आपातकाल से पार होने के लिए साधना सिखानेवाली सनातन संस्था !
आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी
आपातकालीन लेखमाला के पिछले भाग में हमने पारिवारिक स्तर पर आवश्यक नित्योपयोगी वस्तुआें का विकल्प देखा । इस लेख में हम अनाज के भंडारण के विषय में समझेंगे । वर्षा ऋतु आरंभ हो जाने के कारण खरीदा हुआ अनाज सुखाया नहीं जा सकता । ऐसी स्थिति में उन्हें खराब होने से बचाने के लिए कुछ अन्य उपाय किए जा सकते हैं ।
लेखांक – ८
३. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर आवश्यक तैयारी
१ ए. भोजन के अभाव में भुखमरी से बचने के लिए यह करें !
१ ए १. अगले कुछ मास अथवा वर्ष के लिए पर्याप्त अनाज भंडारण करना : आपातकाल में मंडियों, दुकानों में अनाज उपलब्ध हो, तो भी उसे खरीदने के लिए भारी भीड होती है । इसलिए पूरा अनाज कुछ ही समय में समाप्त हो जाता है । यद्यपि शासन अनाज की आपूर्ति करता है, किंतु वह सीमित ही रहती है । ऐसी परिस्थिति में, अनाज के लिए भटकना न पडे, इस उद्देश्य से पर्याप्त मात्रा में अनाज का भंडारण करना आवश्यक है ।
१ ए १ अ. कौन से खाद्यपदार्थों का भंडारण करें और कौन से खाद्य पदार्थों का नहीं ? : अनाज, दाल-दलहन (द्विदल अनाज), तेल, घी, मसाले का संग्रह करें । विशिष्ट ऋतु में उत्पन्न होनेवाली सब्जियों और फलों का संग्रह यथासंभव न करें; क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार किसी विशिष्ट ऋतु में उत्पन्न होनेवाली सब्जियां और फल खाने चाहिए । ‘अन्य ऋतुआें में उत्पन्न होनेवाली सब्जियां और फल मुख्य आहार के रूप में अथवा अधिक मात्रा में और प्रतिदिन खाना’, रोग उत्पन्न कर सकता है । ऋतु के अनुसार सब्जियां और फल उपलब्ध होने के लिए यथासंभव उनका रोपण करें ।
१ ए १ आ. अन्न भंडारण के सिद्धांत
१. जैविक पद्धति से (‘ऑर्गेनिक’ पद्धति से – रासायनिक खाद तथा कीटनाशकों का उपयोग किए बिना) उत्पन्न किए अनाज स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं । ऐसे अनाज, रासायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न अनाज की तुलना में अधिक दिन चलते हैं ।
२. फफूंद, कीडे, चूहे, घूस आदि हानिकारक प्राणियों से अनाज की रक्षा करना आवश्यक है ।
३. वर्षा ऋतु में हवा में आर्द्रता (नमी) अधिक रहती है; इसलिए इस काल में अनाज का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है ।
१ ए १ इ. ऐसे करें अनाज का भंडारण ! : ‘अकोला, महाराष्ट्र के वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ वैद्य अरुण राठी अनेक वर्षों से परंपरागत पद्धति से अनाज का भंडारण करते हैं । यह पद्धति आगे दिए अनुसार है ।
१ ए १ इ १. अनाज खरीदना और उसे कडी धूप में सुखाना
अ. अनाज का भंडारण अप्रैल-मई में करें और यथासंभव अनाज सीधे किसानों से खरीदें ।
