‘अपराधी पृष्ठभूमिवाले राज्यकर्ताआें के (सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें ‘टेन्टेड पॉलिटिशन’ कहा है ।) अभियोगों पर निर्णय करने का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी उच्च न्यायालयों को कुछ समय पूर्व ही दिया है । आइए इस आदेश की पृष्ठभूमि समझ लेते हैं ।
१. सत्ता का दुरुपयोग कर स्वयं पर भ्रष्टाचार के अभियोग न चलने देनेवाले भूतपूर्व मुख्यमंत्री ए.आर. अंतुले !
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की पृष्ठभूमि समझते समय अपराध और राजनीति, भ्रष्टाचार और राजनीति के मध्य का समीकरण देखना पडेगा । वर्ष १९८० के लगभग अंतुले मुख्यमंत्री थे, तब उन पर सीमेंट खरीद में घोटाला और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम से न्यास की स्थापना कर उसमें पैसे एकत्रित करने का आरोप लगाया गया था । ये दोनों ही प्रकरण बहुत प्रसिद्ध हुए । इसलिए उनका शासनकाल अत्यंत विवादित साबित हुआ । प्रचुर पैसा और सत्ता हाथ में होने के कारण उन्होंने जीवित अवस्था में उन अपराधों को अंतिम स्वरूप नहीं मिलने दिया । प्रारंभ में यह अभियोग ‘विशेष न्यायालय में चलाया जाए अथवा उच्च न्यायालय में’, यह विवाद उच्च न्यायालय तक पहुंचा । तत्पश्चात अभियोग चलाने के लिए किसकी अनुमति लेनी पडेगी, इस पर सोचविचार हुआ । ऊपर उल्लेख किए अनुसार उन पर एक से अधिक अपराध प्रविष्ट किए गए थे । इसलिए विधानसभा के सभापति और जिस न्यास मंडल के अधिकारियों ने इसका पैसा हडप किया था, उनमें से कोई एक अथवा दोनों को अभियोग चलाने की अनुमति देनी पडती है । यह विवाद १०-२० वर्ष चला ।
२. भ्रष्टाचार को प्रतिष्ठा और अपराधियों को विधानसभा में सम्मानजनक स्थान देनेवाली घृणित राजनीति !
२ अ. महाराष्ट्र में मुंबई के एक प्रतिष्ठित चिकित्सा महाविद्यालय में औषधियों के लेन-देन में घोटाला हुआ । इस प्रकरण में उच्च न्यायालय और सरकार ने न्या. लेंटिन आयोग नियुक्त किया । इस आयोग के सामने अभियोग की सुनवाई चल रही थी, तब ही तत्कालीन स्वास्थ्यमंत्री का हृदयाघात से निधन हो गया । उस समय अपराध और भ्रष्टाचार के उदाहरण उंगलियों पर गिने जा सकते थे ।
२ आ. उसके पश्चात जयललिता, लालूप्रसाद यादव, मधु कोडा, सुखराम आदि ने भ्रष्टाचार को प्रतिष्ठा प्राप्त करवाई । इन लोगों ने सत्ता का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार की राजनीति की तथा सहस्रों करोड रुपयों का धन एकत्रित किया ।
२ इ. फूलनदेवी के संबंध में बताया जाता है कि उन्होंने २१ ठाकुरों को पंक्ति में खडा कर उनकी हत्या कर दी थी । ऐसी महिला किसी भी प्रकार की राजनीतिक पृष्ठभूमि न होते हुए अथवा उनका विशेष समाजकार्य भी न होते हुए २ बार सांसद चुनी गई !
२ ई. महाराष्ट्र में तस्करी के लिए कुप्रसिद्ध अरुण गवळी मुंबई से २ बार विधायक चुने गए !
