स्वतंत्रता के ७४ वर्ष उपरांत भी जनता को अनुशासन ही न सिखाने से और उसके मनपर स्वास्थ्य की गंभीरता ही अंकित न करने से आज कोरोना संकट के समय उसके दुष्परिणाम दिखाई दे रहे हैं । अभीतक के सर्वदलीय राजकर्ता ही इसके लिए उत्तरदायी हैं !
नई देहली – “अधिकतर लोग उचित पद्धति से मास्क ही नहीं लगाते हों, तो ऐसे दिशानिर्देशों से क्या लाभ होगा ?” इन शब्दों में सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रसन्नता व्यक्त की । गुजरात के राजकोट में कोरोना चिकित्सालय में लगी आग में ६ रोगियों की मृत्यु होने के प्रकरण की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह अप्रसन्नता व्यक्त की । न्यायालय ने स्वयं इस प्रकरण का संज्ञान लेकर सुनवाई आरंभ की है । २७ नवंबर को इस चिकित्सालय में आग लगी थी ।
Five coronavirus patients were killed after a fire broke out in the ICU of a designated #Covid19 hospital in Gujarat's Rajkot in the early hours of Friday. https://t.co/oawoIGZ1pb
— Deccan Herald (@DeccanHerald) November 27, 2020
१. न्यायालय ने कहा कि हम विवाह समारोहों और राजनीतिक सभाएं देख रहे हैं । उनमें ६० प्रतिशत से अधिक लोग मास्क नहीं पहनते और जो पहनते हैं, उनके मास्क गले में ही लटकते रहते हैं। यह बात आपके ध्यान में आनी चाहिए कि यह कोरोना की दूसरी लहर है । यदि यह ऐसा ही चलता रहा, तो आगे जाकर स्थिति और बिगडती जाएगी ।
२. केंद्र सरकार के अधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा, ‘‘आग की घटनाओं के लिए राज्य सरकारों को पहले ही निर्देश दिए गए हैं । अब उन्हें नए सिरे से जारी किया जाएगा ।’’ उसपर न्यायालय ने कहा, ‘‘केवल दिशानिर्देश जारी कर काम नहीं चलेगा, अपितु उसका क्रियान्वयन भी आवश्यक है । उसके लिए केंद्र सरकार को प्रधानता लेनी चाहिए ।’’(यह न्यायालय को क्यों बताना पडता है ? केंद्र सरकार के ध्यान में यह बात क्यों नहीं आती ? अथवा ‘दिशानिर्देश जारी किए, तो हमारा काम समाप्त हुआ’, ऐसा सरकार को लगता है ? – संपादक)