मानव की चूकों के कारण उत्तराखंड की हुई दुर्दशा
१. उत्तराखंड का हाहाकार : फरवरी २०२१ में उत्तराखंड के जोशीमठ में अचानक एक हिमखंड गिर गया और उसके नीचे दबकर अनेक लोगों की मृत्यु हो गई । इसके साथ ही वहां का एक बांध टूटने से नदी में अचानक बाढ आ गई । नदी के किनारे रहनेवाले कुछ लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि अनेक लोग लापता हो गए । अभी भी उनकी खोज जारी है । यह एक प्राकृतिक आपदा है, इसी दृष्टि से इसकी ओर देखा जा रहा है ।
२. उत्तराखंड में हिमखंड गिरना प्राकृतिक नहीं : कुछ लोगों के अनुसार हिमखंड प्राकृतिक रूप से गिर गया, जिसके कारण यहां पर प्रलय हुई । ‘वैसे छोटे-बडे हिमखंड गिरकर जल के प्रवाह में आते रहते हैं’, ऐसा स्थानीय लोगों का कहना है । अभी के हिमखंड का स्वरूप बहुत बडा तथा भयानक होने के कारण बहुत हानि हुई । ‘वर्तमान में उत्तर भारत में कडाके की ठंड होते हुए भी हिमखंड कैसे गिर गया ?’ ऐसा प्रश्न उपस्थित होता है । इसलिए यह विचार करना आवश्यक है कि क्या हिमखंड गिरने का कारण प्राकृतिक है ? कहीं वह मनुष्य निर्मित तो नहीं ?
३. उत्तराखंड के प्रलयकारी बांध : कुछ दिन पूर्व की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘संसार के सैकडों बांध पुराने हो चुके हैं और वे कभी भी गिर सकते हैं’, ऐसा समाचार प्रकाशित हुआ था । बांध मनुष्य के विकास का उचित विकल्प नहीं हो सकते । वे प्रकृति पर किया गया अत्याचार है, ऐसा ही कहना होगा । जब-जब प्रकृति पर बंधन लगाने का प्रयास किया गया है, तब-तब प्रकृति ने उसका दोगुना पलटवार किया है अर्थात हानि की है, यह ध्यान में रखना होगा ।
पिछले कुछ वर्षों से उत्तराखंड राज्य की गंगा नदी और उसकी उपनदियों पर जल विद्युत परियोजनाएं बडी संख्या में बनाई जा रही हैं । इन्हें बनाने के लिए वृक्षों की कटाई, नदियों का गहरीकरण, उनपर बांध बनाने का प्रयास किया जा रहा है । इसके कारण प्रकृति पर आघात हो रहे हैं । इसी का यह परिणाम है । भविष्य में ऐसे अनेक आघात होने की आशंका भी व्यक्त की जा रही है । उत्तराखंड में इन परियोजनाओं के विरोध में कार्य करनेवाले अनेक पर्यावरणवादी एवं उनके संगठन पिछले कुछ वर्षों से कार्यरत हैं । टिहरी बांध का विरोध करने के लिए यहां ‘चिपको’ जैसा बडा आंदोलन भी हुआ है । अभी भी विरोध जारी है; परंतु राज्यकर्ताओं की शक्ति के कारण तथा पर्यावरणवादियों की शक्ति शून्य होने के कारण उसका कोई परिणाम होता नहीं दिखाई दे रहा ।
उत्तराखंड में इस प्रकार की लगभग ८० परियोजनाएं बनाई जा रही हैं अथवा उनका काम जारी है, ऐसा कहा जा रहा है । अभी की प्रलय के कारण वहां बनाई जा रही दो जल विद्युत परियोजनाएं बह गई हैं । यदि भविष्य में इस प्रकार का प्रलय जहां परियोजनाएं बनाई जा रही हैं, वहां आया; तो बहुत बडा विनाश होने की आशंका नकारी नहीं जा सकती । इसका परिणाम केवल उत्तराखंड में ही नहीं; तो सीधे उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल राज्य तक हो सकता है । वह वास्तविक प्रलय होगा । टिहरी बांध का विरोध करते समय यही आशंका जताई जा रही थी और आज भी जताई जा रही है । टिहरी बांध यहां का बहुत ‘बडा बम है’, ऐसा दावा किया जा रहा है । यदि भविष्य में आपातकाल आने ही वाला है, तो ऐसी घटना होने की आशंका नकारी नहीं जा सकती । इससे करोडों की प्राण और धन हानि हो सकती है ।
उत्तराखंड की दुर्घटना : चीन का पर्यावरण युद्ध ?
