‘पूर्वकाल की गृहिणियां सात्त्विक थीं । उनके आचार-विचार सात्त्विक थे, इसलिए उनकी बनाई रसोई सात्त्विक और स्वादिष्ट लगती थी । अपनी दादी के हाथ की बनी सात्त्विक रसोई आज भी अनेक लोगों को स्मरण है । वर्तमान विज्ञानयुग में मानव का जीवन अत्यंत भागदौड से भरा और तनावपूर्ण हो गया है । इसके साथ ही वातावरण में रज-तम भी बहुत बढ गया है । इसका परिणाम मानव की देह, मन और बुद्धि पर हो रहा है । आजकल अनेक लोगों को घर पर बनाए हुए सात्त्विक और कम मिर्च के पदार्थों की तुलना में उपाहारगृह में अथवा बाजार में मिलनेवाले मसालेदार और मिर्च युक्त तीखे पदार्थ खाना बहुत अच्छा लगता है, घर में भी रसोई बनाते समय सब्जी, कचूमर, चटनी इत्यादि पदार्थों में मिर्च की मात्रा अधिक होती है । ‘रसोई बनाते समय पदार्थों में मिर्च का उपयोग अधिक मात्रा में करने से व्यक्ति पर आध्यात्मिक दृष्टि से क्या परिणाम होता है ?’, इसका विज्ञान द्वारा अध्ययन करने के लिए रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस)’ उपकरण द्वारा परीक्षण किया गया । परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन, निष्कर्ष और अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया है ।
१. परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन
इस परीक्षण में तीव्र आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त १ साधिका, तीव्र आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त ६६ प्रतिशत स्तर की १ साधिका, आध्यात्मिक पीडा रहित १ साधक और आध्यात्मिक पीडा रहित ६८ प्रतिशत स्तर की १ साधिका, ऐसे कुल ४ साधक सहभागी थे । इस परीक्षण में कुल ३ प्रयोग किए गए । पहले प्रयोग में साधकों को आलू की सूखी ‘तीखी सब्जी’, दूसरे प्रयोग में ‘मध्यम तीखी सब्जी’ और तीसरे प्रयोग में ‘बिना मिर्च की सब्जी’ खाने के लिए दी । (मध्यम तीखी सब्जी की तुलना में तीखी सब्जी में लाल मिर्च की मात्रा दुगुनी थी ।) तीनों प्रयोगों में १ कटोरी सब्जी खाने से पूर्व, और खाने के उपरांत २० मिनट में ‘यू.ए.एस.’ उपकरण द्वारा साधक का निरीक्षण किया गया । इन निरीक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर तीनों प्रकार की सब्जी खाने से साधकों पर हुआ परिणाम आगे दिया है ।
१ अ. नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विश्लेषण – तीखी सब्जी खाने से साधकों पर नकारात्मक परिणाम होना, मध्यम तीखी सब्जी खाने से उन पर थोडा सकारात्मक परिणाम होना, तो बिना मिर्च के बनीकी सब्जी खाने से उन पर सवार्र्धिक सकारात्मक परिणाम होना : ये आगे दी गई सारणी से स्पष्ट होता है ।
इस सारणी से आगे दिए सूत्र ध्यान में आए ।
१. तीखी सब्जी में सर्वाधिक नकारात्मक ऊर्जा होने के कारण अत्यल्प सकारात्मक ऊर्जा मिली । तीखी सब्जी की तुलना में मध्यम तीखी सब्जी में अल्प मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा होने के कारण थोडी अधिक सकारात्मक ऊर्जा मिली ।
२. बिना मिर्च की सब्जी में नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल न होने के कारण अन्य दोनों सब्जियों की तुलना में अधिक सकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।
३. साधकों द्वारा तीखी सब्जी खाने से उनकी नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होकर सकारात्मक ऊर्जा घट गई ।
४. साधकों द्वारा मध्यम तीखी सब्जी खाने से उनमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा थोडी घट गई और उनकी सकारात्मक ऊर्जा में थोडी वृद्धि हो गई ।
५. साधकों द्वारा बिना मिर्च की सब्जी खाने से उनकी नकारात्मक ऊर्जा घटकर सकारात्मक ऊर्जा में बहुत वृद्धि हुई ।
२. निष्कर्ष
तीखी सब्जी खाने से साधकों पर नकारात्मक परिणाम हुआ, मध्यम तीखी सब्जी खाने से उन पर थोडा सकारात्मक परिणाम हुआ, जबकि बिना मिर्च की सब्जी खाने से उन पर सर्वाधिक सकारात्मक परिणाम हुआ ।
३. परीक्षण के निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
३ अ. तीखी सब्जी और मध्यम तीखी सब्जी में नकारात्मक स्पंदन मिलने का कारण : परीक्षण में तीखी और मध्यम तीखी सब्जियों में नकारात्मक ऊर्जा पाई गई; परंतु बिना मिर्च की सब्जी में नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल ही न होने के कारण दोनों सब्जियों की तुलना में अधिक सकारात्मक ऊर्जा पाई गई । इसका कारण यह है कि लाल मिर्च में तमोगुण होता है । मिर्च से उत्सर्जित तमोगुणी स्पंद़नों की ओर वातावरण की अनिष्ट शक्ति शीघ्र आकर्षित होती है । रसोई बनाते समय पदार्थों में मिर्च का अधिक उपयोग करने से उन पदार्थों की ओर अनिष्ट शक्ति आकृष्ट होती है, जिससे वे पदार्थ नकारात्मक स्पंदनों से भारित हो जाते हैं और पदार्थों की सात्त्विकता घट जाती है । नकारात्मक स्पंदनों से भारित पदार्थ ग्रहण करने से व्यक्ति की देह, मन और बुद्धि पर कष्टदायक स्पंदनों का आवरण आता है । इसलिए व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्ट होते हैं अथवा उनमें वृद्धि होती है । परीक्षण से इसके आगे दिए अनुसार अनुभव हुए ।
३ आ. तीखी सब्जी खाने से परीक्षण का साधकों पर नकारात्मक परिणाम होना : परीक्षण में चारों साधकों में आरंभ में नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा थी । तीखी सब्जी खाने के उपरांत उनकी नकारात्मक ऊर्जा बढी और सकारात्मक ऊर्जा घट गई । (तीखी सब्जी खाने से उन्हें हुआ कष्ट सूत्र ‘४’ में दिया है ।) इससे यह समझ में आता है कि तीखी सब्जी खाने से उनकी आध्यात्मिक दृष्टि से हानि हुई है ।
३ इ. मध्यम तीखी सब्जी खाने के परीक्षण में साधकों पर थोडा सकारात्मक परिणाम होना : तीखी सब्जी की तुलना में मध्यम तीखी सब्जी में नकारात्मक ऊर्जा अल्प होने के कारण सकारात्मक ऊर्जा थोडी अधिक है । साधकों द्वारा मध्यम तीखी सब्जी खाने से उनमें नकारात्मक ऊर्जा थोडी घटी और उनकी सकारात्मक ऊर्जा में थोडी वृद्धि हुई । इससे मध्यम तीखी सब्जी खाने से उन्हें अल्प मात्रा में आध्यात्मिक लाभ दिखाई दिया ।
३ ई. बिना मिर्च की सब्जी खाने से साधकों पर सर्वाधिक सकारात्मक परिणाम होना : बिना मिर्च की सब्जी बनाने पर सब्जी में नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल नहीं थी, अपितु दोनों सब्जियों की तुलना में अधिक सकारात्मक ऊर्जा थी । यह सब्जी खाने से साधकों को अन्न से ऊर्जा मिली और उनके आसपास का काला आवरण घट गया , इसके साथ ही उनकी सकारात्मक ऊर्जा में बहुत वृद्धि हुई । इससे बिना मिर्च की सब्जी खाने से उन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से हुआ लाभ दिखाई दिया ।
४. तीखी सब्जी, मध्यम तीखी सब्जी तथा बिना मिर्च की सब्जी खाने पर परीक्षण में सम्मिलित साधकों को अनुभवहुए सूत्र
संक्षेप में, ‘खाद्यपदार्थों में मिर्च का उपयोग अधिक करना आध्यात्मिक दृष्टि से हनिकारक है’, यह इस वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध हुआ । तीखे पदार्थ नियमित खाने से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अनिष्ट परिणाम होते हैं । इससे यह ध्यान में आता है कि रसोई पकाते समय पदार्थों में मिर्च का उपयोग अत्यल्प करना स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकारी है ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (९.१२.२०२०)
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