सनातन संस्कृति का श्रेष्ठत्व आधुनिक विज्ञान को स्वीकार ! – सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

     जोधपुर (राजस्‍थान) – ‘सनातन धर्म के विरोधियों द्वारा प्रचार किया जाता है कि ‘ज्‍योतिष शास्‍त्र नहीं है’, ‘हमसे इतनी दूरी पर स्थित ग्रहों का मानव पर परिणाम कैसे होगा ?’; परंतु आज आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है कि, अमावस्या और पूर्णिमा का मानव के जीवन पर गहराई से परिणाम होता है । ‘समुद्र में आनेवाला ज्वार ग्‍रहों के कारण ही आता है’, यह बात आधुनिक विज्ञान द्वारा शोध करने से पूर्व हमें ज्ञात थी । ऐसा होते हुए आधुनिकता के नाम पर हम अपनी सनातन संस्‍कृति भूलते जा रहे हैं’, ऐसा प्रतिपादन हिन्‍द़ू जनजागृति समिति के राष्‍ट्रीय मार्गदर्शक सद्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने किया । कुछ दिनों पूर्व ‘सुरेश राठी एंड ग्रुप’ द्वारा ‘सनातन संस्कृति की वैज्ञानिकता’ विषय पर ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से कार्यक्रम का आयोजन किया गया था । इस कार्यक्रम में हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्‍रदेश और राजस्थान समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने भी संबोधित किया । १११ जिज्ञासुआें ने इस कार्यक्रम का लाभ उठाया ।

धर्माचरण के कारण सकारात्‍मक ऊर्जा प्राप्‍त कर सकते हैं ! – आनंद जाखोटिया

     धर्माचरण जीवन के अपरिचित अंगों को उजागर करता है । शास्‍त्र कहता है कि ‘सुख का मूल धर्म में है ।’ इसका विस्‍मरण होने के कारण धर्माचरण और उसकी वैज्ञानिकता की उपेक्षा हो रही है । ऋषि-मुनियों द्वारा बताए गए आहार, विहार, वस्त्र, दिनचर्या आदि विषयों से संबंधित कृत्य वर्‍तमान विज्ञान में भी उपयुक्त सिद़्‍ध हो रहे हैं । धर्माचरण से ही सकारात्मक ऊर्‍जा प्राप्त कर सकते हैं ।

अध्‍यात्‍म से ही आनंदप्राप्ति संभव ! – सद्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे

    सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा, ‘‘फैशन के असात्त्विक अलंकार धारण करने से लोग आपकी प्रशंसा करेंगे; परतु उनका हमारे मन और ऊर्जा पर विपरीत परिणाम होता हो, तो उसका क्या उपयोग है ? धन है; परंतु घर में सुख नहीं है । कोई किसी की बात नहीं मानता । प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को कोस रहा है । मन निराश और दु:खी हो, तो धन का क्या उपयोग है ? अनुकूलता के कारण हम सुखी और प्रतिकूलता के कारण दु:खी होते हों, तो ऐसे समय हमें आनंदप्राप्ति के लिए अध्यात्म और साधना की ओर मुडना आवश्यक है; क्‍योंकि अध्‍यात्म से ही आनंदप्राप्ति संभव है ।’’

सनातन की ५७ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर की बालसाधिका कु. वेदिका मोदी के आदर्श उदाहरण से जिज्ञासु प्रभावित !

     सनातन की ५७ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर की जोधपुर की बालसाधिका कु. वेदिका मोदी ने विद्यालय में किए प्रस्‍तुतीकरण से प्रभावित होकर श्री. सुरेश राठीजी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था । वर्तमान काल में इच्छा होते हुए भी बच्चों को हमारी संस्कृति से जोडना संभव नहीं हो रहा है, ऐसी अनेक अभिभावकों को चिंता होती है; परंतु हमारे घर में ही अध्यात्‍म अथवा साधना का वातावरण मिले, तो बच्चों पर बाह्य वातावरण का परिणाम नहीं होता । इसका आदर्श उदाहरण जोधपुर की बालसाधिका कु. वेदिका मोदी (आयु १३ वर्ष) की दृश्यश्रव्य-चक्रिका के माध्यम से सभी उपस्थित जन अनुभव कर पाए।

क्षणिकाएं

१. सद़्‍गुरु डॉ. पिंगळेजी द्वारा किए गए परिपूर्ण शंकासमाधान के कारण जिज्ञासुआें को मन से आनंद हुआ ।

२. सनातन संस्‍कृति की वैज्ञानिकता परिवार तक पहुंचाने के लिए सनातन के ‘धर्मशिक्षा फलक’ ग्रंथ की १०० प्रतियां वितरित करने की श्री. सुरेश राठीजी ने इच्‍छा व्‍यक्‍त की ।

३. इस कार्यक्रम में कु. वेदिका मोदी ने हिन्‍दू संस्‍कृति का पूर्णतः पालन करने के लिए उसके द्वारा किए जानेवाले प्रयत्न बताए तथा उसने एक संस्‍कृत कथा का हिन्‍दी में भाषांतर कर दिखाया ।

यह कार्यक्रम देखने के लिए लिंक – https://www.youtube.com/watch?v=qJhKCJ10bQc