१. कोई भी भौगोलिक और प्राकृतिक स्थिति न होते हुए भी अचानक हिमखंड गिर जाना
वैज्ञानिकों के अनुसार, ‘फरवरी में इस प्रकार हिमखंड अथवा भूखंड गिरना लगभग असंभव है । हिमखंड टूटने के लिए आवश्यक भौगोलिक तथा प्राकृतिक कारण प्राथमिक जांच में दिखाई नहीं दे रहे ।’ हिमखंड गिरने के लिए अचानक धूप निकलकर तापमान बहुत बढ जाना चाहिए । वर्तमान में वहां का तापमान -२० (माइनस) डिग्री सेंटीग्रेड है । वहां नई बर्फ भी नहीं गिरी थी, ऐसी स्थिति में हिमखंड गिरना लगभग असंभव है ।
‘सासे’ नामक एक संस्था है, जो बर्फ गिरनेवाले भाग में हिमखंड अथवा भूखंड गिरने की आशंका हो, तो परिसर के नागरिकों को सतर्क करती है । पहले ऐसा कुछ होने के पूर्व चेतावनी दी जाती थी । इस समय जब यह घटना हुई तब ‘सासे’ की ओर से कोई भी चेतावनी नहीं दी गई । इस समय कोई भी बारिश नहीं हो रही थी, न ही बर्फ गिर रही थी, इसलिए चेतावनी शायद न दी गई हो । ऐसी स्थिति में कारणों की जांच करने के लिए इस भाग में ‘डीआरडीओ’ के वैज्ञानिकों को तत्काल हेलीकॉप्टर से भेजा गया । वर्तमान में वे इस घटना का कारण खोजने में जुटे हैं । पहले बताए अनुसार वैज्ञानिकों के अनुसार फरवरी में इस प्रकार से हिमखंड अथवा भूखंड गिरना लगभग असंभव है । इसलिए ‘यह चीन जैसे शत्रु राष्ट्र द्वारा किया गया आक्रमण था क्या ?’ ऐसी शंका उत्पन्न होती है ।
२. उत्तराखंड की दुर्घटना चीन का छुपा पर्यावरण युद्ध ?
इस प्रकार के आक्रमण दूर से भी किए जा सकते हैं । चीन ने अपने सैनिक अथवा एजेंट के माध्यम से इस स्थान पर विस्फोट किया था क्या ? यह भी देखना होगा । वर्तमान में सामाजिक माध्यमों पर आगे दिए सूत्र सामने आ रहे हैं ।
अ. आपदाग्रस्त भाग में गढवाल रेजिमेंट और अन्य अनेक सैनिक रहते हैं । वहां के कुछ सेवानिवृत्त सैनिकों ने विस्फोट की आवाज सुनी थी । ‘यह विस्फोट की आवाज प्राकृतिक नहीं थी’, इस प्रकार का मत पूर्व सैनिकों ने सामाजिक माध्यमों पर व्यक्त किया था । इस कारण यहां विस्फोट किया गया, ऐसा लगता है; अर्थात इस घटना की संपूर्ण जांच अभी भी चल रही है ।
आ. यह हिमखंड गिरने का कारण चीन द्वारा मिसाइल से किया गया आक्रमण भी हो सकता है, इस प्रकार की जानकारी सामाजिक माध्यमों पर प्रकाशित हो रही है । इस घटना में सीमावर्ती भाग में जानेवाले रास्ते का एकमात्र पुल बह गया । भारतीय सैनिक सीमा पर जाने के लिए इस पुल का उपयोग करते थे । सीमावर्ती भाग में चीन के आक्रमण का उत्तर देनेवाली भारतीय सेना की गतिविधियों को थोडी देर रोककर रखना भी चीन का एक उद्देश्य हो सकता है ।
३. चीन का भारत से छुपे पर्यावरण युद्ध का इतिहास
इससे पूर्व भी छुपा पर्यावरण युद्ध कर चीन ने आक्रमण किए हैं ।