आ. अनाज घर लाकर उसे कडी धूप में अच्छे से सुखाएं । चावल धूप में न सुखाएं; क्योंकि इससे वे टूट जाते हैं ।
इ. जिस पात्र में अनाज का भंडारण करना हो, उसे स्वच्छ धोकर कडी धूप में रखें । बर्तन धूप में रखना संभव न हो, तब उसे थोडा गरम करें, जिससे उसका पानी पूर्णत: सूख जाए ।
ई. डिब्बों के स्थान पर थैलियों अथवा बोरों का उपयोग करना हो, तो यथासंभव वे नए ही लें । नए बोरे न मिलें, तब पुराने ही बोरे स्वच्छ धोकर धूप में अच्छे से सुखा लें । पानी का अंश पूर्णरूप से निकल गया है, यह सुनिश्चित करें ।
१ ए १ इ २. कीडों से बचाव के लिए एक बहुत अच्छा उपाय – ‘धूपन क्रिया’
अ. कंडे, नीम के पत्ते, सरसों, सेंधा नमक, हलदी तथा विशेषरूप से सूखी लाल मिर्च एकत्र कर उन्हें कपूर की टिकिया की सहायता से जलाकर धुआं करें । इस धुएं पर अनाज का पात्र उलटा रखें और उसमें धुआं भरने दें ।
आ. पात्र में धुआं भरने पर उसका ढक्कन तुरंत लगा दें और इस स्थिति में १५ से २० मिनट रहने दें । इस क्रिया को ‘धूपन’ कहते हैं । किसी भी अनाज के भंडारण में धूपन का विशेष महत्त्व है । धूपन की क्रिया में उपयोग किए गए पदार्थों के कारण, विशेषरूप से लाल मिर्च के कारण अनाज में कीडे नहीं लगते ।
इ. जिनके लिए संभव है, वे धूपन क्रिया के लिए उपर्युक्त पदार्थों में थोडा गंधक, राल, लोबान (एक विशेष सुगंधित द्रव्य) और बच का उपयोग करें, तो धूपन बहुत प्रभावकारी होती है । आयुर्वेदीय औषधि बनाने का सामान बेचनेवाली दुकान में ये पदार्थ मिलते हैं ।
ई. थैलियों में भंडारण के लिए भी ऊपर बताए अनुसार धूपन करें ।
१ ए १ इ ३. अनाज भरना : डिब्बे बडे हों और अनाज थोडा हो, तो उसे प्लास्टिक की थैलियों में भरकर डिब्बों में रखें । डिब्बों में अथवा थैलियों में अनाज आगे बताए अनुसार भरें ।
अ. नीम के पत्ते कडी धूप में इतना सुखाएं कि उनमें पानी का अंश न रहे । पत्ते जलने न दें । नीम के पत्ते न मिलें, तब निर्गुंडी के पत्तों का उपयोग इसी प्रकार करें ।
आ. डिब्बों में अथवा थैली में अनाज भरते समय पहले नीम के कुछ सूखे पत्ते तल में रखकर उसपर कागज अथवा अच्छा धुला और सूखा सूती कपडा बिछा दें; तत्पश्चात डिब्बों में अनाज भरें । यदि किसी कारण डिब्बे में आर्द्रता (नमी) चली भी गई, तो कागज अथवा सूती कपडा उसे सोख लेगा ।
इ. अनाज भरते समय प्रति एक किलो अनाज में धूप में अच्छे से सुखाए ४ – ५ भिलावा डालें । भिलावा आयुर्वेदीय औषधि बनाने का सामान बेचनेवाली दुकान में मिलता है । यदि यह न मिले, तब आयुर्वेदीय ‘भीमसेनी’ कपूर की टिकिया विभिन्न कागज के अनेक टुकडों में लपेटकर, प्रति एक किलो अनाज पर एक टिकिया रखें । (सनातन का आयुर्वेदीय ‘भीमसेनी कर्पूर’ सनातन के उत्पाद वितरकों के पास मिलता है । – संकलनकर्ता)
ई. अनाज भरने के उपरांत उसपर पुन: एक कागज अथवा सूती कपडा रखकर, नीम के सूखे पत्तों को ऊपर से बिछा दें ।
