जल्द ही उसका रूपांतर कानून में होगा !
यदि फ्रांस यह कर सकता है, तो पिछले ३ दशकों से जिहादी आतंकवाद और उग्रवाद से पीडित भारत क्यों नहीं कर सकता ?
नई दिल्ली : फ्रांस द्वारा इस्लामी चरमपंथ पर लगाम लगाने के लिए बनाए जानेवाले कानून का प्रारूप सार्वजनिक किया गया है । कानून पारित होने के बाद, फ्रांस के मस्जिदों पर नजर रखी जाएगी । यह कानून विदेशों से प्राप्त होने वाली इस्लामिक संगठनों के वित्त पोषण को भी नियंत्रित करेगा । कट्टरपंथी संगठन, मदरसे या विद्यालय नहीं चला पाएंगे । बिल को २०२१ की शुरुआत में संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है । इसे कुछ माह में कानूनी अधिनियम का रूप दिया जाएगा । यह कहते हुए कि यह कानून फ्रांस के मुसलमानों के साथ अन्याय करेगा, कुछ सप्ताह पहले, पेरिस में इस कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन में ३७ लोग घायल हो गए थे । फ्रांस में आतंकवादी हमलों के बाद, फ्रांस सरकार ने चरमपंथी विचारधारा को रोकने के लिए, ५० इस्लामी संगठनों और ७५ मस्जिदों की निगरानी आरंभ कर दी थी । सरकार ने २०० गैर-फ्रांसीसी चरमपंथियों को निष्कासित करने का भी फैसला किया था ।
प्रारूप के मुख्य बिंदु :
१. देश की सभी मस्जिदों पर नजर रखी जा रही है और इसे अधिक सतर्कता के साथ किया जाएगा । उन्हें मिलने वाली आर्थिक सहायता और इमाम को दिए जानेवाले प्रशिक्षण पर भी नजर रखी जाएगी ।
२. इंटरनेट पर द्वेष व घृणा फैलानेवाली जानकारी पोस्ट करने वालों के विरोध में भी नियम बनाए जाएंगे । सरकारी अधिकारियों को धार्मिक आधार पर उकसाने के लिए कारावास का प्रावधान होगा ।
३. मस्जिदों को १०,००० यूरो तक दान दिया जा सकता है, किन्तु इससे अधिक दान लेने के लिए आपको सरकार की अनुमति लेनी होगी ।
४. पुलिस कर्मियों और अधिकारियों के छायाचित्रों के साथ छेडछाड करना अपराध होगा ।
५. महिलाओं के लिए, कौमार्य परीक्षण के प्रमाण पत्र जारी करने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध कडी कार्रवाई की जाएगी । ऐसा कहा जाता है कि, फ्रांस में कुछ कट्टरपंथी विवाह से पहले इस तरह के प्रमाण पत्र का प्रयोग करते हैं ।
६. जबरन विवाह पर भी रोक लगाई जाएगी। विवाह से पहले, किसी भी सरकारी अधिकारी के सामने दूल्हा और दुल्हन का साक्षात्कार लिया जाएगा । यदि आप एक से अधिक बार विवाह करते हैं, तो फ्रांसीसी नागरिकता भी रद्द कर दी जाएगी । (इन सूत्रों को पढ़ने के बाद, यदि देशभक्त मांग करते हैं कि इस प्रकार का कानून भारत में भी पारित किया जाए, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए ! – संपादक)