३ अ. तिब्बत के सरोवर का बांध टूटकर हिमाचल प्रदेश में बाढ की स्थिति निर्माण होना : हिमाचल प्रदेश के ऊपरी भाग में स्थित तिब्बत से अनेक नदियों का उद़्गम होता है । वर्ष २००५ में तिब्बत के पारछू सरोवर में बाहर से आनेवाले प्रवाह का वेग अचानक बढ गया । सरोवर का आकार ३४ हेक्टेयर से सीधे १०० हेक्टेयर तक बढ गया । जल की निकासी न होने के कारण सरोवर में जल स्तर बढ गया, जिसके कारण अचानक सरोवर का बांध टूट गया और हिमाचल प्रदेश में हाहाकार मच गया । इस प्रकरण के संदर्भ में चर्चा के लिए गए भारतीय शिष्टमंडल को सरोवर संबंधी सारी जानकारी आगे दी जाएगी, ऐसा आश्वासन चीन ने दिया था; परंतु उन्होंने उसका पालन नहीं किया । तिब्बत से बहनेवाली नदी में वर्ष २००४ में हुए भूस्खलन के कारण यह सरोवर निर्माण हुआ था ।
३ आ. वर्ष २००३ में उत्तराखंड में बादल फटने के पीछे भी चीन का हाथ होने की आशंका ? : वर्ष २००३ में उत्तराखंड में हुई प्राकृतिक आपदा के उपरांत सर्वत्र हाहाकार मच गया था । बादल फट जाने के कारण सहायता कार्य में अवरोध उत्पन्न हो गया। निरंतर आकाश बादलों से भरा रहने के कारण आसपास का भाग दिखाई नहीं दे रहा था। बारिश के कारण नदियां अपने जलस्तर से बहुत बढ गई थीं, रास्ते टूट गए थे, पुल बह गए थे और सहस्रों लोगों की जान चली गई थी । ‘यह प्रकोप चीन के कारण तो नहीं हुआ न ? एक समाचार पत्र ने ऐसी आशंका व्यक्त की थी कि चीन ने ‘क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) की थी जिसके कारण यह हुआ । भारत में इस दृष्टिकोण से अधिक जांच नहीं की गई । चीन सदैव तिब्बत अथवा सीमावर्ती भाग में ऐसे प्रयोग करता रहता है । ‘इन प्रयोगों के कारण अचानक बाढ आ जाए, तो भारत की ही हानि होगी’, ऐसा इसका उद्देश्य रहता है ।
४. भारत को प्रत्युत्तर देने के लिए तैयार रहना होगा
हिमखंड गिरकर हुई दुर्घटना चीन ने की होगी, ऐसा लगता है । चीन ऐसा क्यों कर रहा है, इसकी योजनाबद्ध जांच की जाए । चीन ने यदि भारत के विरुद्ध पर्यावरण युद्ध आरंभ किया होगा, तो हमें भी उसका तत्काल प्रत्युत्तर देने के लिए तैयार रहना होगा ।
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे, महाराष्ट्र.
उत्तराखंड जैसी आपदाक से बचने के लिए साधना अपरिहार्यउत्तराखंड में हुई आपदा का कारण प्रकृति पर बंधन डालनेवाले बांध बनाने की संकल्पना हो अथवा कपटी राष्ट्र द्वारा इस देश को कमजोर कर उसकी भूमि हथियाने का षड्यंत्र हो, इन दोनों संकल्पनाआें का मूल कारण मानव की तमोगुण वृत्ति ही है । तामसिकता विनाश लाती है । इसलिए तमोगुणी प्रवृत्ति से युक्त मनुष्य प्रकृति पर अथवा अन्य देशों पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास करता है और आगे उसका व्यापक दुष्परिणाम आपातकाल के रूप में मानव को भोगना पडता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा पूरे विश्व के अनेक देशों की मिट्टी और पानी पर किए वैज्ञानिक प्रयोग से यह ध्यान में आया कि मानव की प्रवृत्ति का परिणाम भूमि तथा जल पर होता है, जिससे वे तमोगुणी अथवा सात्त्विक बनते हैं । इसलिए मानव को आपातकाल में अपनी रक्षा करनी हो अथवा आगे आपातकाल न आए ऐसा लगता हो, तो सत्त्वगुण का संवर्धन करनेवाली साधना कर सत्त्वगुणी हिन्द़ू राष्ट्र की स्थापना करना अपरिहार्य है । (संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात) |