उ. डिब्बे के ढक्कन पर भीतर की ओर से एक कपूर की टिकिया ‘सेलोटेप’ की सहायता से चिपका दें । कपूर की सुगंध से चींटियां और अन्य छोटे कीडे भीतर नहीं जाते । थैली में कपूर की टिकिया रखनी हो, तो उसे कागज में लपेटकर सबसे ऊपर रखें और थैली का मुंह कसकर बांध दें ।
ऊ. डिब्बे में हवा न जाए, इस हेतु उसका ढक्कन कसकर लगाएं । ढक्कन कसकर लगाने के लिए आवश्यकता अनुसार कागज अथवा प्लास्टिक थैली का आवरण (पैकिंग) चढाएं ।
१ ए १ इ ४. अनाज से भरे डिब्बे अथवा थैलियां उचित स्थान पर रखना
अ. अनाज भंडारण का कमरा ऐसा हो, जिसमें वर्षा काल में सीलन (नमी) न आए (सूखा रहे) । अनाज भंडारण से पहले कमरे को ठीक से झाड-पोेंछ लें । इस कक्ष में पहले बताए अनुसार, ‘धूपन’ क्रिया करें और १५ से २० मिनट कक्ष बंद रखें । इस कक्ष की नियमित स्वच्छता करते रहें और सप्ताह में एक बार इसमें धूपन क्रिया भी करें ।
आ. अनाज के डिब्बे भूमि पर न रखें, अलमारी (रैक) अथवा पीढे पर रखें । अलमारी भीत (दीवार) से थोडा अंतर बनाकर रखने पर स्वच्छता करने में सुविधा होती है । अनाज भंडारण के स्थान में चूहे अथवा घूस प्रवेश न कर सकें, इसके लिए कक्ष के द्वार और भीत में दरारें न हों ।
इ. यदि संभव हो, तो अनाज भंडार में ‘एक्जॉस्ट फैन’ की व्यवस्था करें ।’
१ ए १ इ ५. तिलचट्टे (कॉकरोच) भगाने के उपाय : आगे बताया कोई भी एक उपाय करें ।
अ. ‘३ भाग ‘बोरिक पाउडर’ और १ भाग आटे के मिश्रण में थोडा पानी मिलाकर सुपारी के आकार की गोलियां बनाकर कडी धूप में सुखा लें । दो भीत (दीवार) मिलने से बननेवाले घर के प्रत्येक कोने में एक-एक गोली रखें; क्योंकि तिलचट्टे सामान्यतः वहीं आते हैं और वहां कोई खाद्यपदार्थ हो, तो उसे खाते हैं । आटे की गंध के कारण वे आटा मिश्रित ‘बोरिक पाउडर’ भी खाते हैं और उनका प्रजनन तंत्र बिगड जाता है । इससे नए तिलचट्टों का जन्म नहीं होता । ‘बोरिक पाउडर’ की ये गोलियां अनेक दिन चलती हैं । तब भी आवश्यक लगे तो वर्ष में एक बार नई गोलियां बनाएं ।’ – डॉ. अजय जोशी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.७.२०२०)
आ. ‘इसी प्रकार के प्रत्येक कोने में एक डामरगोली (नैफ्थिलीन की गोली) रखें । डामरगोली की गंध से तिलचट्टे नहीं आते । डामरगोली खुली रखने पर, कुछ दिनों में उड जाती है । इसलिए उन्हें कागज में लपेटकर रखें ।
१ ए १ इ ६. भंडारित अनाज की देखभाल
अ. ‘मास (महीने) में एक बार भंडारित अनाज की जांच करें ।
आ. अनाज को गीले हाथ न लगे, इस बात का विशेष ध्यान रखें ।
इ. दीपावली के उपरांत वर्षा समाप्त हो जाती है और कडी धूप पडने लगती है । उस समय अनाज को पहले की भांति पुन: धूप दिखाएं और धूपन करें ।
