ अक्‍टूबर २०१८ को सुनवाई किए गए श्री. रामगोपाल दीक्षित के अभियोग में बहुत से सूत्र तथा त्रुटियां ध्‍यान में आईं । वर्ष २००५ के दिसंबर माह में एक वृत्तवाहिनी द्वारा किए गए ‘स्‍टिंग ऑपरेशन’ में उपर्युक्‍त योजना कार्यान्‍वित करते समय ऐसी मानसिकता के ४ सांसद पाए गए । उनमें २ राज्‍यसभा एवं २ लोकसभा सांसदों में एक कांग्रेस, एक भाजपा, एक समाजवादी एवं एक अन्‍य पक्ष के नेता थे । इस संदर्भ में वर्ष २००६ के मार्च माह में किशोरचंद्र देव की अध्‍यक्षता में एक ७ सदस्‍यीय समिति नियुक्‍त की गई थी । समिति ने सुझाव दिया कि आरोपों की सत्‍यता को सत्‍यापित करने और सत्‍य पाए जाने पर दंड का सुझाव देने के लिए निजी व्‍यक्‍तियों को धन नहीं देकर केवल सरकारी विभागों को ही देना चाहिए । उसी प्रकार राज्‍य एवं लोकसभा के लिए दंड के अलग-अलग मानदंड भी निश्‍चित किए । यह सच है, कि घूस लेने पर उन्‍हें निलंबित किया जाना चाहिए, परंतु स्‍टिंग ऑपरेशन’ में घूस लेना स्‍पष्‍ट दिखाई नहीं देता; तो उन्‍हें नहीं हटाना ह ै। राज्‍य सभा कहती है कि संशय का लाभ (सांसदों को) दीजिए । अर्थात स्‍टिंग ऑपरेशन में स्‍पष्‍ट दिखाई नहीं देते, तो उन्‍हें न हटाया जाए ।

७. ‘कैग’ विवरण (रिपोर्ट) एवं योजना में घोटाले

वर्ष १९९७-२००० का कैग के विविरण में कहा गया है कि जिन कार्यों में धन का उपयोग किया गया था, उनमें से ६४ प्रतिशत कार्य पूरे नहीं हुए थे; परंतु वर्ष १९९८ एवं २००१ का कैग विवरण बताता है कि योजना के क्रियान्‍वयन में अनेक अनियमितताएं हैं । वर्ष २००५ का विवरण बताता है कि योजना में आई बाधाआें के कारण यह योजना विफल रही ।

८. निधि के लिए सहमत होने के उपरांत भी क्‍या उसका उपयोग हुआ ?

१६ वीं लोकसभा के कार्यकाल में १ सहस्र ७५७ कोटि रुपए पारित किए गए थे । सांसदों ने २८१ कोटि रुपए के कार्यों का सुजाव दिया अर्थात १ सहस्र ४८४ कोटि रुपए पडे रहे । २७८ मतदाता संघों में एक भी पैसा व्‍यय नहीं हुआ । वर्ष २०१४ १५ में २२३ सांसदों ने किसी एक कार्यम के संबंध में भी सुझाव नहीं दिया । ४१ प्रतिशत सांसदों ने काम के संबंध में कोई सुझाव नहीं दिया । सांख्‍यिकी विभाग एवं कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय का कहना है कि इस योजना में पारदर्शिता होनी चाहिए । अर्थात क्‍या वास्‍तव में धन व्‍यय होता है ? क्‍या कार्य पूरे होते हैं ? क्‍या निधि ऐसे ही पडी रहती है ? मंत्रियों को ऐसा सोचना चाहिए ।

इस प्रकार लोकसभा के ५४२ एवं राज्‍यसभा के अनुमानतः ३०० सांसदों के लिए प्रति ५ कोटि अर्थात सहस्र कोटि रुपए व्‍यय होते हैं । इस निधि का नियोजन कैसे होता है ? क्‍या योजना आरंभ करने का उद्देश्‍य सफल होता है ? यदि यह योजना अच्‍छी है, तो उत्तरदायी एवं जानकार लोगों ने उसे बंद करने का सुझाव क्‍यों दिया ? इस पर विचार होना आवश्‍यक है । अब केंद्र सरकार जिस दिन यह योजना बंद करेगी, उसे सौभाग्‍य माना जाएगा !

श्रीकृष्‍णार्पणस्‍तु

-पू. अधिवक्‍ता सुरेश कुलकर्णी, संस्‍थापक सदस्‍य, हिन्‍दू विधिज्ञ परिषद एवं अधिवक्‍ता, मुंबई उच्‍च न्‍यायालय.