सरकारी अधिकारी कुंभकर्ण के अवतार हैं ! – जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का संताप

२ वर्षों से प्रलंबित सडक के निर्माण के कार्य को लेकर न्यायालय ने फटकारा !

  • यदि न्यायालय फटकार लगाने के साथ संबंधित लोगों को दंडित करना भी प्रारंभ करे, तो हालात कुछ हद तक बदल जाऐंगे ; जनता ऐसा सोचती है ।
  • न्यायालय ने भारत के प्रशासन के काम करने के तरीके पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है । ऐसा प्रशासन जनहित में क्या साधेगा ?
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय

श्रीनगर – जब रावण का राज्य संकट में था, तब उसने कुंभकर्ण को नींद से जगाने के लिए कई यज्ञ किए । जम्मू और कश्मीर में भी सरकारी अधिकारियों को जगाने के लिए इसी तरह के यज्ञ करने की आवश्यकता है । जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने सरकारी अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराने के लिए फटकार लगाई । ‘नेशनल इंडिया कंस्ट्रक्शन’ द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने उपरोक्त शब्दों में फटकार लगाई ।

१. न्यायालय ने कहा कि, जम्मू-कश्मीर में लगभग हर विभाग में यही स्थिति है । वर्षों से, उनका पक्ष न्यायालय के समक्ष किसी सरकारी विभाग द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जाता है । इतना ही नहीं, न्यायालय की अवमानना होने पर भी अहवाल प्रस्तुत करना उन्हें महत्वपूर्ण नहीं लगता । कई वर्षों से मुकदमे अदालतों में प्रलंबित हैं । इससे केवल सरकारी संपत्ति का ही नुकसान नहीं होता, अपितु, आम जनता भी विकास से दूर रहती है ।

२. २ वर्ष पूर्व, उधमपुर जिले में, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत कार्य के लिए निविदाएं मंगाई गई थीं । इस प्रतिष्ठान की निविदा को स्वीकार नहीं किया गया । इस संबंध में न्यायालय में एक याचिका दायर किये जाने के बाद न्यायालय ने सडक के काम को स्थगित कर दिया था । तब से यह प्रलंबित है । जब न्यायालय ने विवरण मांगा, तो पाया गया कि पिछले दो वर्षों में सरकार ने प्रकरण पर न्यायालय द्वारा लगाए गए रोक को हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है । अदालत ने कहा, “चूंकि सरकार ने कुछ नहीं किया है, इसलिए पिछले दो वर्षों में परियोजना की लागत बढ गई है और लोग इतने वर्षों तक सुविधाओं से वंचित रहे हैं ।” “इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए ?”, न्यायालय ने पूछा । न्यायालय ने यह प्रश्न सामने रखते हुए कहा कि, “यह केवल एक प्रकरण नहीं है, अपितु, सरकार की उदासीनता के कारण न्यायालय में अनेक प्रकरण प्रलंबित हैं ।