१ ए १ ई. अनाज में कीडे न लगें, इसके लिए कुछ अन्य उपाय : ऊपर बताई अनाज भंडारण पद्धति का उपयोग सभी पदार्थों, उदा. सब प्रकार के अनाज, दालें, मसाले, गुड, चीनी आदि के लिए कर सकते हैं । उचित ध्यान रखकर अनाज भंडारण से अनाज में कीडे नहीं लगते; परंतु तटवर्ती प्रदेशों में (उदा. कोकण में) जलवायु में आर्द्रता अधिक होने के कारण, वहां आवश्यकता अनुसार उपर्युक्त पद्धतियोें के अतिरिक्त अन्य उपाय भी कर सकते हैं; परंतु कोई भी व्यवस्था करने से पहले, ऊपर बताए अनुसार ‘धूपन’ क्रिया अत्यावश्यक है ।
१ ए १ ई १. जो अनाज धोकर उपयोग में लाए जाते हैं, उनके लिए उपाय : चावल और दालें, जिनका उपयोग धोकर किया जा सकता है, ऐसे अनाजों के भंडारण के लिए आगे बताए अनेक विकल्पों में से कोई एक चुन सकते हैं । अनाज धोने से अनाज से कीटनाशक रसायन निकल जाते हैं ।
अ. ‘बोरिक पाउडर’ : इसे अनाज में भली-भांति मिला दें । प्रति १० किलो के लिए १० ग्राम ‘बोरिक पाउडर’ पर्याप्त होता है । कागज पर अनाज को फैलाकर उसपर थोडा-थोडा ‘बोरिक पाउडर’ छिडककर हाथ से भलीभांति मिला दें, जिससे ‘पाउडर’ पूरे अनाज पर लग जाए ।
आ. शंखजीरा और चूने का मिश्रण : ३ भाग शंखजीरा (संगजीरा) चूर्ण, १ भाग चूना इस अनुपात में आपस में मिलाकर यह मिश्रण बोरिक पाउडर के ही समान अनाज में मिला दें । जहां आयुर्वेदीय औषधि बनाने का सामान मिलता है, उस दुकान में यह पदार्थ मिलता है । शंखजीरा एक खनिज है ।
इ. राख : भंडारण के लिए इसका उपयोग विशेषतः दालें, जैसे मूंग, चना आदि द्विदल अनाज के लिए किया जाता है । लगभग १० किलो दाल के लिए एक से डेढ किलो सूखी राख का उपयोग करें । डिब्बे में दाल भरते समय आरंभ में उसमें राख की एक परत बिछाएं । पश्चात उसपर दाल डालें; पुन: राख की परत, इस क्रम से करें । सबसे अंत में भी राख की एक परत होनी चाहिए ।
१ ऐ १ ई २. जिसे धोया नहीं जा सकता, ऐसे अनाज के भंडारण के उपाय
१. एरंडेल तेल (अरंडी का तेल) : ज्वार, बाजरा और गेहूं को एरंड का (अरंडी का) तेल लगाएं । लगभग २० किलो अनाज में आधा कटोरी (७५ मि.ली.) अरंडी का तेल मलकर लगाएं ।’ – वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१७.७.२०२०)
१ ए १ उ. सूजी, तेल, मसाले, सब्जियां आदि के भंडारण की कुछ पद्धतियां : ‘ये सभी पदार्थ डिब्बों में भरने से पहले डिब्बों का ‘धूपन’ करना आवश्यक है । इसके लिए आगे बताई पद्धति का उपयोग करें ।
१. सूजी : सूजी प्रशीतक (फ्रिज) में रखें । प्रशीतक में रखी सूजी १ वर्ष चलती है । यदि यह प्रशीतक के बाहर रखनी है, तो भूनकर हवाबंद डिब्बे में रखें । ऐसी सूजी लगभग ६ से ७ मास (महीने) चलती है ।
२. पोहा (चूडा) : पोहा हवाबंद डिब्बे में रखें ।
३. मूंगफली के दाने : मूंगफली की फलियों का संग्रह करें और आवश्यकता अनुसार उसे फोडकर मूंगफली के दाने निकालें । फली में दाने वर्षभर अच्छी स्थिति में रहते हैं । दुकान में मिलनेवाले मूंगफली के दाने २ – ३ महीने से अधिक नहीं चलते ।
४. शक्कर, गुड और तेल : इन्हें हवाबंद डिब्बों में रखें । चींटियां न लगें, इसके लिए डिब्बों के ढक्कन पर भीतर की ओर से कपूर की टिकिया सेेलोटेप से चिपका दें । भंडारित तेल का उपयोग ६ महीने के भीतर करें, अन्यथा उससे दुर्गंध आ सकती है ।