हिन्दूहृदयसम्राट बाळासाहेब ठाकरे ने ‘सामना’ के संपादक के पद पर काम करते समय एक संपादकीय लिखा था । इस लेख में अपराधियों को प्रतिष्ठा कैसे मिली और वे प्रत्याशी के रूप में कैसे चुनकर आते हैं, इस संबंध में उदाहरण दिए । उस समय उन्होंने, ‘अरुण गुजराथी जो सुशील राज्यकर्ता, विद्वान, अनेक भाषाआें के ज्ञाता थे तथा जिन्होंने विधानसभा में सभापति पद पर कार्य कर उस पद को प्रतिष्ठा प्राप्त करवाई थी, वे चुनाव हार जाते हैं; परंतु उसी समय अरुण गवळी जैसा एक तस्कर ‘विधायक’ चुनकर आता है’, इस संबंध में दुःख व्यक्त किया था ।
३. भगवा आतंकवाद सिद्ध करने हेतु आतुर भूतपूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम् का भ्रष्टाचार
भगवा आतंकवाद सिद्ध करने को आतुर भूतपूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम् और उनके पुत्र कार्ती अनेक दिन कारागृह में थे । प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा तथा गांधी परिवार पर ‘नेशनल हेरॉल्ड’ की भूमि हडपने का आरोप लगा, तब से इनके न्यायालय में चक्कर लग रहे हैं तथा यह मंडली जमानत पर मुक्त है ।
पाठकों को २-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाले का स्मरण होगा । ये सब बातें जिस प्रकार हमें ज्ञात हैं, उसी प्रकार वह न्यायालय को भी ज्ञात हैैं । राज्यकर्ताआें के अपराध और भ्रष्टाचार से संबंधित अभियोग सामने आने पर न्यायालय भी व्यथित हो जाता है ।
४. स्वयं पर लाया गया अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने के लिए
तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव द्वारा घूस देने का प्रकरण
४ अ. अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मतदान करने के लिए प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव द्वारा ३ करोड रुपयों की घूस ! : तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के विरुद्ध साम्यवादी अविश्वास प्रस्ताव लाए थे । उस समय कांग्रेस के पास २५४ सांसद थे और प्रस्ताव खारिज करने के लिए उन्हें अधिक १४ मतों की आवश्यकता थी । ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ के नेता शिबू सोरेन सहित १४ सांसद अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान करें, इसके लिए उनमें से प्रत्येक को ३ करोड रुपए देने का आरोप लगाया गया ।
४ आ. घूस लेनेवालों के विरुद्ध अभियोग न चलाने का न्यायालय का निर्णय : प्रधानमंत्री नरसिंहराव पर लाया गया अविश्वास प्रस्ताव निरस्त हो गया; परंतु उनकी बहुत मानहानि हुई और भारतीय लोकतंत्र का अपमान हुआ । राव के विरुद्ध का अभियोग भी उस समय बहुत प्रसिद्ध हुआ था; क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने मत व्यक्त किया कि ‘पैसे देनेवालों के विरुद्ध अभियोग चलाया जाए, पैसे लेनेवाले शिबू सोरेन के विरुद्ध अभियोग नहीं चलेगा ।’
४ इ. कानून गलत होने की सामान्य लोगों की भावना ! : संविधान की धारा १०५ के अनुसार संंसद में घटी हुई घटनाआें के संबंध में विशेषाधिकार (प्रिविलेज) है । इसलिए ऐसे विवाद न्यायालय में नहीं चल सकते । सोरेन को इसका लाभ मिला । सामान्य लोगों को उनका मुक्त होना अच्छा नहीं लगा । उनका साधारण मत होता है कि पैसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव निरस्त किया गया, यह स्वीकार करने पर भी उन्हें दंड नहीं मिला, तो ऐसे कानून गलत हैं । वे धारा १०५ का लाभ नहीं समझते । इंदिरा गांधी के पश्चात प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति पर अभियोग चलाने का यह पहला ही प्रकरण था; परंतु नरसिंहराव के विरुद्ध यह अभियोग फौजदारी स्वरूप का था ।
