आहार एवं आचार के संबंध में अद्वितीय शोधकार्य करनेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
भारतीय खाद्यसंस्कृति में शक्कर को बहुत महत्त्व दिया गया है । पहले से ही उपयोग में लाई जानेवाली काले रंग की ‘खंड शर्करा’ भी शक्कर का ही प्रकार है; परंतु पहले के काल में शक्कर बनाने के लिए उपयोग में लाई जानेवाली पद्धति और आज की पद्धति में बहुत अंतर है । इसके विपरीत गुड पहले से ही भारतीय उपयोग में लाते हैं; परंतु गुड तैयार करने की प्रक्रिया में अत्यल्पपरिवर्तन हुआ है । ‘मानव ने आधुनिक जीवनपद्धति के नाम पर अपनी कितनी हानि कर ली है’, यह हमें आगे दिए गए तुलनात्मक अध्ययन से समझ में आएगा ।
१. शक्कर की निर्मिति प्रक्रिया और उसका दुष्परिणाम
‘पहले शक्कर बनाने के लिए ऊस का रस निकालकर उसे मिट्टी के मटके में भरकर उसे धूप में सुखाया जाता था और उसमें से पानी का अंश निकाला जाता था । शक्कर को शुद्ध करने के नाम पर अनेक प्रक्रिया कर और रसायनों का उपयोग कर उसके जीवनसत्त्व निकालकर अंत में शक्कर में केवल सूक्रोज (sucrose) नामक घटक रखा जाता है । इससे शक्कर अधिक हानिकारक बनती है ।
अ. हम बाजार से जो शक्कर लाते हैं वह प्राकृतिक नहीं होती है । शक्कर बनाते समय प्रमुख रूपसे गन्ने के रस पर रासायनिक प्रक्रिया की जाती है । उसमें ‘सल्फर डाइऑक्साइड’, ‘फॉस्फोरिक एसिड’, ‘कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड’ और ‘एक्टीवेटेड कार्बन’, इन रसायनों का उपयोग किया जाता है । इस प्रक्रिया में शक्कर के अन्य घटकद्रव्य निकालकर ‘सुक्रोज’ नामक भाग रखा जाता है ।
आ. ऐसे स्वरूप की शक्कर मानवी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है । उसके अधिक उपयोग से मोटापा, हृदयविकार जैसे रोग हो सकते हैं ।
इ. शक्कर में विद्यमान ‘सुक्रोज’ नामक घटक भारी मात्रा में शरीर की हानि करता है । यह घटक शरीर में जाने पर रक्त में विद्यमान शक्कर की मात्रा एकाएक बढती है । इसलिए जिन्हें मधुमेह का कष्ट है, उनके लिए शक्कर वर्जित होती है ।
ई. शक्कर को शुद्ध करनेके लिए उपयोग में लाए जानेवाले विविध रसायन शक्कर तैयार होने के उपरांत भी उस शक्कर में अंशरूप में होते हैं । उनका शरीर पर दुष्परिणाम होता है ।
२. शक्कर कारखाने के विषय में आया अनुभव
मैं २०१२ से २०१३ तक कोल्हापुर में ११ वीं और १२ वीं की पढाई के लिए रहता था । उस समय छुट्टियों में अपने गांव कोंकण आने के लिए मुझे लगभग ३ घंटे यात्रा करना पडती थी । इस यात्रा में एक स्थान पर शक्कर का कारखाना पडता था । लोगों की बस्ती होने से बस भी वहां खडी होती थी; परंतु मेरे मन में सदैव यह विचार आता था कि ‘बस वहां न रुके ।’ तब यह समझ नहीं आता था कि मुझे ऐसा क्यों लगता है ? ‘कारखानों में उपयोग किए जानेवाले रसायनों के कारण कारखाने के वातावरण में नकारात्मकता एकत्र हो गई थी । उन नकारात्मक स्पंदनों का आसपास के वातावरण पर भी परिणाम होता है । संभवत: इसलिए मुझे लग रहा था कि उस परिसर में न रुकूं ।
३. गुड की निर्मिति प्रक्रिया और गुड से होनेवाले लाभ
अ. गुड प्राकृतिक पद्धति से तैयार किया जाता है । गुड तैयार करने के लिए गन्ने का रस उबालकर औटाया जाता है और उसमें से पानी का अंश निकाल लिया जाता है । उसे ठंडा करने पर हमें गुड मिलती है । आजकल गुड बनाते समय उसका रंग गहरा न हो इसलिए उसमें कुछ मात्रा में ‘हाइड्रोसल्फाइट’ नामक रसायन का उपयोग किया जाता है ।उस पर एक उत्तम पर्याय है सेंद्रिय गुड (गहरे मिट्टी के रंग का गुड) । सेंद्रिय गुड की पहचान भी सरल है । वह रासायनिक गुड की तुलना में अधिक गहरा होता है ।
आ. गुड में शक्कर के साथ ही अन्य पोषकद्रव्य होते हैं । इसलिए गुड आरोग्यदायी होता है ।
इ. अन्न के साथ गुड ग्रहण करने से अन्न शीघ्र पचता है । गुड पाचनक्षमता बढाता है ।
ई. गुड शरीर में तुरंत नहीं घुलता । इसलिए जिन्हें मधुमेह है; उनके लिए उपायकारक सिद्ध होता है । फिर भी चूंकि उसमें शक्कर है इसलिए कम मात्रा में ग्रहण करना चाहिए ।
४. शक्कर और गुड डालकर गेहूं की
खीर बनाते समय ध्यान में आया अंतर
– श्री. ऋत्विज ढवण (पहले का ‘होटल मैनेजमेंट’ का छात्र), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, रामनाथी, गोवा. (२५.९.२०२०)