‘प्लास्टिक’ की थैली अथवा बोरी से ठीक से ढंकी गुड की भेली ४ से ५ वर्ष चल सकती है । फोडी हुई भेली शीघ्र खराब हो सकती है । इसलिए गुड की छोटी-छोटी भेलियां ही खरीदें और आवश्यकता अनुसार फोडें ।
५. नमक : खुला नमक और चीनी मिट्टी की अथवा कांच की बरनी में रखें । बरनी का ढक्कन लगाकर, उसका मुंह सूती कपडे से ढंककर सुतली से बांध दें । ऐसा नमक ४ से ५ वर्ष चलता है । वातावरण की आर्द्रता के कारण नमक गीला हो जाता है; इसीलिए उसे कभी भी खुला न रखें । नमक गीला हो जाने पर, उसे धूप में सुखाकर सूखी बरनी में रखें ।
६. इमली : इसके बीज निकालकर सुखाएं और नमक लगाकर रखें ।
७. मसाले : धूप में सुखाकर हवाबंद डिब्बे में रखें ।
८. आलू, प्याज और लहसुन : आलू, प्याज और लहसुन ठीक से रखे जाएं, तो लगभग एक से डेढ वर्ष चल सकते हैं; किंतु ये पूर्णतः परिपक्व होने चाहिए । लहसुन सूखा होना चाहिए । प्याज और आलू को सूखे तथा हवादार स्थान में फैलाकर रखें । यदि लहसुन और प्याज की गड्डी खरीदी हो, तो उन्हें हवा में टांगकर रखें ।
९. कुछ सब्जियां और पत्तेदार सब्जियां
९ अ. सूरन : सूरन वर्षभर टिकता है । सब्जी के लिए आवश्यक सूरन का भाग काट लें और शेष टोकरी में वैसे ही रहने दें । यह बचा सूरन भी वर्षभर अच्छा रहता है ।
९ आ. कद्दू : कद्दू ऊंचा लटकाकर अथवा जालीदार पात्र (रैक) में रखें । इससे वह १ वर्ष चलता है । कद्दू भूमि पर रखने से शीघ्र खराब होने की संभावना रहती है ।
९ इ. गाजर और ककडी : इन्हें काटकर, नमक लगाकर और धूप में सुखाकर रख सकते हैं ।
९ ई. पत्तेदार सब्जियां : धनिया, पुदीना, मेथी, पालक और चने के साग को स्वच्छ कर धूप में सुखाकर हवाबंद डिब्बों में रखें । ये ६ से १२ मास चलते हैं । सब्जियों के पत्ते कोमल अथवा गीले नहीं होने चाहिए ।
९ उ. टमाटर और कच्चे आम : टमाटर और कच्चे आम (कैरी) के टुकडे कर उन्हें सुखाएं और चूर्ण बना लें । यह चूर्ण १ वर्ष चलता है । यह चूर्ण सब्जी और दाल में खटास लाने के लिए उपयुक्त होता है ।’
– श्री. अविनाश जाधव, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२६.६.२०२०)
९ ऊ. कटहल के बीज : ‘इन्हें धोकर, सुखाकर और थोडी-सी मिट्टी लगाकर, आर्द्रता जहां न आए, ऐसे स्थान पर भूमि में एक उथला गड्ढा खोदकर (संभवत: चूल्हे के पास) रखते हैं । ये बीज ४ से ६ मास चलते हैं । इन्हें आवश्यकता अनुसार कभी भी निकालकर, धोकर, उबालकर अथवा भूनकर खा सकते हैं ।’ – वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१७.७.२०२०)
(संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी’)
(प्रस्तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ के पास सुरक्षित हैं ।)
(यह लेख www.sanatan.org जालस्थल (वेबसाइट) पर पढें ।)