५. राजनीति का अपराध सामने आने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कठोर भूमिका लेना
ये सभी घटनाएं सर्वोच्च न्यायालय को ज्ञात हैं । इसलिए जब-जब उनके सामनेे ‘राजनीति के अपराध’, यह विषय आया, तब-तब न्यायालय ने कठोर भूमिका निभाई ।
५ अ. अपराधी पृष्ठभूमिवाले प्रत्याशियों की जानकारी समाचार पत्रों में प्रकाशित करने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश : ‘कलंकित राज्यकर्ता अथवा अपराधी पृष्ठभूमिवाले राज्यकर्ता नहीं चाहिए’, इसके लिए वर्ष १९९५ में महिलाआें ने संसद भवन के सामने आंदोलन किए थे । तत्पश्चात सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रविष्ट हुई । इस समय न्यायालय ने निर्वाचन आयोग का आदेश दिया कि ‘अपराधी पृष्ठभूमिवाले प्रत्याशियों के नाम स्थानीय समाचार-पत्रों में प्रकाशित करें ।’
५ आ. राजनीतिक दल ने अपराधिक पृष्ठभूमि के कितने प्रत्याशी चुनाव में खडे किए हैं, इसकी सूची प्रकाशित करने के आदेश : सर्वोच्च न्यायालय के ध्यान में आया कि ये नाम उन समाचार-पत्रों में प्रकाशित किए जाते हैं, जिनका वितरण कम होता है तथा मतदाता को इस संबंध में कुछ ज्ञात नहीं होता । न्यायालय ने राजनीतिक दलों को कहा कि अपराधी पृष्ठभूमिवाले कितने प्रत्याशी दिए, इसकी सूची घोषित की जाए तथा आदेश दिया कि यह जानकारी समाचार-पत्र और सामाजिक माध्यमों द्वारा जनता को दी जाए ।’
५ इ. ३३ प्रतिशत जनप्रतिनिधियों पर अपराध के आरोप : वर्ष २०१४ के सार्वत्रिक निर्वाचन के उपरांत जो याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट की गईं, उनसे ध्यान में आया कि ३३ प्रतिशत जनप्रतिनिधियों पर अपराध के आरोप हैं । उनमें हत्या का प्रयत्न करना, सरकारी अधिकारियों पर प्राणघातक आक्रमण करना आदि का समावेश है । इस प्रकार के अभियोग प्रलंबित होते हुए ये लोग चुनकर आते हैं और अपनेआप को ‘कानून बनानेवाले जनप्रतिनिधि’ कहलवाते हैं । इसके साथ ही उनके अभियोग १० से २० वर्ष प्रलंबित रहते हैं । इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने अवसर मिलते ही राजनीति के शुद्धीकरण से संबंधित सूचनाएं दी हैं । एक बार तो न्यायालय ने स्पष्ट पूछा था कि अपराधिक पृष्ठभूमि होते हुए केवल ‘चुनकर आते हैं’, क्या केवल इस कसौटी पर इन्हें प्रत्याशी बनाया जाता है ?
५ ई. राज्यकर्ताआें के अपराध से संबंधित अभियोग १०-२० वर्ष प्रलंबित होने के कारण शीघ्र गति स्थापित करने का आदेश : इसी प्रकार का एक अभियोग १७ सितंबर २०२० को सुनवाई के लिए आने पर सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता व्यक्त की है कि अपराधिक पृष्ठभूमिवाले राज्यकर्ताआें के अभियोग १० से २० वर्ष क्यों और कैसे प्रलंबित हैं । इस समय न्यायालय ने स्पष्ट मत व्यक्त किया है कि ‘जब तक संविधान की धारा १०२ और ‘रिप्रेजेेंंटेशन ऑफ पीपल्स, १९५०’ कानून में सुधार नहीं होता, तब तक इस पर रोक नहीं लगेगी । उसी प्रकार न्यायालय ने यह भी सूचना दी कि ‘विशेष न्यायालय स्थापित कर शीघ्रगति से अपराधिक पृष्ठभूमिवाले राज्यकर्ताआें के अभियोगों पर शीघ्र निर्णय किया जाए; क्योंकि ‘राजा कालस्य कारणम्’, यह सिद्धांत उन्हें मान्य है ।
श्रीकृष्णार्पणमस्तु !’
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय.