- इस तथ्य की जानकारी होने के पश्चात कि क्रूर और कट्टर हिन्दू विरोधीआक्रमणकारियों द्वारा सहस्रों मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिदें बनवाई गईं एवं इसकी ऐतिहासिक स्पष्टता के बावजूद, स्वतंत्रता के ७३ वर्ष बीत जाने बाद भी, वर्तमान सरकारों ने हिन्दुओं की इस भूमि को वापस पाने के लिए कुछ भी नहीं किया, इसके विपरीत, उन्होंने यह हिन्दुओं को कभी प्राप्त न हो सके इसके लिए एक कानून बनाया है ! यह ध्यान रहे !
- हिन्दुओं की यह मांग है कि सरकार इस मामले को शीघ्र न्यायालय में ले जाकर हिन्दुओं की भूमि वापस लाने हेतु दृढता से प्रयत्न करे!
- हिन्दू बहुल भारत में, हिन्दुओं को अपने न्यायाधिकारों के लिए ऐसी याचिका दायर करनी पडे, यह लज्जास्पद है ! हिन्दओं को सम्मान के साथ जीने के लिए हिन्दू राष्ट्र की ही आवश्यकता है !
मथुरा (उत्तर प्रदेश) – भगवान कृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवाट और रंजना अग्निहोत्री सहित कुल छह व्यक्तियों ने न्यायालय में एक याचिका दायर कर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से संबंधित १३.३७ एकड भूमि का स्वामित्व दिलाने एवं शाही ईदगाह का अतिक्रमण हटाने की मांग की है ।
याचिका में कहा गया है कि
१. उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड का कोई सदस्य, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह या मुस्लिम समुदाय के किसी भी सदस्य को कटरा केशव देव की संपत्ति में कोई रुचि या अधिकार नहीं है ।
२. इतिहासकार यदुनाथ सरकार के अध्ययन के संदर्भानुसार, १६६९-७० में क्रूरकर्मी औरंगजेब ने कटरा केशव देव स्थित कृष्ण मंदिर को ध्वस्त कर दिया, जहां भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था और वहां एक भवन निर्माण किया, जिसका नाम ‘ईदगाह मस्जिद’ रखा ।
३. १०० वर्षों के बाद, मराठों ने गोवर्धन की लडाई जीत ली और पूरे आगरा और मथुरा प्रांत पर अधिकार कर लिया । मराठों ने तब मस्जिद की तथाकथित संरचना को ध्वस्त कर दिया और कटरा केशव देव में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान का नवीनीकरण किया ।
४. सन् १८०३ में अंग्रेजों द्वारा मथुरा पर कब्जा करने के बाद, मथुरा में कोई बदलाव नहीं हुआ । १८१५ में, अंग्रेजों ने १३,३७ एकड भूमि को नीलाम कर इसे बनारस के राजा पाटनी मल को बेच दिया । वे इस भूमि के स्वामी बन गए ।
५. सन् १९२१ में, कुछ मुसलमानों ने भूमि के स्वामित्व का दावा करते हुए एक याचिका दायर की थी किंतु न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया था ।
६. फरवरी १९४४ में, राजा पाटनी मल के वारिसों ने पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकन लालजी अत्रे को १९,४०० रुपए में यह जमीन बेची, जिसका भुगतान जुगल किशोर बिडला ने किया था ।
७. अक्टूबर १९६८ में, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह सोसाइटी के बीच एक समझौता हुआ, भले ही इस जमीन का उनके पास स्वामित्व नहीं था । इस संधि में ट्रस्ट ईदगाह मस्जिद की कुछ मांगों पर सहमति बनी ।
८. जुलाई १९७३ में, मथुरा सत्र न्यायालय के एक न्यायाधीश ने इस समझौते के आधार पर इस प्रलंबित मामले पर निर्णय दिया और वर्तमान संरचनाओं को बदलने पर रोक लगा दी ।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम ‘१९९१’ के कारण, मथुरा, काशी आदि मंदिरों पर निर्णय रोक दिए गए थे!
क्या यह कानून १०० करोड हिन्दुओं के साथ अन्याय नहीं करता ? हिन्दुओं की एकपक्षीय मांग है कि मोदी सरकार इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों को तुरंत रद्द कर एक ऐसा कानून बनाए, जो काशी और मथुरा सहित इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा जब्त की गई हिन्दुओं की सभी सपत्तियों को हिन्दुओं को हस्तांतरित करे ।
वर्ष १९९१ में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा पारित उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, १९९१ के अनुसार, सभी पूजास्थलों को ‘जैसे थे´ स्थिति में रखा जाएगा । इसलिए, अयोध्या को छोडकर सभी स्थानों पर, १५ अगस्त १९४७ को जो स्थिति थी, वही यथावत रखी जाएगी, जैसा कि अधिनियम में कहा गया है । इस कानून के अंतर्गत किसी भी पूजास्थल को दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता है । कहा जा रहा है कि इस कानून के कारण मथुरा, काशी आदि पर निर्णय रोक दिए गए हैं ।