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नई देहली – ‘इस्लाम जैसे किसी धर्म में एक से अधिक पत्नियां रखने की प्रथा होने और अन्य धर्माें में इस पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती ।’ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से ५ लोगों ने सर्वाेच्च न्यायालय में उक्त मांग की याचिका प्रविष्ट की है । इस याचिका में इस प्रथा को संविधानविरोधी, महिलाओं का उत्पीडन और समानता के अधिकार का उल्लंघन प्रमाणित करने की, साथ ही भारतीय आपराधिक संहिता के अनुच्छेद ४९४ और मुस्लिम पर्सनल लॉ का अनुच्छेद १९३७ और अनुच्छेद २ को संविधानद्रोही घोषित करने की मांग भी की गई है । इसी अनुच्छेद के अंतर्गत मुसलमान पुरुष को एक से अधिक पत्नियां रखने की अनुमति दी गई है ।
इस याचिका में कहा गया है कि
१. किसी भी हिन्दू, ईसाई अथवा पारसी व्यक्ति के लिए उसकी पत्नी के जीवित होते हुए दूसरा विवाह करना अनुच्छेद ४९४ के अंतर्गत दंडनीय अपराध है; परंतु कोई मुसलमान व्यक्ति ऐसा कर रहा हो, तो वह दंडनीय नहीं है । इसलिए अनुच्छेद ४९४ के अंतर्गत धर्म के आधार पर भेदभाव किया जाता है और इसलिए संविधान के अनुच्छेद १४ और १५ (१) का उल्लंघन होता है ।
Challenge to bigamy/section 494. Plea to have criminal law same for all sections of the society pic.twitter.com/d7xe5J0inh
— Vishnu Jain (@Vishnu_Jain1) December 4, 2020
२. यदि कोई व्यक्ति पत्नी अथवा पति के जीवित होते हुए भी इस स्थिति में विवाह करे, तो ऐसे व्यक्ति को कुछ अवधि के लिए कारावास का दंड भुगतना पडेगा । यह दंड ७ वर्षाेंतक बढाया जा सकता है । साथ ही ऐसे व्यक्ति को आर्थिक दंड भी दिया जाएगा । भारतीय आपराधिक संहिता के अंतर्गत अनुच्छेद ४९४ में इसका प्रावधान किया गया है ।
Five Hindu women and a NGO have approached the Supreme Court challenging the practice of bigamy permitted under Muslim personal law.https://t.co/5BRNqunVGZ
— Hindustan Times (@htTweets) December 4, 2020
३. अनुच्छेद ४९४ से ‘इस स्थिति में विवाह करना अमान्य होगा’ यह वाक्य रद्द किया जाए । अनुच्छेद ४९४ का यह भाग मुसलमान समुदाय में स्थित बहुविवाह पद्धति को संरक्षण देता है; क्योंकि उनका व्यक्तिगत कानून ऐसे विवाहों की अनुमति देता है । मुसलमान समुदाय में विवाह और विवाह-विच्छेदों के प्रकरण मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुच्छेद २ में निहित प्रावधानों के अनुसार चलाए जाते हैं ।
४. इस प्रावधान के अनुसार दूसरी पत्नी का (दूसरे विवाह) अपराध उसी स्थिति में दंडनीय होगा, जब दूसरा विवाह अमान्य होगा । इसका अर्थ इस विवाह का भविष्य पर्सनल लॉ के अंतर्गत इस प्रकार के विवाह को मान्यता देने पर निर्भर रहेगा । उसके कारण हिन्दू, ईसाई अथवा पारसी व्यक्ति को उसकी पत्नी के जीवनकाल में दूसरा विवाह करना अनुच्छेद ४९४ के अंतर्गत दंडनीय होगा; परंतु यह मुसलमान व्यक्ति के लिए दंडनीय नहीं रहेगा ।